Wednesday, July 2, 2025

वेदों में ब्रह्म की अवधारणा


श्रीमद्भागवत (11.17) तथा महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार ⤵️

  • आदि सतयुग के प्रारंभ में एक ही वेद था — जिसे प्रसव वेद  कहा गया।

  • यह वेद श्रुति के रूप में स्वयं ऋषियों के हृदय में स्फूर्त होता था। यह वचन - उपासना की बुनियाद होता था। 

  • यह वेद संपूर्ण ज्ञान का समावेशी स्रोत था अर्थात ब्रह्म, ब्रह्म , आत्मा , कर्म, ध्यान एवं उपासना की ऊर्जा उत्पन्न करता था। 

  • और हंस , एक धर्म था ।

 त्रेतायुग आते - आते वेद त्रय हो गए और द्वापर में चार वेद हो गए । प्रसव वेद परंपरा का केंद्र ब्रह्म है । एक वेद से चार वेदों का बनाना , हर वेद के चार -  चार अंगों का बनना , वेद के विकास को दर्शाता है । चार वेद - ऋग्वेद , शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद और उनके अंग - संहिता , ब्राह्मण , आरण्यक और उपनिषदों को  दूर से देखने पर उनके मार्ग अलग - अलग दिखते हैं लेकिन ऐसा है , नहीं , सबका केंद्र एक ही है और वह है - ब्रह्म , ब्रह्म से ब्रह्म में उसकी माया तथा माया से माया में संसार एवं संसार की सूचनाओं का होना। समयातीत , निर्गुण  ब्रह्म से समयाधीन, त्रिगुणी माया और माया से माया में नाना प्रकार की सूचनाओं का होना का बोध कराते हैं , चार वेद एवं उनके अंग ।यहां हम चार वेदों में व्यक्त , अव्यक्त ब्रह्म की अवधारणाओं के सार को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं । यह विषय हमारी बुद्धि सीमा के परे का है लेकिन कोशिश तो की ही जा सकती है । चार वेदों ब्रह्म की अवधारणाओं को यहां , एक टेबल में दिया जा रहा है …

वेद

ब्रह्म की अवधारणा

ऋग्वेद


10 मंडल , 1028 सूक्त और 10552

नासदीय सूक्त : 10.129  नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं 

*सृष्टि के पहले न सत् था, न असत् , एक अदृश्य तत्व था , जिससे और जिसमें सब था ,आज भी जिससे एवं जिसमें सब हैं और उस तत्त्व का संबोधन ब्रह्म है ।  

*यज्ञ , यज्ञ की ऊर्जा , ब्रह्म है।

* ब्रह्मांड एवं जड़ - चेतन  का कारण ब्रह्म है।

यजुर्वेद

शुक्ल यजुर्वेद

40 अध्याय , 

मंत्र - 1975 


*यज्ञो वै ब्रह्म (यज्ञ ही ब्रह्म है)। 

*ब्रह्म सृष्टि का आधार है। 

*ब्रह्म अविनाशी, परम है ,सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है , एक है और अद्वितीय है ।

कृष्ण यजुर्वेद में कांड 7 , प्रापाठक 44 मंत्र 2800 हैं

सामवेद

मंत्र - 1875  जिनमें 1504 मंत्र ऋग्वेदीय हैं

ब्रह्म को नाद ब्रह्म कहा गया है । साम गान के गायन उत्पन्न लयबद्ध नाद में स्वयं की लीन करके ब्रह्म की अनुभूति करते हैं। ॐ ( प्रभाव ) को दृष्टि का आधार माना गया है और ॐ नाद से उत्पन्न ऊर्जा को ब्रह्म माना गया है

अथर्ववेद

मंत्र - 5977 जिनमें से 1200 मंत्र ऋग्वेदीय हैं 

* ब्रह्म को संसार का रक्षक और विश्वका आधार माना गया है*काया को ब्रह्म का मंदिर कहा गया है। *ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है । ब्रह्म को पवित्र शब्द , सर्वव्यापी सिद्धांत , अमूर्त रूप में देखा गया है।

*परम सत्य और वाक् को ब्रह्म का संबोधन माना गया है । ब्रह्म को सार्वभौमिक सिद्धांत के रूप में देखा गया है।

~~ ॐ ~~

No comments:

Post a Comment

Followers