गीता कहता है
भाग – 01
कर्ताभाव अहंकार की छाया है
अहंकार सत् से दूर रखता है
कर्म – योग ज्ञान – योग का द्वार है
ज्ञान प्रभु की अनुभूति का एक मात्र मध्यम है
क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है
ज्ञान की प्राप्ति योग सिद्धि से होती है
योग सिद्धि में देह के नौ द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित हो उठते हैं
ज्ञान प्राप्ति पर साधक की पीठ भोग की ओर रहती है
ज्ञान प्राप्ति का दूसरा नाम ही वैराज्ञ है
वैराज्ञ में कर्म का त्याग नहीं कर्म बंधनों की अनुपस्थिति का होना होता है
======ओम्=======