श्रीमद्भगवद्गीत में ज्ञानयोग के लिए माया , ब्रह्म , आत्मा और परमात्मा , कर्मयोग में कर्मबंधन जैसे आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य और अहँकार की साधना तथा सांख्ययोग में प्रकृति - पुरुष के प्रति बोध उत्पन्न करना जो पतंजलि योग सूत्रों की सिद्धि से संभव है , जैसे तत्त्व बोध की गणित दी गयी है । गीता साधना , अनंत की साधना है जिसमें प्रवेश पाना अति सरल है लेकिन इसके बाहर निकलना संभव नहीं।
ध्यान रखें ,
गीता के अंदर ब्रह्म , आत्मा और पुरुष से मैत्री स्थापित होती है और
गीता से बाहर माया - प्रकृति के सम्मोहन में रहना होता है। अब आपको सोचना है कि आपको किधर जाना है ?
यदि आप ब्रह्म के जिज्ञासु हैं , तो आप मेरे संग बने रहिये और गीता परिचय आप का साथ देता रहेगा ।