Sunday, June 21, 2009

गंगा सिसक रही है

गंगा को मनुष्य पृथ्वी पर क्यों लाया ?
गंगा को कौन प्रदूषित कर रहा है ? पशु , पंक्षी या कोई और जीव या मनुष्य स्वयं ।
गंगा को लानेवाला अपनी कामना पूर्ति के लिए गंगा का प्रयोग किया और आज हम-आप भी वही काम कर रहे हैं,क्या गंगा कोदेनेवाला यह नही समझ सका की इसका प्रयोग कैसे किया जानें वाला है ?
गंगा में अनेक प्रकार के जीव निवास करते हैं , गंगा को बरबाद नही करते , वे गंगा को निर्मल करनें में
दिन-रात जुटे हुए हैं, पर मनुष्य क्या कर रहा है ?
हमलोग गंगा में अपनों की अस्थियाँ डालते हैं और सोचते हैं की ऐसा करनें से उनको मुक्ति मिल जायेगी जो जीवन भर गंगा को प्रदूषित करते रहे हैं , क्या गंगा उनको नही पहचानती ? गंगा में पल रहे जीवों को हमलोग खाते हैं जिनके अंदर मनुष्य के अस्थियों का रस होता है अर्थात हमलोग अपनों के अस्थियों का अप्रत्यक्ष्य रूप में सेवन करते हैं ।
गंगा को मुक्ति दायिनी कहते हैं यदि ऐसा है तो फ़िर गंगा में रहनें वाले जीव अवश्य मुक्ति के पात्र होनें चाहिए पर उनको तो हमलोग खा जाते हैं । सोलहवी शताब्दी से आज तक जिस गति से विज्ञानं विकास किया है ठीक उसी गति से गंगा का प्रदुषण हुआ है अर्थात जैसे -जैसे मनुष्य का मन प्रदूषित हुआ , वैसे - वैसे गंगा प्रदुसित हुई ।
विज्ञानं का जन्म हुआ ज्ञान पानें के लिए लेकिन मनुष्य इसके माध्यम से ज्ञान के ऊपर अज्ञानकी चादर
डालनें लगा ।
गंगा को यदि आप बाहर से देखेंगे तो आप को मैली दिखेगी क्योंकि इन्द्रियां जानती ही नही हैं की सत क्या है ? सत चेतना से पकड़ा जाता है । गंगा तब भी निर्मल थी और आज भी निर्मल है उनके लिए जिनका अन्तः कर्ण निर्मल है । गंगा नदी नही है यह तो साधना-श्रो़त है और साधना-श्रोत मैला कैसे हो सकता है ?
गंगा घाट पर बैठ कर यदि आप चाहें तोवह सब पा सकते हैं जिनकी तलाश आप कर रहे हैं ।
गंगा शरणम् गच्छामि ।
=====ॐ=======

Saturday, June 20, 2009

गीता से मैत्री स्थापित करो

आप जरा इन बातों पर सोचें
१- लोग मन्दिर जाते तो हैं लेकिन उनमे प्रेम की लहर क्यों नही दिखती ?
२- मन्दिर से वापिश आनें वाले ऐसे दिखते हैं जैसे जेल से आरहें हों ,क्यों ?
३- भय में डूबे लोग मन्दिर जाते ही क्यो हैं ?
४- क्या एक भयभीत ब्यक्ति पत्थर की मूर्ती में परमात्मा को देख सकता है ?
५- गीता के नामपर लोग क्यों सिकुड़ जाते हैं ?
६- हिदू लोग गीताकोअपनें घर में क्यो रखते हैं ?
७- गीता पड़नें वाले भी कम नहीं पर सभी गीता से भयभीत क्यों हैं ?
८- गीता के नाम पर लोग महाभारत की कहानियाँ क्यों सुनाते हैं ?
९- गीता कर्म के माध्यम से ज्ञान देता है लेकिन क्या भय के साथ ज्ञान पाया जा सकता है ?
१०- गीता अर्जुन को भय मुक्त करता है और हम गीता से डरते हैं , यह बिरोधाभास क्यों ?
११- गीता प्रेम की उर्जा ह्रदय में भरता है लेकिन इस बात को हम नहीं समझना चाहते , क्यों ?
१२- गीता भाव से भावातीत की यात्रा कराना चाहता है लेकिन हम भाव को छोड़ना नहीं चाहते , क्यों ?
यहाँ आप के लिए १२ बातों को दिया जा रहा है जो आप में गीता की उर्जा का संचार करनें की कोशिश करेंगे ।
=====ॐ=======

Tuesday, June 16, 2009

दुःख का कारन वह है

हम स्वयं को कितना जानते हैं या जाननें की कोशिश करते हैं ?
हम उसको भी जानते तो नही हैं पर जाननें की कोशिश जरुर करते रहते हैं ।
हम कभी यह नही समझाना चाहते की हमारे दुःख का कारन मैं स्वयं हूँ , न की कोई और ।
जिस दिन यह पता चलनें लगता है की दुःख का कारन मैं हूँ उस दिन से हम रूपांतरित होनें लगते हैं ,ध्यान की किरण निकलनें लगाती है , हमारी दृष्टि बदलनें लगाती है , सभी ग्यानेंद्रिओं से मिलनें मिलनें वाली सूचनाओं से सुख की किरण निकलती दिखाई देनें लगतीहै और वह जो हमारे दुःख का कारण था वह सुख का माध्यम बन जाता है ।
बुद्ध कहते हैं .....हम दूसरे की गलती पर स्वयं को दंड देते हैं , आप एक काम करें , जब कभी दुखी हों तो दुःख के कारन को तलाशें , दुःख का कारण आप नही होंगे और कोई होगा, आप हो भी कैसे सकते हैं ? ऐसा क्यों होता है ?
मन का स्वाभाव है परिधि पर चक्कर काटना वह स्वयं कभीं भी केन्द्र पर नही रहता । परिधि है संसार जो बिषयों का माध्यम है तथा जो मन में भ्रम पैदा करता है । भ्रमीत मन तब तक शांत नहीं हो सकता जब तक वह परिधि पर होगा । मन की परिधि का केन्द्र है जीवात्मा जहाँ आकर मन निर्मल हो जाता है , भ्रम रहित हो जाता है और शांत हो जाता है ।
बिषय से जीवात्मा पर मन को ले आनें का प्रयाश ध्यान विधियां है और जब प्रयाश सफल होता है तब सत्य क्या है? का पता चल जाता है - हम कुछ और हो चुके होते हैं । मन का निवाश जब जीवात्मा बन जाता है तब वैराग्य मिलता है , वैराग्य में ज्ञान मिलता है जो ब्यक्त नही हो सकता । ज्ञान वह माध्यम है जिससे परमात्मा की अनुभूति होती है ।
अपने मन को बाहर से अंदर की ओर घुमाओ --यह तब सम्भव है जब मन का पीछा करनें की आदत पड़ जाए ।
=======ॐ=======

Monday, June 15, 2009

ध्यान परमात्मा का द्वार है

मनुष्य के पास तन,मन,बुद्धि और ह्रदय चार रास्ते हैं जिनसे परमात्मा से जुडा जा सकता है ।
तन ध्यान में इन्द्रीओं से मैत्री स्थापित की जाती है ।
मन- बुद्धि ध्यान में विचारों को समझना होता है ।
तन , मन-बुद्धि जब नियोजित हो जाते हैं तब..........
ह्रदय का द्वार खुलता है ।
जब ऐसा होता है तब........
अंहकार पिघलनेंलगता है और प्रीति की धारा ह्रदय में बहनें लगती है ।
अंहकार और प्रीति एक साथ नहीं रह सकते ।
अंहकार अपरा प्रकृत के आठ तत्वों में से एक है जो इन्द्रियों से ह्रदय साधना तक किसी न किसी रूप में रहता है ।
अंहकार की गुरुत्वा शक्ति इतनी मजबूत होती है की यह वैराग्यावस्था तक भोग में वापिस खीच सकता है
अंहकार तिरोहित होनें पर तेरा-मेरा का भाव नहीं उठाता ।
ह्रदय से सहस्त्रार तक की साधना में अंहकार सूक्ष्म रूप में होता है ।
सहस्त्रार चक्र की पकड़ जब समाप्त होती है तब वह योगी गुनातीत योगी होता है जो----------
हर पल परमात्मा से परमात्मा में अपनें को पाता है और प्रशन्न रहता है ।
ध्यान रूपांतरण का माध्यम है इसको मनोरंजन का बिषय न समझें ।
====ॐ=======

Wednesday, June 10, 2009

भारत कब भटक गया ?

ईशा बाद पहली शताब्दी में यूनान से एक खोजी भारत आए और वापिस जा कर उन्होंनें भारत के सम्बन्ध में यह बात लिखी .................

In India I found a race of mortals living upon the earth , but not adhering
to it.........possessing everything but possessed by nothing------Apolloneous tyanaeus.

यह समय था महाबीर एवं बुद्ध के प्रभाव का । महाबीर यूनान के थेल्स से लगभग 25 वर्ष छोटे थे और बुध की जब मृत्यु हुयी तब सुकरात 16-17 वर्ष के थे । पश्चिम में थेल्स से अरिस्तोत्ल [from Thales to Aristotle ] तक जो विचारधारा बही उस से आधुनिक विज्ञानं का जन्म हुआ । भारत में महाबीर-बुद्ध के बाद ऐसा न हो पाया। पश्चिम में दर्शन से विज्ञानं संघर्ष करके उपर आया जैसे एक बीज से तना धरतीको फाड़ कर उपर आता है पर भारत में ऐसा न हो पाया । गैलिलियो जब बोले--पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ़ चक्कर काटती है , धर्म गुरुओं से उनको अनेक मुशीबतें मिली, उनको घर में नजर बंद कर दिया गया । सुकरात को जहर दिया गया। पश्चिम में सुकरात को नास्तिक कहा गया और भारत में महाबीर - बुद्ध को नास्तिक की संज्ञा दी गई ।

गैलिलियो की मृत्यु 1642 में हुयी और न्यूटन का जन्म हुआ । संन 1879 में मैक्सवेल की मृत्यु हुई और आइंस्टाइन का जन्म हुआ --इस तरह पश्चिम में विज्ञान की हवा चलती रही लेकिन भारत में ऐसा कुछ न हो पाया ।

Max Planck, Erwin Schrodinger, Prof. Einstein सभी नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक गीता तथा उपनिषद् प्रेमी थे ।

भारत में जब घर-घर में तुलसी के रामायण का जोर था उस समय केप्लर , टैको ब्राह्मे तथा गैलिलियो आकाश में तारों को देख कर गणित की रचना कर रहे थे ।

भारत में 10 c ce के बाद भक्ति वाद की ऐसी हवा बही की लोग सब कुछ भूल गए और भारत गुलाम होता चलागया - गजनी से ईस्ट इंडिया कम्पनी तक भारत गुलाम बना रहा। अंगरेजों के समय कुछ लोग जैसे रमन, सत्यान्द्रनाथ बोस , रामानुजन तथा जगदीश चन्द्र बोस आए लेकिन एक हवा न चल पायी .....अब 21 वीं शताब्दी में भारत के नौजवानों से काफ़ी उम्मीदें हैं ।

=====ॐ=======

Thursday, June 4, 2009

भारत क्यों पिछड़ गया ?

भारत वैदिक युग से [रिग-वेद१७००-१००० ईशा पूर्व ] से चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य [सन ५०० ईशा बाद ] तक विश्व में वैज्ञानिक विचारों को दिया लेकिन बाद में क्या होगया ?
वैदिक गणित के रूप में सुल्बा-सूत्रों को विश्व के सामनें 800-200 BCE में दिया।
जैन-गणित उपलब्ध था 400 BCE में ।
200 BCE में वैशेशिका के माध्यम से कण-विज्ञानं दिया गया ।
200 BCE में पतंजलि अपनें योग-सूत्रों में बताया- मनुष्य के शरीर में हल्का विद्युत - क्षेत्र है जो की आधुनिक
विज्ञानं का एक अहम् सूत्र है।
पाणिनि जी 500 BCE में कुछ अति असाधारण गणितीय सूत्रों को दिया ।
आर्यभट 500 CE में अपने आर्यभाटिया में कोस्मोलोगिकल मॉडल के साथ कहा की पृथ्वी अपने केंद्र के चारों
तरफ घुमती है । आर्यभट गणित में पाईको स्पष्ट किया - अर्थात he explained the relation between circumference and the diameter of a circle as 3.1416 and said that pai is an irrational number. This concept was proved in1761 by Lambart.
आर्य भट्ट 23 वर्ष की उम्र में कई गणतीय बातें बतायी ।
सन 830 के आस-पास इनकी किताब को अरबी में अनुबाद किया गया जो धीरे-धीरे अरब से पश्चिम में पहुँच
गयी।
चन्द्रगुप्त मौर्य [322-298 BCE] में अर्थ शास्त्र विश्व का पहला अर्थ शास्त्र था और उस समय मुद्रा का चलन हुआ ।
वैशेशिका [200 BCE ] में एटम के सम्बन्ध में आइन्ताइन-बोहर सिद्धांत दिया गया है ।
यह सब होते हुए भी भारत क्यों पिछड़ गया ?
आप को सोचना चाहिए ।
=====ॐ=======

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