Wednesday, February 29, 2012

सभीं ब्यक्त अब्यक्त से हैं


गीता सूत्र –2.28

अब्यक्त आदीनि भूतानि,ब्यक्त मध्यानि भारत/

अब्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना//

beginning and end of all are from the unknowable and to unknowable

सब का आदि-अंत अब्यक्त से अब्यक्त में है

Thales [ 624 – 546 BCE ] बुद्ध महावीर के लगभग समकालीन पश्चिमी दार्शनिक जिनके कहे हुए बचनों के आधार पर आज के विज्ञान की नीव डाली गयी थी , उनके एक शिष्य थे अनाक्सिमंदर / थेल्स एक बार बोले , जीवों के होनें का मूल श्रोत पानी है / थेल्स के शिष्य अनाक्सिमंदर तुरंत बोल पड़े , नहीं गुर ूजी ऐसा संभव नहीं , ज्ञात का श्रोत ज्ञात कैसे हो सकता है , ज्ञात अज्ञात के गर्भ की देंन हैऔर वह उस समय से थेल्स से अलग हो कर अपना मार्ग स्वयं बनाया /

पश्चिम में जब सूर्य डूबता हैतब पूर्व में उदय होता है , पश्चिम में जब सूर्य निकालता है तब पूर्व में डूबता है , यह घटना प्रकृति की देन है इसे मनुष्य कभीं नहीं बदल सकता / पश्चिम का आधुनिक विज्ञान उनके दार्शनिक विचारों वाले ऋषियों की सोच का फल है लेकिन भारत में कुछ ऐसा न हो सका / पश्चिम में विज्ञान धर्म से युद्ध कर के अंकुरित हुआ है और भारत में आज भी अंकुरित हो रहे विज्ञान के ऊपर धर्म का कम्बल डाला जा रहा है / पश्चिम मेंथेल्स , पाइथागोरस , सुकरात , आर्कमिडीज , प्लेटो , अरिस्टोटलएक के बाद एक दार्शनिक आते रहे उस समय उनके विचारों को एकत्रित करनें वाले भी थे जिनको बहुत कम लोग जानते है और उनके विचारों के आधार पर गणित की मदद से विज्ञान की मजबूत नीव डाली गयी लेकिन भारत में क्या हुआ ? बुद्ध - महावीर के दर्शन एवं उनके समकालीन यूनान के दर्शन में कोई मौलिक अंतर नहीं है / भारत का दर्शन पश्चिम में पहुँच कर विज्ञान के नाम से पुनः भारत आया और आ रहा है लेकिन भारत में बुद्ध – महावीर को नास्तिक करार दे दिया गया और परम्परा से उनके विचारों को हटा दिया गया एवं उनके शास्त्रों को जला भी दिया गया / भारत के ऋषि गण असुरों को युद्ध की शिक्षा दिया करते थे और स्वयं की रक्षा के लिए प्रभु को यज्ञों के माध्यम से बुलाते थे , हैं न मजे की बात ?


पाश्चिम अब्यक्त को खोजते - खोजते अंतरिक्ष में अब्यक्त उर्जा [ unknown energy or black energy ] तक पहुँच गया लेकिन भारत ---- ? भारत के लोग भारत से बुद्ध – महावीर के विचारों को धो डाला लेकिन पस्श्चिम में उनके विचारों के रहस्यों में वैज्ञानिक समुदाय आज भी जुटा हुआ है /

अब्यक्त क्या है?

वह जिसके होनें में कोई संदेह न हो लेकिन जिसको ब्यक्त भी करनें का कोई उपाय न हो वह है अब्यक्त /


=====ओम्======



Monday, February 27, 2012

गीता सन्देश भाग दो







  • कामना रहित कर्म ही कर्म संन्यास है





  • कामना अर्थात कर्म बंधन का कर्म में न होना उस कर्म को योग बनाता है





  • कामना अर्थात बंद मुट्ठी में कुछ और के आनें की सोच;हम मुट्ठी को खोलना नही चाहते हौर यह भी चाहते हैं कि इसमें वह आ जाए जो हम देख रहे हैं,यह कैसे संभव है और इस कारण से कामन को बुद्ध दुस्पुर कहते है





  • अहंकार रहित बुद्धि का गुलाम नहीं





  • सात्त्विक गुण धारी सर्वत्र अब्यय रूप में प्रभु को देखता है





  • ब्रह्माण्ड का एक बिंदु भी ऐसा नही जो गुणों के प्रभाव से परे का हो





  • दोष रहित कर्म का होना असंभव है





  • भक्त प्रभु की खुशबूं लेता है





  • भगवान भक्त के ह्रदय में बसता है यह बात भक्त समझता है





  • गुरजीएफ कहा करते थे - -----



    आत्मा सब में नहीं होती , आत्मा को पैदा करना होता है






=====ओम्======


Saturday, February 25, 2012

गीता ज्ञान भाग एक

जो है वह प्रभु का प्रसाद है , यह सोच ही ज्ञान की ऊर्जा है

The being is the gift of God , this perception is wisdom

ज्ञानी देनें - लेनें का कम नहीं करता एकिन उसके साथ होनें से रूपांतरण होता है

Man of wisdom does not give anything nor takes anything but his being purifies

गुण – तत्त्वों की परख ही ज्ञान है

Awareness of modes – elements is wisdom

मैं और तूं की सोच का मध्य जहां न मैं न तूं की सोच होती है वहाँ प्रभु बसते हैं

God dwells in a mind – intelligence net work where there is no choice

कर्म – योग में कदम बिना रखे कर्म – संन्यास कैसे संभव है

Without performing Karma how one can enter into its renunciation

कर्म संन्यास शब्द भ्रम में पहुंचाता है

Action renunciation is a misleading word

संन्यास का अर्थ संसार से या भोग से भागना नहीं उसके प्रति होश बनाना है

Renunciation does not mean escaping from the passion but its awareness takes into renunciation

संन्यासी का मन निर्मल होता है

A sanyasin has a purified mind

कर्म के बिना कोई जीव धारी एक पल भी नहीं रह सकता

No one can be without action even foe a moment

कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष रहित हो

All actions are having aversion



=====ओम्=====


Friday, February 24, 2012

गीता दर्शन

गुण विभाग एवं कर्म विभाग का बोध ही कर्म – योग है

Karma yoga is the awareness that action is the function of three natural modes

गुण विभाग एवं कर्म विभाग का बोध वैराज्ञ में पहुंचाता है

The awareness that three modes are the source of action takes one to renunciation

वैराज्ञ संसार का द्रष्टा बनाता है

Dispassion makes one witnesser of the universe

बिना किसी कारण जो कर्म हो वह योग कर्म होता है

Yoga action is that action which is performed without reasons

जिस मन – बुद्धि में तीन गुणों की ऊर्जा न बह रही हो वह मन – बुद्धि योगी के होते हैं

yogin,s intelligence does not have modes energy

भोग एवं भगवान के मध्य समभाव की स्थिति होती है

Evenness in passion takes you to Supreme

भोग में उठा होश योगी बनाता है

Awareness in passion is yoga

योगी तीर्थ होता है जिसके पीठ के पीछे भोग और आगे परमानंद होते हैं

Yogin is a pilgrimage where passion is at his back and absolute truth is in his hearth

जो है वह प्रभु का प्रसाद है ऎसी भावना योगी में होती है

Y ogin understand that whatever is available is a gift from the Supreme

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड प्रभु को ब्यक्त करता है

The entire universe represent the Supreme One

===== ओम्=======




Wednesday, February 22, 2012

आमा चिंतन का बिषय नहीं

गीता श्लोक –2.29

प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं ------

हे अर्जुन!कोई आत्मा को आश्चर्य की भांति देखता है,कोई आश्चर्य पूर्वक इसको तत्त्व से वर्णन करता है कोई इसे आश्चर्य से सुनता है और कोई सुन कर भी इसे नहीं समझता//

Some one looks it as morvel , some one explains it as morvel , some one hears it as morvel and some one does not understand it even after listening .

गीता श्लोक –2.30

देहि नित्यं अबध:अयं देहे सर्वस्य भारत

तस्मात् सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि

देह में सदैव देही [ आत्मा ] अबध्य है अतः मृत्यु में रख रहे कदम वाले प्राणियों के लिए तुमको शोक नहीं करना चाहिए /

The dweller in body can never be slain and so you should not grieve for those who are stepping into death .


आत्मा के सम्बन्ध में प्रभु श्री कृष्ण के दो सूत्रों को हमनें देखा जो कह रहे हैं--------

आत्मा आश्चर्यमय है उनके लिए जो इसका वर्णन करते हैं , जो इसके वर्णन को सुनते हैं और कुछ लोग तो सुन कर भी इसे नहीं समझ पाते / कुछ लोग नहीं समझ पाते , ऎसी बात नहीं हैं अपितु आत्मा को समझनें वाले दुर्लभ योगी होते हैं जो कई सदियों के गुजरनें के बाद प्रकट होते हैं / गीता ह्लोक – 2.25 में प्रभु कहते हैं - आत्मा अचिंत्य एवं अब्यक्त है और यहाँ कह रहे हैं की कोई इसे आश्चर्य से सुनता है और कोई सुन कर भी इसे नहीं समझता / वह जो अब्यक्त एवं अचिंत्य हो उसे कोई कैसे ब्यक्त कर एकता है और कोई उसे कैसे समझ सकता है ?

आत्मा ब्यक्त होनें वाली सूचना नहीं , आत्मा चिंतन का बिषय नहीं , आत्मा तो एक आयाम है जो साधना के आखिरी सोपान से गुजरानें के बाद मिलता है और जहां साधक प्रभु की अनुभूति को समाधि के माध्यम से पाता है /


====== ओम् =======


Sunday, February 19, 2012

भोग योग समीकरण

  • कर्म में कर्म बंधनों की पहचान भोग कर्म को योग में बदलती है

  • भोग – योग एक साथ क बुद्धि में नहीं समाते

  • योग में बुद्धि निर्विकार होती है जो प्रभु की झलक पाती है

  • निर्विकार मन – बुद्धि में ब्रह्म स्थित होता है

  • निर्विकार ह्रदय परा भक्ति में पहुंचाता है

  • परा भक्ति प्रभु का द्वार है

  • अपरा भक्ति साधन है जो परा का द्वार खोल सकती है

  • परा की अनुभूति अब्यक्तातीत होती है

  • परा भक्त एक कटी पतंग सा होता है जो प्रभु पर टंगा रहता है

  • परा भक्त गुणातीत होता है


=====ओम्========


Friday, February 17, 2012

गीता राह

वैराज्ञ प्रभु का निवास है और भोग स्वर्ग नर्क दोनों का द्वार हो सकता है

प्रकृति - पुरुष से सभीं जड – चेतन हैं

प्रकृति पुरुष का फैलाव है

अपरा,परा प्रकृतियों एवं आत्मा-परमात्मा से ब्रह्माण्ड की सभी सूचनाएं हैं

आत्मा-परमात्मा का केन्द्र ह्रदय है

परम प्यार ह्रदय की धडकन में होता है

देह के नौ द्वार ज्ञान से प्रकाशित होते हैं

ज्ञान वैराज्ञ का फल है

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है

ज्ञान की ऊर्जा ह्रदय में होती है न की बुद्धि में

====== ओम्======


Wednesday, February 15, 2012

गीता सूत्र

योगी कामना संकल्प रहित होता है

Yogin is free from desire and determination

योगी की नजरें प्रभु पर टिकी रहती हैं

Yogin,s full energy is centered on the Supreme One

योगी , संन्यासी , वैरागी एवं ज्ञानी एक ब्यक्ति के संबोधन हैं

Yogin , Sanyasin , Vairaagi and Gyai all are names of one who is in search of the Supreme One

ज्ञान साधान का फल है

Wisdom is the fruit of meditation

मोह वैराज्ञ में पहुंचनें नहीं देता

Delusion does not allow to enter into dispassion

संसार का द्रष्टा वैरागी होता है

Man of dispassion is the witness of the materialistic world

राजस गुण प्रभु की ओर कदम रखनें नहीं देता

passion mode does not allow to think about the Supreme

तामस गुण सात्त्विक एवं राजस के मध्य एक दिवार जैसा है

Dullness mode is like a strong rock between Goodness mode and the passion mode

काम का सम्मोहन पाप का कारण है

Sex is the root of all evils

संदेह अज्ञान का सूचक है

Doubt is the symptom of ignorance

====ओम्======


Tuesday, February 14, 2012

गीता के अनमोल रतन

मनुष्य का स्वभाव तीन गुणों के सहयोग से बनता है

स्वाभाव से कर्म होता है

कर्म के आधार पर सुख – दुःख का अनुभव होता है

प्रभु किसी के कर्म की रचना नहीं करते

प्रभु किसी के कर्म फल की भी रचना नहीं करते

भावातीत में हुआ कर्म मुक्ति का द्वार है

कामना दुष्पूर होती हैं

काम - कामना एवं क्रोध – लोभ में एक ऊर्जा होती है

राजस गुण के तत्त्व हैं काम . कामना क्रोध एवं लोभ

काम के सम्मोहन में आ कर मनुष्य पाप कर्म करता है


=====ओम्======


Monday, February 13, 2012

प्रभु के वचन

गीता में प्रभु के सूत्र

गीता सूत्र – 2.14

इंद्रिय सुख – दुःख क्षणिक होते हैं

गीता सूत्र – 5.22

इंद्रिय सुख – दुःख रात – दिन की भांति आते जाते रहते हैं,ज्ञानी इस बात को समझते हैं

गीता सूत्र – 18.38

इंद्रिय सुख भोग – सुख होता है जो भोग के समय अमृत सा भाषता है पर इसका परिणाम बिष सा होता है



गीता के तीन सूत्र आप को एवं हमको उस आयाम में पहुंचा रहे हैं जिस आयाम में प्रभु बसते हैं / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ------

इंद्रिय - बिषय के संयोग से मन को जो मिलता है वह भोग है और भोग के सुख में दुःख का बीज पल रहा होता है / कर्म – योगी वह योगी होता है जो इंद्रियों को समझता है , बिषयों को पहचानता है और मन के विज्ञान को गहराई से देखता है /


====== ओम् ======


Friday, February 10, 2012

गीता प्रसाद

सबमें स्व को निहारना अपनें में सब को देखना ज्ञानी के लक्षण हैं

ज्ञान सत्य का द्वार है

माया को ज्ञान से जाना जाता है

ज्ञान से अज्ञान का बोध होता है

ज्ञान से मोह की पकड़ टूटती है

कर्म योग की सिद्धि पर ज्ञान मिलता है

ज्ञानी कामना रहित होता है

संकल्प रहित ज्ञानी होता है

संदेह जिसको न पकड़ सके वह है ज्ञानी

अहंकार की छाया तक जिस पर न पड़ती हो वह है ज्ञानी

====ओम्======



Tuesday, February 7, 2012

गीता के तत्त्व

पुरुष , परमात्मा एवं ब्रह्म शब्दों को हम यहाँ गीता के आधार पर गीता - तत्त्व के अंतर्गत समझ रहे हैं , आइये देखते हैं गीता के कुछ और सूत्रों को /

श्लोक –6.30

सर्वत्र सबको प्रभु से प्रभु में देखनें वाले के लिए प्रभु अदृश्य नहीं रहता /

श्लोक –13.28

जो सब में आत्मा रूप में परमात्मा को देखता है वह यथार्थ देखता है /

श्लोक-10.20

सब में आत्मा रूप में मैं रहता हूँ /

श्लोक –13.29

सब में प्रभु को एक सामान देखनें वाला परम धाम का यात्री होता है /

श्लोक –14.26

अभ्याभिचारिणी भक्ति में डूबा भक्त गुनातीत होता है और ब्रह्म स्तर का होता है /

श्लोक –13.31

ब्रह्म – योगी ब्रह्माण्ड को ब्रह्म के फैलाव के रूप में देखता है /

गीता में प्रभु श्री कृष्ण बारह अध्यायों में लगभग 80 श्लोकों के माध्यम से उसे ब्यक्त करना चाह रहे हैं जो प्रभु श्री कृष्ण के शब्दों में --------

अचिंत्य,अब्यक्त,असोचनीय,अकल्पनीय,निर्गुण एवं निराकार है

और

जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एवं ब्रह्माण्ड में स्थित सभीं सूचनाओं का आदि मध्य एवं अंत है /

====ओम्=====


Monday, February 6, 2012

गीता के मूल तत्त्व भाग तीन

यहाँ हम गीता के तत्त्वों को देख रहे हैं और इस श्रृंखला के अंतर्गत पुरुष , परमात्मा एवं ब्रह्म शब्दों के संदर्भ में गीता के कुछ सूत्रों को दिया जा रहा है , आइये अब कुछ और सूत्रों को देखते हैं /

श्लोक – 14.3 – 14.4

ब्रह्म जीव धारण करता है , जीवों का जनक बीज मैं हूँ और ब्रह्म मेरे अधीन है /

श्लोक – 13.12 – 13.13

ब्रह्म न सत् है न असत्

श्लोक – 13.16

ब्रह्म सबसे दूर है , सबके समीप है और सबमें है

श्लोक – 7.10 , 9.10

सभीं जीवों का आदि बीज मैं हूँ

श्लोक – 8.3

अक्षरम् ब्रह्म परमं

श्लोक – 9.6 – 9.7

सभीं प्राणी मुझमें स्थित हैं और कल्प के अंत में सभीं प्राणी मुझमें समा जाते हैं

श्लोक – 9.8

जगत मेरे अधीन है

श्लोक – 9.9

मैं कर्म मुक्त हूँ और सबका द्रष्टा हूँ

यहाँ आप का सीधा सम्बन्ध गीता से हो रहा है और मैं आप दोनों का द्रष्टा बना रहना चाहता हूँ / जब आप का बिलय गीता में हो जाएगा तब मैं भी आप के ही साथ रहूँगा अतः गीता के शब्दों को मैं अपनें शब्दों में ढालना नहीं चाहता / गीता और आप के मध्य मैं मात्र एक संपर्क सूत्र आना रहना चाहता हूँ , गीता का भावार्थ करना मेरे बश में नहीं , आप स्वयं अपना भावार्थ करें और खुश रहें /


==== ओम् ============




Sunday, February 5, 2012

गीता के मणि

  • संन्यास प्रभु का द्वार है

  • संन्यास स्व के प्रयास का फल नहीं प्रभु का प्रसाद है

  • भोग से भागा हुआ संन्यासी नहीं

  • भोग में उठा होश ही संन्यास में पहुंचाता है

  • भोग में डूबा,भोग में आसक्त संन्यासी नहीं

  • तन – मन का भोगी संन्यासी नहीं

  • वह जो भोग का द्रष्टा होता है , संन्यासी होता है

  • संन्यास में एक तरफ भोग - संसार और अगली तरफ प्रभु का आयाम दिखता है

  • भोग से भोग में हमारा अस्तित्व है

  • भोग से योग में पहुँचना हमारा लक्ष्य है

    ====ओम्======


Saturday, February 4, 2012

गीता पारस सूत्र तीन

मन से भोग और मन से भगवान की यात्रा होती है

सब में स्व को देखना और स्व में सबको देखना ही ज्ञान है

ज्ञान से स्व का बोध होता है

ज्ञान से माया रहस्य खुलता है

ज्ञान से सत् का बोध होता है

ज्ञान बुद्धि में द्वैत्य – द्वंद्व नहीं बसते

आसक्ति रहित कर्म ज्ञान – योग की परा निष्ठां है

ज्ञान की मूल बुद्धि में नहीं ह्रदय में होती है

ज्ञान की पाठशाला ध्यान है

ध्यान में परिधि से केंद्र की यात्रा होती है

परिधि है संसार और केन्द्र है ब्रह्म


===== ओम्=====



Thursday, February 2, 2012

गीता पारस सूत्र

संन्यास प्रभु का द्वार है

कर्म – योग संन्यास का एक उत्तम माध्यम है

कर्म में कर्म – बंधनों का अप्रभावित होना ही कर्म संन्यास है

कर्म होनें में जब भाव प्रधान न हों तब वह कर्म सन्यासी का होता है

आसक्ति रहित कर्म ही कर्म – संन्यास होता है

आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है

नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान योग में पहुंचाती है

आसक्ति रहित कर्म शांत मन से होता है

शांत मन निश्चयात्मिका बुद्धि के साथ होता है

मन को मित्र बनाता हैध्यान


=====ओम्=====



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