Sunday, September 29, 2013

तीन लोक कहा हैं ?

● गीता मोती - 05 ●
 गीता श्लोक - 3.22 , 11.20 , 15.17 
* गीताके ऊपर दिए गए तीन श्लोकोंमें तीन लोकोंके होनेंकी बात कही गयी है ,ये तीन लोक कौन - कौन से हैं ? 
 > पहले इन तीन श्लोकोंको देखते हैं ।
 * श्लोक - 3.22 > कृष्ण कहते हैं ,तीन लोकों में मेरा कोई कर्तव्य नहीं है और कोई अप्राप्य वस्तु नहीं है फिर भी मैं कर्म करता हूँ । 
* श्लोक - 11.20 > अर्जुन कह रहे हैं - स्वर्ग और पृथ्वीके बीचका आकाश आपके इस अद्भुत उग्र रूपसे भरा हुआ है और तीन लोकों के लोग आपके इस रूपकों देख कर दुखी हो रहे हैं । 
* श्लोक -15.17 > परमात्मा ,अब्यय और ईश्वर जिसे कहते हैं वह परम पुरुष है , जो तीन लोकों में प्रवेश करके सबको धारण किये हुए है तथा सबका पोषण करता है । 
# अब सोच उठती है कि ये तीन लोक कहाँ हैं ?
 * इस प्रश्नके लिए देखते हैं भागवत - 5.21 जहां बताया गया है कि भू-लोक और ऊपर द्युलोक के मध्य है अंतरिक्ष लोक जिसका केंद्र है सूर्य और जहाँ अन्य सभीं ग्रह एवं नक्षत्र भी हैं । सूर्य तीनों लोकोंमें प्रकाश देता है । 
<> अब आप समझ सकते हैं कि गीता और भागवतकी cosmology क्या बता रही है ?
 * भू लोक , अंतरिक्ष लोक और द्यु लोक तीन लोकों में सारा ब्रह्माण्ड है जो सीमा रहित सनातन , गतिमान और मायामय तीन गुणों की उर्जा से परिपूर्ण है ।
 ~~~ ॐ ~~~

Sunday, September 22, 2013

गीता मोती - 4

● गीता - 4.38 ●
न हि ज्ञानेन सदृशं
पवित्रमिह विद्यते ।
तत्स्वयं योगसन्सिद्धम्
कालेन आत्मनि विन्दति ।।
" कर्म योग सिद्धिसे ज्ञानकी प्राप्ति होती है " " Karma Yoga is the source of wisdom"
* ज्ञान और विज्ञान को समझें :
कर्म योग एक सहज माध्यम है क्योंकि कोई भी जीव एक पल भी कर्म रहित नहीं रह सकता और कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष रहित हो । कर्म में उठा होश कर्म बंधनों से मुक्त करता है और कर्म बंधनों की कर्ममें अनुपस्थिति उस कर्मको कर्म योग बनाती है । आसक्ति रहित कर्म ज्ञान योगकी परानिष्ठा है ( गीता 18.48-18.49 ) ।
* कर्मका अनुभव जब कर्म-करता रूप में गुणों को देखता है तब वह अनुभव वैराज्ञ में ले जता है । वैराज्ञमें सम्पूर्ण के केंद्रके रूप में ब्रह्मकी अनुभूति ही विज्ञान है और वैराज्ञ ज्ञानका फल है । ज्ञान से विज्ञान में पंहुचा जाता है ।
~~~~ ॐ ~~~~

Wednesday, September 11, 2013

गीता मोती - 03

● गीता मोती - 03 ● 
 <> गीता - 2.69 <>
 या निशा सर्व भूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
 यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने।। 
" वह जो सभीं भूतों केलिए रात्रि जैसा है उसमें संयमी लोग जागते रहते हैं और जो भूतों के लिए दिन जैसा है उसे मुनि लोग रात्रिके रूपमें देखते हैं "
 That what is night to all beings in that self controlled one keeps awake and that what is day for all beings , the self controlled one considers it as a night .
 °° भोगी और योगी की सोचमें 180° का अंतर होता है : भोगी जिसे रात्रि समझ कर उसके प्रति बेहोश रहता है ,योगी उसे परम समझ कर उसीमें होशमय बसा रहना चाहता है ।
 ** वह है क्या ? ** 
गीतामें प्रभु श्री कृष्ण अर्जुनको बता रहे हैं , भोगीके लिए मूलतः मैं रात्रि जैसा हूँ जिसके प्रति वह सो रहा है , वह मुझे मात्र कामना पूर्ति का एक माध्यम समझता है और योगीकी सोच भोगीकी सोचसे ठीक विपरीत होती है ।योगीके लिए मैं दिन हूँ जिसमें उसकी सभीं क्रियाएं होश में होती रहती हैं और वह उन क्रियाओं का द्रष्टा वना रहता है । भोगीके लिए भोग दिन जैसा होता है ; जिसके जीवन का केंद्र भोग होता है ,भगवान नहीं ,वह जो भी करता है उसके पीछे भोग प्राप्तिका लक्ष्य होता है । 
<> भोगी भोग केन्द्रित जीवन जीत है और सुख - दुःखके मध्य उसके जीवनकी नौका चलती रहती है और योगीके जीवनका आधार समभाव और समभावसे उपजा परमानन्द होता है , वह स्वयं केलिए होता ही नहीं जो कुछ भी उसकी इन्द्रियाँ समझती 
है ,देखती हैं वह सब प्रभु ही होते हैं । योगी के लिए माया निर्मित यह संसार प्रभुका फैलाव है और भोगी केलिए यह संसार उसके मन का फैलाव है ।
 ~~~ ॐ ~~~

Monday, September 9, 2013

गीता मोती - 02

●● गीता श्लोक - 6.3 ●●
आरुरुक्षो : मुने : योगं कर्म कारणं उच्यते ।
योग रूढ़स्य तस्य एव शमः कारणं उच्यते ।।
" कर्मयोगमें आरूढ़ होनेंके लिए कर्म माध्यम है और कर्मयोगका लक्ष्य है बुद्धिका केंद्र प्रभु को बनाना ।"
" Action is the mean for Karma - Yoga . When he elevates in yoga , tranguality of mind becomes the mean of the realization of Consciousness "
** शम के लिए भागवत 11.19.36 देखें जहाँ शम मन -बुद्धि की वह स्थिति है जहाँ प्रभु इस तंत्रका केंद्र होता है ।
** गीतामें कृष्ण कह रहे हैं :-----
अर्जुन ! कर्म तो सभीं करते हैं ,बिना कर्म कोई जीवधारी एक पल नहीं होता लेकिन इनमें कर्म योगी हजारोंमें कोई एक हो सकता है । कर्म जब योगका माध्यम हो जाता है तब उस योगी की बुद्धिका केंद्र मैं हो जाता हूँ ।
°° बुद्धिमें जो उर्जा होगी , वह ब्यक्ति वैसा ही होगा । अर्थात - कृष्णमय होनेंमें कर्म आप की मदद कर सकता है ।
~~~ ॐ ~~~

Wednesday, September 4, 2013

गीताके मोती ( भाग - 01 )

●● गीताके मोती ( भाग - 01 ) ●●
1- गीता सूत्र - 2.60 > मन आसक्त इन्द्रियोंका गुलाम है ।
2- गीता सूत्र - 2.67 > प्रज्ञा आसक्त मन का गुलाम है ।
3- गीता सूत्र -3.6 > हठसे इन्द्रियोंका नियंत्रण करना दम्भी बनाता है ।
4- गीता सूत्र - 2.59 > इन्द्रियोंको हठात बिषयोंसे दूर रखनेंसे क्या होगा , मन तो बिषयोंका मनन करता ही रहेगा ।
5- गीता सूत्र -2.58 > इन्द्रियाँ ऐसे नियंत्रित होनी चाहिए जैसे कछुआ अपनें अंगो पर नियंत्रण रखता
है ।
6- गीता सूत्र -3.34 > सभीं बिषय राग -द्वेष की उर्जा रखते हैं ।
7- गीता सूत्र -3.7 > इन्द्रिय नियोजन मन से होना चाहिए ।
8- गीता सूत्र - 2.15+2.68 > इन्द्रिय नियोजनसे स्थिर प्रज्ञता मिलती है जो मोक्ष का द्वार है ।
9- गीता सूत्र - 2.55 > कामनारहित मन आत्मा केन्द्रित करता है ।
°° गीताके 10 श्लोक ध्यानके 09 सीढियोंको दिखा रहे हैं , गीता ध्यानकी यात्रा आपकी अपनी यात्रा है और कर्म - ज्ञान योगकी साधनाके ये मूल सूत्र हैं । आप इन सूत्रोंको अपना कर ध्यान में डूब सकते हैं । ~~~ ॐ~~~

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