Wednesday, July 5, 2023

मैं कौन हूं


समझिए , मैं कौन हूँ !

सांख्य दर्शन में सृष्टि उत्पत्ति को यहां एक स्लेडमैन दिखने का प्रयत्न किया गया है ।

 सांख्य दर्शन दो अव्यक्त सूक्ष्म सनातन और स्वतंत्र तत्त्व के संयोग से सृष्टि रचना का विज्ञान देता है जिसमें ब्रह्म , आत्मा और ईश्वर शब्द नहीं हैं । सांख्य के दो सनातन तत्त्वों में एक को प्रकृति कहते हैं और दूसरे को पुरुष कहते हैं। दोनो मौलिक रूप में निष्क्रिय हैं । शुद्ध चेतन पुरुष के प्रकाश से तीन गुणों की साम्यावस्था की मूल प्रकृति विकृत हो उठती है और पहले तत्त्व बुद्धि की उत्पत्ति होती है । 

बुद्धि से अहँकार , अहँकार से 11 इन्द्रियाँ और 5 तन्मात्रों ( विषयों ) की उत्पत्ति होती

 है । तन्मात्रों से उनके अपने - अपनें महाभूतों ( पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और आकाश ) की उत्पत्ति होती है। 

ऊपर व्यक्त 23 तत्त्वों के योग से14 प्रकट की भौतिक सृष्टियाँ उत्पन्न होती हैं । इन 14 प्रकार की भौतिक सृष्टियों में 08 प्रकार के देवता , 5 प्रकार के तैर्यक और मनुष्य की उत्पत्ति बताई गई है । मनुष्य में कोई श्रेणी नहीं है।

 जीवों के स्थूल देह में पुरुष  करता और सुख - दुःख का भोक्ता है। प्रकृति के 23 तत्त्व पुरुष के टूल्स हैं जो उसे प्रकृति को समझने में सहयोग करते हैं । 

बुद्धि , अहँकार और मन को चित्त कहते  हैं । पुरुष देह में चित्त केंद्रित रहता है । चित्त से जुड़ते ही पुरुष चित्ताकार हो जाता है और स्वयं को चित्त समझने लगता है लेकिन उसे अपनें मूल स्वरूप की हल्की स्मृति बनी रहती है ।

 प्रकृति पुरुष को अपनें से मुक्त करा कर कैवल्य मुखी बनाना चाहती है और जब पुरुष को पूरी तरह बोध हो जाता है कि वह क्या है ? तब वह कैवल्य प्राप्त करता है । कैवल्यवाह अवस्था होती हैं जहां पुरुषार्थ शून्य हो जाता है और गुणों का प्रतिप्रसव हो जाता है अर्थात ऐसे देह धारी समझ जाता है की वह कौन है ? वह कैसेहै ? और उसे क्या करना था ? इस प्रकार चित्त केंद्रित पुरुष को स्वबोध हो जाता है और वह समझ जाता है कि वह चित्त नहीं , वह प्रकृति नहीं , वह तो शुद्ध चेतन है। प्रकृति के 23 तत्त्वों से स्वयं को पृथक समझना , प्रकृतिलय योग की अवस्था होती है और तीन गुणों का प्रतिप्रसव होना योग साधना में विदेहलय कहलाता है ।

प्रकृति जब समझती है कि पुरुष उसे ठीक से समझ लिया है और अपनें मूल स्वरूप में आ गया है तब वह अपनें मूल स्वरुप अर्थात तीन गुणों की साम्यावस्था में आ जाती है । पुरुष को मोक्ष दिलाने हेतु प्रकृति आवागमन चक्र में उलझी रहती है । 

~~ ॐ ~~


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