Monday, November 17, 2014

गीता के मोती - 36

" सत्त्वं रजः तमः इति गुणाः प्रकृतिसंभवः । 
निबध्न्ति महाबाहो देहे देहिनम् अब्ययम् ।।" 
~~ गीता - 14.5 ~~
 * भावार्थ * 
 " प्रकृति के तीन गुण - सात्त्विक ,राजस और तामस,शरीर में अब्यय जीवात्मा को बाँध कर रखते हैं "
 > प्रभु श्री कृष्णके इस सूत्र पर बार -बार मनन करें ।< 
<> यदि जीवात्मा देह में तीन गुणों के कारण है तो फिर गुणातीतके देह में जीवात्माको कौन रोक कर रखता है ? इस प्रश्न के सम्बन्ध देखें , इस सन्दर्भ को :---- 
# परमहंस श्री रामकृष्ण जी प्रवचन देते समय बोलते -बोलते अपनीं रसोई में पहुँच जाया करते थे और माँ शारदा वहाँ पकौड़े आदि जो बना रही होती थी ,उसे उठा कर खाते हुए पुनः शिष्योंके मध्य आ कर प्रवचनको आगे बढ़ाते रहते थे । एक दिन एक अद्भुत घटना घटी । माँ पकौड़े बना रही थी और पकौड़े की गंध से परम हंस जी आकर्षित हो कर आ पहुँचे रसोई में और उठा लिए पकौड़े तथा खाते हुए पुनः शिष्योंके मध्य चल पड़े पर माँ कहनें लगी ," आपको सभीं पागल कहते ही हैं और इस प्रकार पकौड़े खाते हुए प्रवचन देते देख कर कोई भी आपको पागल कह सकता है ।यह बात माँ मजाक में कहा था पर परम हंस जी पकौड़ा खाना बंद कर दिया और मुस्कुराकर माँ से कहा ," जिस दिन तुम पकौड़े लेकर आओगी और मैं तुम्हारी तरफ पीठ कर लूँगा ,उस दिन के बाद तीन हफ़्तों के अन्दर मैं अपनीं देह त्याग दूंगा , खाना ही तो एक बंधन है जो आत्मा को मेरे देह में रोक रखा है लेकिन जिस दिन मेरा काम पूरा हो जाएगा ,यह बंधन भी स्वतः टूट जाएगा । 
* माँ इस बात को गंभीरता से नहीं लिया पर परमहंस जी थीक 27वें दिन वही किया जो बोल था ; माँ बुलाती रही भोजन करनें केलिए पर परमहंस चुपचाप बैठे रहे । माँ जब थाली ले के आई ,परम हंस जी उनकी ओर पीठ कर ली । माँ तो सोचती रही कि मजाक कर रहे हैं पर वे तो अपनें देहको छोड़ रहे आत्माके द्रष्टा बनें हुए थे , माँ ज्योंही उनको हिलाया ,उनका शरीर लुढक गया ।
 ** परम हंस जी कहते थे ," गुणातीत के देह में जीवात्मा तीन सप्ताह से अधिक दिन तक नहीं रहता । "
 # अब पुनः गीता सूत्र : 14.5 को समझें # 
~~~ ॐ ~~~

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