Tuesday, April 29, 2014

एक फ़क़ीर की सोच

<> एक फ़क़ीर , सम्राटके महल - द्वार पर खड़ा सुरक्षा कर्मी से ऊँची आवाज में कुछ पूछ रहे थे । फ़क़ीर की आवाज में कुछ ऐसी कशिश थी जो सम्राट को द्ववार पर आनें को मजबूर कर दी । सम्राटकी आँखें जब फ़क़ीर की आँखों से मिली तब वह भूल ही गया कि वह सम्राट है और एक भक्त की भांति फ़क़ीर को महलके अन्दर आनें को आमंत्रित किया । * सम्राट महलके अन्दर फ़क़ीरको उचित आसन देनें केबाद पूछे ,प्रभु ! आप द्वारपालसे किस बात पर बहस कर रहे थे ? फ़क़ीर बोले ," मैं कह रहा था कि इस सराय में आज मुझे रुकना है और वह कह रहा था कि यह सराय नहीं सम्राट का महल है । " मैं इसे महल के रूप में नहीं मान रहा था और वह इसे सराय माननें को तैयार न था ,बश इतनी सी बात थी । * सम्राट बोले ," प्रभु ! यह तो मेरा महल है जिसे आप एक सराय समझ रहे हैं ,फिर तो वह द्वारपाल ठीक कह रहा था लेकिन आप यहाँ जितनें दिन चाहें रुक सकते हैं , यह मेरा भाग्य है की मेरे महल में आप जैसे फ़क़ीर के पैर पड़े हैं । * फकीर कुछ बोले नहीं ,दीवारों पर लगी उन तस्बीरों को देखते रहे जो सम्राट के पूर्बजों की थी । फ़क़ीर तस्वीरों को देखते -देखते हसने लगे । फ़क़ीर कहते हैं ,देखो ,इस तस्बीर को , कुछ साल पहले ये कहते थे कि यह मेरा महल है , फिर इस तस्बीर को देखो ,ये भी यही बात कहते थे और आज तुम उनकी कही बात को दुहरा रहे हो ,आखिर बात क्या है ? जहां लोग रहते है वह महल या घर होता है और जहां लोग आते - जाते रहते हैं उसे सराय कहते हैं ,फिर तुम समझो कि यह महल है या फिर सराय । # सम्राट फ़क़ीर के चरणों में गिर पड़ा और अगले दिन अपनें सेनापति को राज्य सौप कर फ़क़ीर के साथ हो लिया । ** सोचिये इस कथा पर ** ~~~ सत नाम ~~~

Thursday, April 24, 2014

भागवतकी कुछ मूल बातें

<> कुछ प्रमुख बातें <> 
भागवत : 12.1+ 12.2 
> परीक्षित से सन 2013के मध्यका  समय 3450 वर्ष बनता है ।परीक्षित का जन्म महाभारत युद्धके ठीक बाद का है। मेहर गढ़ सभ्यता 7000 साल ईशापूर्व की आंकी गयी है । 
भागवत 3.4.13 
° जब प्रभुके परम धाम जानेंका समयआया…
 ° जब यदु -कुलका अंत होनेको आया … 
° जब द्वारकाके समुद्रमें विलय होनेंका समय आया … 
● तब प्रभास क्षेत्रमें सरस्वती नदीके किनारे  एक पीपल-पेड़के नीचे चतुर्भुज रूपमें प्रभु श्री कृष्ण अपनें मित्र उद्धवको भागवतकी परिभाषा कुछ इस प्रकार बता रहे हैं :-- 
● कल्पके उदय होते समय मेरे नाभि कमल पर बैठे ब्रह्माको जो मैं ज्ञान दिया था , विवेकी लोग उसे श्रीमद्भागवत पुराण 
कहते हैं ,। 
* भागवत में 18000 श्लोकों हैं जो 12 स्कंधों में बिभक्त हैं । 
 * श्री शुकदेव जी परीक्षितसे भागवत में निम्न 10 बातों की चर्चा करते हैं :--- 
सन्दर्भ <> भागवत - 2.10 <> 
1- सर्ग : <> 05 महाभूत + 05 तन्मात्र + महत्तत्त्व + अहंकार + इन्द्रियों की उत्पत्ति गुणों में प्रभु द्वारा लाये गए परिवर्तन से हुयी और इनको सर्ग की संज्ञा विचारकोंनें दी ।तीन गुणोंका माध्यम प्रभु की माया है और प्रभु माया से अप्रभावित हैं । माया में कालके माध्यम से गतिका पैदा होना सर्गों के उत्पत्ति का कारण है । सर्ग मूल तत्त्व हैं जिनसे विसर्गों की रचना ब्रह्मा द्वारा बाद में की गयी । 
2- विसर्ग : <> ब्रह्माकी रचना विसर्ग कहलाती है । 
3- स्थान : <> स्थान प्रभुकी उस उर्जा - क्षेत्रका नाम है जो विनाशकी ओर कदम उठाती सृष्टिको एक मर्यादा में रखती है । 4- पोषण : <> प्रभुका भक्तों पर जो स्नेह बरसता रहता है , उसे पोषण कहते हैं । 
5- ऊति : <> कर्म - बंधन उक्ति है ।कर्मके सम्बन्ध में गीता कहता है ----- * कर्म मुक्त एक पल केलिए भी होना संभव 
नहीं - गीता - 18.11, 3.5 * कर्म विभाग - गुण विभाग वेदका प्रमुख विषय है - गीता 3.28 * कर्म कर्ता तीन गुण हैं और कर्ता भावका आना अहंकार की छाया है - गीता -3.27 * कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोषमुक्त हो - गीता -18.40 * आसक्ति रहित कर्म ज्ञानयोग की परानिष्ठा है - गीता 18.49-18.50 ¢ - कर्म सवको मिला हुआ वह सहज माध्यम है जो राग से वैराज्ञ में पहुँचाता है और वैराज्ञ परम गतिका द्वार है ।। 
6- मन्वन्तर : <> शुद्ध भक्ति और शुद्ध धर्मका अनुष्ठान कर्ता , मन्वन्तर कहलाता है । 
7- ईशानुकथा : प्रभु की विभिन्न अवतारों की <> कथाएं ईशानुकथा कहलाती हैं । 
8- निरोध : <> जीवोंका प्रभु में लीन होना , निरोध है । 
9- मुक्ति : <> परमात्मा नें स्थिर होना , मुक्ति है । 
10- आश्रय : <> परम ब्रह्म ( जिससे और जिसमें यह सृष्टि है ) आश्रय कहलाता है । 
>> ध्यान से समझें << 
* ऊपर बतायी गयी 10 वातों को .... 
° प्रभु सृष्टि रचना से पूर्व ब्रह्माको बताया । 
° वेदव्यास अपनें पुत्र शुकदेव जीको भागवत रचना करनेंके बाद  सुनाया , उस समय शुकदेव जी 16साल से कम उम्र के थे ।
 ° सनकादि ऋषियों द्वारा भगवत कथा आनंद गंगा घाट हरिद्वार क्षेत्र में भक्ति एवं उसके पुत्रों ज्ञान , वैराज्ञ के कल्याण केलिए नारद द्वारा ब्यवस्थित यज्ञ में सुनाया गया ।
 ° प्रभु कृष्ण अपनें मित्र उद्धवको प्रभास क्षेत्र में अपनें परमधाम यात्रा के समय सुनाया ।
 ° 16 वर्षीय शुकदेव जी सम्राट परीक्षित को उनके अंत समय में सुनाया ( उस समय परीक्षित की उम्र लगभग 60 साल की रही होगी ) । 
° नैमिष आरण्य में सूत जी सौनक आदि ऋषियों को कलि युगके आगमनके समय सुनाया । 
# भागवत की मूल बातों को अपनें ध्यानका बिषय बनायें ।
 ~~ ॐ ~~

Wednesday, April 23, 2014

भागवतके कुछ मोती - 1

श्रीमद्भागवत पुराण से --- भाग -01
 <> कुछ ध्यान सूत्र <> 
1- भागवत : 1.5 > जिस चीज के खानें से जो मर्ज़ होता है उस मर्जके लिए वह वस्तु दवाका काम भी कर सकती है यदि उसका प्रयोग औषधि विधि से किया जाय । 
2- भागवत : 9.6 > ऋगवेदी सौभरि ऋषि अपनीं 50 स्त्रियों के साथ भोग में रहे और अंत में अपनें अनुभव को कुछ इस प्रकार ब्यक्त किया :--- " मोक्ष की चाह रखनें वाले को भोगी की संगति से दूर रहना चाहिए ।" 
 3- भागवत : 8.1> नैष्कर्म्य की सिद्धि ब्रह्ममय होनें की स्थिति है । 
4- भागवत : 11.13 > तीन गुणों की पकड़ बुद्धि तक सीमित है । 
5- यहाँ गीता : 14.5 + 3.37 + 3.40 को भी देखें जो कहते हैं ---- 5.1> तीन गुण आत्मा जो देह में रोक कर रखते हैं। 5.2> क्रोध काम का रूपांतरण है और काम राजस गुण का प्रमुख तत्त्व है । 5.3>काम का सम्मोहन बुद्धि तक सीमित है ,आत्मा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता । 
6- भागवत : 3.10> ब्रह्मा प्रभुके राजस गुणी अवतार हैं। 
7- भागवत : 1.3> 11 इन्द्रियाँ +05 महाभूत ये प्रभु की 16 कलाये हैं ।
 8- भागवत : 1.5> नारद व्यास से कहते हैं : वह शास्त्र - ज्ञान अज्ञान है जो प्रभुमय न कर सकें।
 9- भागवत : 2.2> ज्ञान से चित्त की वासना नष्ट होती है । 10- भागवत : 1.2> आसक्ति का अंत सत्संग से संभव है । ~~~ रे मन कहीं और चल ~~~

Monday, April 21, 2014

गुरु प्रसाद

https://www.dropbox.com/s/c54sberr5lipttk/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6

Tuesday, April 8, 2014

गीता दृष्टि

●गीताके मोती - 19●
* गीता एक पाठशाला है जहाँ उनको परखनें और समझनें का मौका मिलता है जिनको गुण तत्त्व या भोग तत्त्व कहते हैं जैसे आसक्ति ,कामना ,काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,भय , आलस्य और अहंकार ।
* गीता कहता है , गुण तत्वों से परिचय अभ्यास योग से होता है और यह परिचय सभीं तत्वों के स्वभावों से अवगत कराता है ।
* गुण तत्वों की परख बुद्धि योग की अहम कड़ी है जो अनिश्चयात्मिका बुद्धि को निश्चयात्मिका बुद्धि में बदल कर समभाव में बसा देती है । समभाव में स्थित मन -बुद्धि एक ऐसा माध्यम बन जाते हैं जहाँ जो भी होता है वह परम सत्य ही होता है ।
* गीता की छाया में बैठना ध्यान है और ध्यानसे मनुष्य ज्ञान -विज्ञान की उर्जा से क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ के रहस्य को देखता है और यह रहस्य ही सांख्य योग का केंद्र है ।
* गीता कर्म योग की गणित देता है जहाँ कर्म कर्म तत्वों की पकड़ के बिना होता है और ऐसे कर्म का केंद्र निराकार प्रभु होता है । कर्म तत्वों की पकड़ के बिना होनें वाला कर्म ध्यान है जहाँ इन्द्रियाँ अपनें -अपनें बिषयों के सम्मोहन से दूर अन्तः मुखी हो जाती है ,मन प्रभु पर केन्द्रित होता है और बुद्धि तर्क -वितर्क से परे निर्मल आइना जैसी हो उठती है जिस पर बननें वाली तस्बीर निराकार ब्रह्म की होती है जिसे इन्द्रियाँ ब्यक्त नहीं कर सकती पर उसे नक्कार भी नहीं सकती ।
* क्रोध को प्यार में ...
* अहंकार को श्रद्धा में ...
*आसक्ति -कामना को भक्ति में ...
बदलनें की उर्जा गीता में हैं ।।
~~~ हरे कृष्ण ~~~

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