परिचय
उपनिषद् परिचय के अंतर्गत पहले तीन लेख दिए जा चुके हैं जिनका सार निम्न प्रकार हैं …
भाग - 01 का सार > चार वेदों के 108 उपनिषदों को एक टेबल में दिखाया गया है । इन 108 उपनिषदों में 13 प्रमुख उपनिषद् है तथा इन 13 उपनिषदों में से उन 10 उपनिषदों को अलग से दिखाया गया है जिनका भाष्य आदि शंकराचार्य जी द्वारा लिखा गया है जिन्हें दशोपनिषद् नाम से जाना जाता है ।
भाग - 02 का सार > मुगल बादशाह शाहजहां के युवराज दारा शिकोह 1654 में अपनी मृत्यु के ठीक 5 साल पहले काशी के पंडितों को बुलवा कर 50 उपनिषदों का फारसी जुबान में भाषान्तर करवाया था। दारा शिकोह कै इस प्रयास के कारण भारतीय उपनिषदों का प्रकाश पश्चिम के दार्शनिकों तक पहुंच पाया था । दारा शिकोह को इस कार्य में उनके एक मित्र सूफी फकीर सरमद से मदद मिली थी।
भाग - 03 का सार > यहां सूफी फकीर सरमद और दारा शिकोह की मित्रता के संबंध में कुछ बातें बताई गई हैं। औरंगजेब सरमद को धर्म विरोधी घोषित कर दिया और जामा मस्जिद के ठीक सामने उसके सिर को कलम करवा दिया
था । सरमद की कब्र आज भी जामा मस्जिद दिल्ली के ठीक साथ में उपस्थित है । सरमद वाराणसी में उपनिषद् ज्ञान अर्जित किया था। दारा शिकोह को सूफी दर्शन और वेदांत दर्शन में काफी समानताएं दिखने लगी थी और यही कारण उसमें उपनिषद् प्यार उत्पन्न किया था ।
अब उपनिषद परिचय श्रृंखला के चौथे भाग में प्रवेश करते हैं जिसमें चार वेदों से परिचय कराया जा रहा है क्योंकि वेद परिचय के बाद इनके उपनिषदों को विस्तार से समझना सरल हो जायेगा; जिनका चर्चा आगेआने वाले अंकों में की जाएगी । आइए ! अब नीचे दिए गए टेबल के माध्यम से वेदों से परिचय करते हैं …..
वेद | सामान्य परिचय |
ऋग्वेद | रइग्वेद का जन्म स्थान पञ्च सिंधु क्षेत्र माना जाता है और इसकी भाषा वैदिक संस्कृत (Vedic Sanskrit) है, जो शास्त्रीय संस्कृत(Classical Sanskrit) से भिन्न है। इसमें प्राचीन ईरानी भाषा (Avestan) के साथ समानता के साथ शब्द-समानता (Linguistic Affinity) भी पाई जाती है। ऋग्वेद में कुल 10 मंडल (खंड) हैं, जिनमें लगभग 10,552 मंत्र संकलित हैं। ये मंत्र कुल 1,028 सूक्तों में विभाजित हैं। ऋग्वेद के ये मंत्र देवताओं की स्तुति, यज्ञ, प्रकृति, जीवन दर्शन और तत्कालीन समाज की झलक प्रस्तुत करते हैं।ऋग्वेद में यज्ञ को जीवन का आधार,कर्म , परोपकार एवं त्याग का प्रतीक माना गया है । |
यजुर्वेद | यजुर्वेद की रचना का मुख्य क्षेत्र उत्तर भारत विशेष रूप से वर्तमान उत्तर प्रदेश और हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुआ माना जाता है। यजुर्वेद से जुड़े कई ऋषि जैसे व्यास, याज्ञवल्क्य और वसिष्ठ उत्तर भारत के ही माने जाते हैं। यजुर्वेद मुख्यतः यज्ञ और कर्मकांड से संबंधित है। इसमें यज्ञों में बोले जाने वाले मंत्रों और अनुष्ठान की विधियों का वर्णन है। इसमें 1,975 मंत्र हैं जिनमें से 664 मंत्र ऋग्वेद के हैं । शुक्ल यजुर्वेद में कृष्ण यजुर्वेद की तुलना में अधिक मंत्र हैं। |
सामवेद | सामवेद एक तरह से ऋग्वेद का ही एक अंग है जिसका विकास वैदिक काल (1500 - 500 BCE) में प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिमी और गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में हुआ । यह संस्कार, अध्यात्म और भक्ति का आधार माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यज्ञों में मंत्रों को गायन के रूप में प्रस्तुत करना था। सामवेद , यजुर्वेद से मिल कर वैदिक अनुष्ठानों , देवताओं की स्तुति आदि में प्रयोग होता है । हिंदू संगीत परंपरा की जड़ें सामवेद में हैं, और इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत का स्रोत भी माना जाता है। यह वेद मुख्य रूप से संगीत और स्तुति से संबंधित है। इसमें 1549 मंत्र हैं, जिनमें से अधिकांश ऋग्वेद से लिए गए हैं, |
अथर्ववेद | अथर्ववेद का संकलन मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम भारत में हुआ माना जाता है। वर्तमान में यह क्षेत्र पंजाब, हरियाणा और अफगानिस्तान का कुछ भाग हो सकता है। इसमें उस समय के जन जीवन, चिकित्सा, तंत्र-मंत्र और लोक विश्वासों का उल्लेख मिलता है, जिससे यह क्षेत्रीय जीवन का सजीव चित्रण करता है। अथर्ववेद की भाषा वैदिक संस्कृत है, जो ऋग्वेद और अन्य वेदों के समान है, लेकिन इसमें लोकभाषा और लोककथाओं का प्रभाव भी देखा जाता है। 👉 अथर्ववेद अपने चिकित्सा, तंत्र-मंत्र और समाज कल्याण से जुड़े सिद्धांतों के लिए जाना जाता है, जो इसे अन्य तीन वेदों से अलग बनाता है ।अथर्ववेद में कुल 5,977 मंत्र संकलित हैं। ये मंत्र 20 कांडों (खंडों) में विभाजित हैं। जिनमें से लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। |
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