Wednesday, April 23, 2025

ऋग्वेद के 10 उपनिषदों का सार


ऋग्वेद के 10 उपनिषद् और उनके सार …

ऋग्वेद के निम्न 10 उपनिषद् हैं जिनमें से प्रारंभिक दो को प्रमुख माना गया है …..

ऐतरेय , कौषीतक , नादबिंदू ,अत्मबोध , ब्रह्मविद्या, सूर्य , ,त्रिपुरा , सैन्धव , निर्वाण और बह्वृच । इनमें से नादविंदू को कुछ लोग अथर्ववेद का उपनिषद् भी मानते हैं । अब इन 10 उपनिषदों के सार तत्त्व को देखते हैं ….

क्र. सं .

उपनिषद

सार

1

ऐतरेय

प्रज्ञानं ब्रह्म । ब्रह्म से सृष्टि उत्पत्ति । जीव , मन , प्राण और आत्म का संबंध और  ब्रह्म विद्या , इसके मूल विषय हैं ।

2

कौषीतकि 

प्राण । मृत्यु के बाद जीवात्मा की गति और ज्ञान , इस उपनिषद् के मूल विषय हैं ।

3

नादबिंदू

नादबिंदू को कुछ विद्वान अथर्ववेदीय भी कहते हैं। "ध्वनि (नाद) साधना का माध्यम और मौन साधना का  लक्ष्य है अर्थात नाद में जब साधक नामक के पुतले जैसे घुल जाता है तब उसका नादयोग माध्यम से ब्रह्म से एकत्व स्थापित हो जाता है जिसे समाधि कहते हैं ।

4

अत्मबोध

आत्मा और आत्म बोध , इस उपनिषद् का केंद्र है।

5

ब्रह्मविद्या

इसमें ब्रह्म ज्ञान की विधियोंका वर्णन मिलता है और यह बताया गया है कि ब्रह्म बोधी मृत्यु रहस्य को समझता है।

6

सूर्य

इसमें सूर्य उपासना की विधियों को बताया गया है और यह भी बताया गया है कि सूर्य ही ब्रह्म हैं ।

7

त्रिपुरा

'तीनों अवस्थाओं' (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) के पार जो चैतन्य है, वही परम सत्य है।इस उपनिषद में भक्ति, ध्यान और ज्ञान द्वारा त्रिपुरा के साक्षात्कार का मार्ग बताया गया है। सभी अनुभवों के पीछे जो स्थायी सत्ता है, उसका बोध करना तथा उसी को जानना ही मोक्ष है।

8

सैन्धव

इसमें बताया गया है…

 #आत्मा सर्वत्र व्याप्त है # अद्वैत की अनुभूति यथार्थ सत्य बोध है।

9

निर्वाण

त्याग , संन्यास , ज्ञान और आत्म बोध , उस उपनिषद् के मूल विषय हैं ।

10

बह्वृच

इस उपनिषद् में 

आदिशक्ति ( देवी ) की ब्रह्म स्वरूप उपासना बताई गई है और यह बताया गया है कि देवी ही ब्रह्म हैं जो सबकुछ संचालित करती हैं ।

अगले अंक में ऋग्वेद के प्रमुख उपनिषद् ऐतरेय एवं कौषीतक के संबंध में बताया जायेगा ।

~~ ॐ ~~

Saturday, April 19, 2025

चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषद्


उपनिषद रहस्य भाग - 04 चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषद् 

1- चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषदों की संख्या

वेद

उपनिषद् 

योग

ऋग्वेद

10

10

यजुर्वेद

शुक्ल - 19

कृष्ण - 32

                 योग > 51

51

सामवेद

16

16

अथर्ववेद

31

31

योग >>

>>>>>>>>

108


2 - चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषद् 

वेद 

इनके प्रमुख उपनिषद् 

ऋग्वेद 

10

ऋग्वेद की 10 उपनिषद् > ऐतरेय,कौषीतक , नादबिंदू ,अत्मबोध ,ब्रह्मविद्या, सूर्य , ,त्रिपुरा , सैन्धव ,निर्वाण बह्वृच , 

यजुर्वेद

06

यजुर्वेद की 51 उपनिषदों में से 06 प्रमुख उपनिषद हैं >  ईशावास्य, बृहदारण्यक , माण्डूक्य , तैत्तिरीय , श्वेताश्वतर और  महा नारायण 

सामवेद

10

सामवेद की 16 उपनिषदों के से 10 प्रमुख उपनिषद > छांदोग्य , केन उपनिषद ,अरुणेय , जाबाल कुंडिक , सावित्र्य , महानारायण ,पंचब्रह्म ,भिक्षुक और सर्वोपनिषद 

अथर्ववेद

 07 

 

अथर्ववेद की 31 उपनिषदों में 07 प्रमुख उपनिषद हैं >  प्रश्न ,मुण्डक , माण्डूक्य , अथर्वशिरस् ,  गर्भ और नादबिन्दु 

अगले अंक में ऋग्वेद के 10 उपनिषदों के सार को देखा जायेगा …

Tuesday, April 8, 2025

चार वेदों से परिचय


परिचय

उपनिषद् परिचय के अंतर्गत पहले तीन लेख दिए जा चुके हैं जिनका सार निम्न प्रकार हैं …

भाग - 01 का सार > चार वेदों के 108 उपनिषदों को एक टेबल में दिखाया गया है  । इन 108 उपनिषदों में 13 प्रमुख उपनिषद् है तथा इन 13 उपनिषदों में से उन 10 उपनिषदों को अलग से दिखाया गया है जिनका भाष्य आदि शंकराचार्य जी द्वारा लिखा गया है जिन्हें दशोपनिषद् नाम से जाना जाता है ।

भाग - 02 का सार > मुगल बादशाह शाहजहां के युवराज दारा शिकोह 1654 में  अपनी मृत्यु के ठीक 5 साल पहले काशी के पंडितों को बुलवा कर  50 उपनिषदों का फारसी जुबान में भाषान्तर करवाया था। दारा शिकोह कै इस प्रयास के कारण भारतीय उपनिषदों का प्रकाश पश्चिम के दार्शनिकों तक पहुंच पाया था । दारा शिकोह को इस कार्य में  उनके एक मित्र सूफी फकीर सरमद से मदद मिली थी।


भाग - 03 का सार > यहां सूफी फकीर सरमद और दारा शिकोह की मित्रता के संबंध में कुछ बातें बताई गई हैं। औरंगजेब सरमद को धर्म विरोधी घोषित कर दिया और जामा मस्जिद के ठीक सामने उसके सिर को कलम करवा दिया 

था । सरमद की कब्र आज भी जामा मस्जिद दिल्ली के ठीक साथ में उपस्थित है । सरमद वाराणसी में उपनिषद् ज्ञान अर्जित किया था। दारा शिकोह को सूफी दर्शन और वेदांत दर्शन में काफी समानताएं दिखने लगी थी और यही कारण उसमें उपनिषद् प्यार उत्पन्न किया था ।

अब उपनिषद परिचय श्रृंखला के चौथे भाग में प्रवेश करते हैं जिसमें चार वेदों से परिचय कराया जा रहा है क्योंकि वेद परिचय के बाद इनके उपनिषदों को विस्तार से समझना सरल हो जायेगा; जिनका चर्चा आगेआने वाले अंकों में की जाएगी । आइए !  अब नीचे दिए गए टेबल के माध्यम से वेदों से परिचय करते हैं …..

वेद

सामान्य परिचय

ऋग्वेद

रइग्वेद का जन्म स्थान पञ्च सिंधु क्षेत्र माना जाता है और इसकी भाषा वैदिक संस्कृत (Vedic Sanskrit) है, जो शास्त्रीय संस्कृत(Classical Sanskrit) से भिन्न है। इसमें प्राचीन ईरानी भाषा (Avestan) के साथ समानता के साथ शब्द-समानता (Linguistic Affinity) भी पाई जाती है। ऋग्वेद में कुल 10 मंडल (खंड) हैं, जिनमें लगभग 10,552 मंत्र संकलित हैं। ये मंत्र कुल 1,028 सूक्तों में विभाजित हैं। ऋग्वेद के ये मंत्र देवताओं की स्तुति, यज्ञ, प्रकृति, जीवन दर्शन और तत्कालीन समाज की झलक प्रस्तुत करते हैं।ऋग्वेद में यज्ञ को जीवन का आधार,कर्म ,  परोपकार एवं त्याग का प्रतीक माना गया है ।

यजुर्वेद

यजुर्वेद की रचना का मुख्य क्षेत्र उत्तर भारत विशेष रूप से वर्तमान उत्तर प्रदेश और हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुआ माना जाता है। यजुर्वेद से जुड़े कई ऋषि जैसे व्यास, याज्ञवल्क्य और वसिष्ठ उत्तर भारत के ही माने जाते हैं।
यजुर्वेद मुख्यतः यज्ञ और कर्मकांड से संबंधित है। इसमें यज्ञों में बोले जाने वाले मंत्रों और अनुष्ठान की विधियों का वर्णन है। इसमें 1,975 मंत्र हैं जिनमें से 664 मंत्र ऋग्वेद के हैं । शुक्ल यजुर्वेद में कृष्ण यजुर्वेद की तुलना में अधिक मंत्र हैं।

सामवेद

सामवेद एक तरह से ऋग्वेद का ही एक अंग है जिसका विकास वैदिक काल (1500 - 500 BCE) में प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिमी और गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में हुआ । यह संस्कार, अध्यात्म और भक्ति का आधार माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यज्ञों में मंत्रों को गायन के रूप में प्रस्तुत करना था। सामवेद , यजुर्वेद से मिल कर वैदिक अनुष्ठानों , देवताओं की स्तुति आदि में प्रयोग होता है । हिंदू संगीत परंपरा की जड़ें सामवेद में हैं, और इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत का स्रोत भी माना जाता है। यह वेद मुख्य रूप से संगीत और स्तुति से संबंधित है। इसमें 1549 मंत्र हैं, जिनमें से अधिकांश ऋग्वेद से लिए गए हैं,

अथर्ववेद

अथर्ववेद का संकलन मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम भारत में हुआ माना जाता है। वर्तमान में यह क्षेत्र पंजाब, हरियाणा और अफगानिस्तान का कुछ भाग हो सकता है। इसमें उस समय के जन जीवन, चिकित्सा, तंत्र-मंत्र और लोक विश्वासों का उल्लेख मिलता है, जिससे यह क्षेत्रीय जीवन का सजीव चित्रण करता है। अथर्ववेद की भाषा वैदिक संस्कृत है, जो ऋग्वेद और अन्य वेदों के समान है, लेकिन इसमें लोकभाषा और लोककथाओं का प्रभाव भी देखा जाता है। 👉 अथर्ववेद अपने चिकित्सा, तंत्र-मंत्र और समाज कल्याण से जुड़े सिद्धांतों के लिए जाना जाता है, जो इसे अन्य तीन वेदों से अलग बनाता है ।अथर्ववेद में कुल 5,977 मंत्र संकलित हैं। ये मंत्र 20 कांडों (खंडों) में विभाजित हैं। जिनमें से लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।


।।।। ॐ ॐ।।।।

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