Tuesday, June 21, 2011

गीता अध्याय –04

[ ] ध्यान विधियां

प्रयोग में लाये गए गीता - सूत्र

4.26 – 4.27 , 4.29 – 4.30 , 5.27 , 5.28 , 6.15 ,8.8 , 8.10 , 8.12

गीता-सूत्र4.26 – 4.27

कुछ योगी श्रवण – क्रिया को संयम – अग्नि में हवन करते हैं ….

कुछ योगी ध्वनि आदि विषयों को श्रवन – इन्द्रिय में हवन करते हैं …..


कुछ इन्द्रिय कर्मों को …..

कुछ प्राण वायु-कर्मों को ….

आत्म – संयम में हवन करके ज्ञान की ज्योति को प्राप्त करते हैं//


यहाँ यज्ञ के माध्यम से मन – योग की बात बता रहा है , गीता /

योग में मन के दो तत्त्व हैं ; विषय और इन्द्रियाँ , इन्द्रियों में पांच ज्ञान इन्द्रियाँ प्रमुख हैं /

विषय – इन्द्रिय वे माध्यम हैं जिनसे आत्मा प्रत्यगात्मा से परागात्मा में रूपांतरित हो जाता है /

परागात्मा को प्रत्यगात्मा बनाना ही पतांजलि - योग का लक्ष्य है /

आत्मा को विकारों से मुक्त करना योग है और यह संभव तब है जब … .

विषय एवं ज्ञान इन्द्रियों के प्रति पूर्ण होश बना हो //

मन से इन्द्रियों के गुणों को समझना … ...

इन्द्रियों के माध्यम से विषयों के स्वभाव के प्रति होश बनाना … .

मन को निर्मल करना है---

मन को निर्विकार करना है---

और

निर्विकार मन

निर्वाण दिलाता है//


====ओम=====




Wednesday, June 15, 2011

गीता अध्याय 04

[]यज्ञ सम्बंधित सूत्र

सूत्र - 4.24, 4.25 + 9.16 , 4.28 , 4.31 , 4.32 , 4.33

गीता सूत्र4.24

प्रभु कहते हैं … ...

हे अर्जुन जिस यज्ञ में यज्ञ कर्ता को अर्पण में,घृत में,अग्नि में,एवं अन्य सभीं बस्तुओं मे ब्रह्म दिखता है वह यज्ञ करता ब्रह्म स्तर का होता है//

गीता सूत्र4.25

कुछ लोग देवताओं के लिए यज्ञ करते हैं और कुछ अग्नि को ब्रह्म समझ कर यज्ञ करते हैं /

पहली श्रेणी उनकी है जो कामना पूर्ति के लिए यज्ञ करते हैं और दूसरी श्रेणी उनकी है जो सर्व कल्याण के लिए यज्ञ करते हैं //

गीता सूत्र9.16

यहाँ प्रभु कहते हैं … ..

मैं यज्ञ हूँ , पितरों को दिए जानें वाला तर्पण हूँ , औषधि हूँ , मन्त्र हूँ , घृत हूँ , अग्नि हूँ ,

आहुति हूँ अर्थात यज्ञ में सब कुछ मैं ही हूँ //

गीता सूत्र4.28

संपत्ति , तप , योग , ज्ञान एवं स्वयं के अनुभव का भी यज्ञ होता है //

गीता सूत्र 4.31

यज्ञ के बिना मुक्ति पाना संभव नहीं //

गीता सूत्र 4.32

वेदों में नाना प्रकार की यज्ञों को बताया गया है जो कर्मों के फल प्राप्ति के लिए हैं //

गीता सूत्र4.33

यज्ञों का फल है गया प्राप्ति //

ज्ञान है …...

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध

और क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ब्रह्म मय बनाता है//

यज्ञा का अर्थ है -----

बंधनों का त्याग


=====ओम=======


Thursday, June 9, 2011

गीता अध्याय - 04

[ ] योग – सूत्र

अगले सूत्र

अभीं सूत्र – 4.35 के सम्बन्ध में हम गीता के कुछ सूत्रों को देख रहे हैं और यहाँ इस सम्बन्ध में

कुछ और सूत्रों को देखते हैं … ....

  • सूत्र 2.52

  • मोह के साथ वैराज्ञ का होना संभव नहीं

  • सूत्र10.3

  • मोह रहित ब्यक्ति प्रभु को तत्त्व से समझता है

  • सूत्र 4.37

  • मोह समाप्ति पर ज्ञान की किरण फूटती है

  • सूत्र4.38

  • योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है

  • सूत्र 4.41

  • ज्ञान से कामना का उठाना समाप्त हो जाता है

  • सूत्र4.42

  • संदेह अज्ञान की पहचान है

    गीता के06सूत्र बता रहे हैं-------

    मोह,संदेह,कामना आदि अज्ञान के तत्त्व हैं उनको एक – एक करके जो समझना चाहते हैं

    वे समझ तो सकते नहीं उनमें अहंकार और सघन हो जाता है/

    ज्ञान की किरण जब फूटती है तब गुण तत्वों का स्वतः उठाना समाप्त हो जाता है/

    ज्ञान,मन – बुद्धि में बहती निर्विकार ऊर्जा का पहचान है/ज्ञान किताबों से नहीं मिलता

    यह चेतना की बूंदों से बुद्धि को मिलता है;चेतना की बूंदे ध्यान पकनें पर टपकती हैं/

=====ओम======




Saturday, June 4, 2011

गीता अध्याय- 04

[ ] योग सूत्र


यहाँ हम अब अगले सूत्रों को देखनें जा रहे हैं-------

गीता सूत्र –4.34 + 4.35

प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं … ....

अर्जुन!तुम्हें किसी सत् गुरु की शरण में जाना चाहिए जो तत्त्व ज्ञान के माध्यम से तुम्हारा

मोह दूर कर सकता है//

Here Lord Krishna says …..

Arjuna ! You should surrender to a master who has perfected his Yoga and has realized the

ultimate truth . Such a Guru can take you out of your delusion .

अब दो सूत्र अध्याय – 18 से … ..

सूत्र –18.72

श्री कृष्ण कहते हैं -------

अर्जुन!क्या एकाग्र चित से तुमनें गीता सुना?क्या तुम्हारा अज्ञान जनित मोह समाप्त हो गया?

सूत्र –18.73

यहाँ अर्जुन कह रहे हैं … ..

हे अच्युत!मेरा मोह समाप्त हो गया है,मैं अपनी खोयी हुयी स्मृति प्राप्त कर ली है,यह सब

आप के प्रसाद स्वरुप मुझे प्राप्त हुआ है और अब मैं आप की शरण में हूँ/


यहाँ ऊपर के दो सूत्रों में आप को मोह , स्मृति एवं अज्ञान का समीकरण मिलता है , उसे

ठीक से समझनें का यत्न करें //


====ओम======


Wednesday, June 1, 2011

गीता अध्याय –04

अध्याय के अगले सूत्र

सूत्र –4.20 , 4.21 , 4.22 , 4.23


सूत्र कहते हैं …...

आसक्ति,कामना,कर्म – फल की चाह रहित संभव में स्थित कर्म – योगी गुणों से अछूता

ज्ञानी होता है//

अब एक – एक सूत्र को देखते हैं------

सूत्र- 4.20

आसक्ति एवं कर्म फल की चाह जिस कर्म में न हों वह कर्म करनें वाला कर्म – योगी होता है//

सूत्र –4.21

केवल जीवन निर्वाह के लिए कर्म फल की चाह न रखते हुए कर्म करनें वाला पाप से अछूता

रहता है//

सूत्र –4.22

समत्व – योगी कर्म – बंधनों से मुक्त रहता है//

सूत्र –4.23

कर्म बंधनों से मुक्त चेतन ह्रदय वाला ज्ञानी जो भी करताहै वह यज्ञ होता है//


Here Gita says ….....

Acton without attachment , desire , passion , delusion and ego makes one Karma – Yogi who

is in wisdom and whatever he does is Yagya .


====ओम====


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