Tuesday, August 12, 2025
Wednesday, July 2, 2025
वेदों में ब्रह्म की अवधारणा
श्रीमद्भागवत (11.17) तथा महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार ⤵️
आदि सतयुग के प्रारंभ में एक ही वेद था — जिसे प्रसव वेद कहा गया।
यह वेद श्रुति के रूप में स्वयं ऋषियों के हृदय में स्फूर्त होता था। यह वचन - उपासना की बुनियाद होता था।
यह वेद संपूर्ण ज्ञान का समावेशी स्रोत था अर्थात ब्रह्म, ब्रह्म , आत्मा , कर्म, ध्यान एवं उपासना की ऊर्जा उत्पन्न करता था।
और हंस , एक धर्म था ।
त्रेतायुग आते - आते वेद त्रय हो गए और द्वापर में चार वेद हो गए । प्रसव वेद परंपरा का केंद्र ब्रह्म है । एक वेद से चार वेदों का बनाना , हर वेद के चार - चार अंगों का बनना , वेद के विकास को दर्शाता है । चार वेद - ऋग्वेद , शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद और उनके अंग - संहिता , ब्राह्मण , आरण्यक और उपनिषदों को दूर से देखने पर उनके मार्ग अलग - अलग दिखते हैं लेकिन ऐसा है , नहीं , सबका केंद्र एक ही है और वह है - ब्रह्म , ब्रह्म से ब्रह्म में उसकी माया तथा माया से माया में संसार एवं संसार की सूचनाओं का होना। समयातीत , निर्गुण ब्रह्म से समयाधीन, त्रिगुणी माया और माया से माया में नाना प्रकार की सूचनाओं का होना का बोध कराते हैं , चार वेद एवं उनके अंग ।यहां हम चार वेदों में व्यक्त , अव्यक्त ब्रह्म की अवधारणाओं के सार को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं । यह विषय हमारी बुद्धि सीमा के परे का है लेकिन कोशिश तो की ही जा सकती है । चार वेदों ब्रह्म की अवधारणाओं को यहां , एक टेबल में दिया जा रहा है …
वेद | ब्रह्म की अवधारणा |
ऋग्वेद 10 मंडल , 1028 सूक्त और 10552 | नासदीय सूक्त : 10.129 नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं *सृष्टि के पहले न सत् था, न असत् , एक अदृश्य तत्व था , जिससे और जिसमें सब था ,आज भी जिससे एवं जिसमें सब हैं और उस तत्त्व का संबोधन ब्रह्म है । *यज्ञ , यज्ञ की ऊर्जा , ब्रह्म है। * ब्रह्मांड एवं जड़ - चेतन का कारण ब्रह्म है। |
यजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद 40 अध्याय , मंत्र - 1975 | *यज्ञो वै ब्रह्म (यज्ञ ही ब्रह्म है)। *ब्रह्म सृष्टि का आधार है। *ब्रह्म अविनाशी, परम है ,सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है , एक है और अद्वितीय है । कृष्ण यजुर्वेद में कांड 7 , प्रापाठक 44 मंत्र 2800 हैं |
सामवेद मंत्र - 1875 जिनमें 1504 मंत्र ऋग्वेदीय हैं | ब्रह्म को नाद ब्रह्म कहा गया है । साम गान के गायन उत्पन्न लयबद्ध नाद में स्वयं की लीन करके ब्रह्म की अनुभूति करते हैं। ॐ ( प्रभाव ) को दृष्टि का आधार माना गया है और ॐ नाद से उत्पन्न ऊर्जा को ब्रह्म माना गया है । |
अथर्ववेद मंत्र - 5977 जिनमें से 1200 मंत्र ऋग्वेदीय हैं | * ब्रह्म को संसार का रक्षक और विश्वका आधार माना गया है । *काया को ब्रह्म का मंदिर कहा गया है। *ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है । ब्रह्म को पवित्र शब्द , सर्वव्यापी सिद्धांत , अमूर्त रूप में देखा गया है। *परम सत्य और वाक् को ब्रह्म का संबोधन माना गया है । ब्रह्म को सार्वभौमिक सिद्धांत के रूप में देखा गया है। |
~~ ॐ ~~
Friday, May 23, 2025
आदि सतयुग में एक वेद और एक धर्म था
आदि सतयुग के प्रारंभ में एक वेद था , त्रेतायुग में तीन वेद हो गए और द्वापर में चार वेद , इस रहस्य को समझते हैं…..
आदि सतयुगमें एक वेद प्रसव और एक धर्म हंस था (श्रीमद्भागवत, स्कंध 11, अध्याय 17, श्लोक 10 - 14 )।
‘प्रसव ’ शब्द का अर्थ उत्पत्ति ,प्रकाश , या स्वाभाविक प्रकट तत्त्व है । समयांतर में प्रसव वेद से समस्त शास्त्रों, धर्मों एवं अन्य तत्त्वों की उत्पत्ति हुई। प्रसव , प्रणव (ॐ) को भी अन्तर्भूत करता है क्योंकि प्रणव ही सबका सार है।
#;मुण्डक उपनिषद् (1.1.1) में 'प्रसव ' वेद की बात कही गई है।
# माण्डूक्य उपनिषद् (मूल) के निम्न सूत्र में प्रणव ( ॐ ) को सम्पूर्ण वेदों का सार कहा गया है …
“ ॐ इत्येतदक्षरं इदं सर्वम् “
# श्रीधर स्वामी, वल्लभाचार्य, तथा कुछ वैष्णव भाष्यकार ‘प्रसव ’ को ‘प्रणव ’ से जोड़ते हैं।
# श्रीमद्भागवत (11.17) तथा महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार ⤵️
आदि सतयुग के प्रारंभ में एक ही वेद था — जिसे प्रसव वेद कहा गया।
यह वेद श्रुति के रूप में स्वयं ऋषियों के हृदय में स्फूर्त होता था। यह वचन - उपासना की बुनियाद था।
यह वेद संपूर्ण ज्ञान का समावेशी स्रोत था अर्थात ब्रह्म, ब्रह्म , आत्मा , कर्म, ध्यान, उपासना, सब कुछ इसमें था।
ऊपर व्यक्त संदर्भों में समय की गणित को भी देखते हैं क्योंकि सतयुग के प्रारंभ से द्वापर के अंत तक का समय 3.888 million years बनता है । सतयुग से त्रेतायुग तक एक वेद से 03 वेद बन गए और द्वापर में एक और वेद बन गया , इस प्रकट कलियुग में 04 वेद उपलब्ध हैं। तनिक सोचिए ! सतयुग से कलियुग तक की मानव सभ्यता के विकास की स्थिति कैसी रही?
समय की गणित
युग | अवधि ब्रह्मा वर्ष | अवधि मानव वर्ष |
सतयुग | 4,800 | 17,28,000 |
त्रेतायुग | 3,600 | 12,96,000 |
द्वापरयुग | 2,400 | 08,64,000 |
कलियुग | 1,200 | 04,32,000 |
योग > | 12,000 | 4,320,000 |
➡ चार युगों का समय = 4.32 million मानव वर्ष
▶️ 01 ब्रह्मा वर्ष = 360 मानव वर्ष
अब नीचे दी गई स्लाइड को देखें , जिसमें एक वेद समयांतर में कैसे विकसित होता रहा और चार वेद बन गए , उनके ब्रह्म ग्रन्थ , आरण्य ग्रन्थ और उपनिषद् कैसे विकसित होते चले गए ।
अब इस विषय पर कुछ और संदर्भों को भी देखते हैं ….
श्रीमद्भागवत (1.4.19 - 21) व महाभारत शान्तिपर्व के अनुसार ….
युग परिवर्तन के साथ मानव की स्मरण शक्ति और सात्विकता कम होने लगी। इस कारण महर्षि वेदव्यास उस एक वेद को तीन भागों विभाजित किया।
गीता 9.20 में तीन वेदों को त्रैविद्या संबोधन से संबोधित किया गया हैं ।
कुछ शास्त्रों में वर्णित है कि अथर्ववेद स्वयं ब्रह्मा या ऋषि अथर्वा द्वारा प्रकट किया गया (ऋग्वेद 10.7; अथर्ववेद 10.7.20) जबकि यह वेद चौथा वेद है । जब एक वेद से वेदव्यास तीन वेद बन दिए फिर उसके बाद ब्रह्मा द्वारा अथर्ववेद की रचना क्यों करनी पड़ी होगी !
भागवत 1.4.19 –21 में कहा गया है , "द्वापरे तु युगे भूत्वा... एकं वेदं चतुर्धा चकार।" अर्थात व्यास ने एक वेद को चार भागों में विभाजित किया । अब अगले अंक में कुछ और , अभी इतना ही ।
~~ ॐ ~~
Wednesday, April 23, 2025
ऋग्वेद के 10 उपनिषदों का सार
ऋग्वेद के 10 उपनिषद् और उनके सार …
ऋग्वेद के निम्न 10 उपनिषद् हैं जिनमें से प्रारंभिक दो को प्रमुख माना गया है …..
ऐतरेय , कौषीतक , नादबिंदू ,अत्मबोध , ब्रह्मविद्या, सूर्य , ,त्रिपुरा , सैन्धव , निर्वाण और बह्वृच । इनमें से नादविंदू को कुछ लोग अथर्ववेद का उपनिषद् भी मानते हैं । अब इन 10 उपनिषदों के सार तत्त्व को देखते हैं ….
क्र. सं . | उपनिषद | सार |
1 | ऐतरेय | प्रज्ञानं ब्रह्म । ब्रह्म से सृष्टि उत्पत्ति । जीव , मन , प्राण और आत्म का संबंध और ब्रह्म विद्या , इसके मूल विषय हैं । |
2 | कौषीतकि | प्राण । मृत्यु के बाद जीवात्मा की गति और ज्ञान , इस उपनिषद् के मूल विषय हैं । |
3 | नादबिंदू | नादबिंदू को कुछ विद्वान अथर्ववेदीय भी कहते हैं। "ध्वनि (नाद) साधना का माध्यम और मौन साधना का लक्ष्य है अर्थात नाद में जब साधक नामक के पुतले जैसे घुल जाता है तब उसका नादयोग माध्यम से ब्रह्म से एकत्व स्थापित हो जाता है जिसे समाधि कहते हैं । |
4 | अत्मबोध | आत्मा और आत्म बोध , इस उपनिषद् का केंद्र है। |
5 | ब्रह्मविद्या | इसमें ब्रह्म ज्ञान की विधियोंका वर्णन मिलता है और यह बताया गया है कि ब्रह्म बोधी मृत्यु रहस्य को समझता है। |
6 | सूर्य | इसमें सूर्य उपासना की विधियों को बताया गया है और यह भी बताया गया है कि सूर्य ही ब्रह्म हैं । |
7 | त्रिपुरा | 'तीनों अवस्थाओं' (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) के पार जो चैतन्य है, वही परम सत्य है।इस उपनिषद में भक्ति, ध्यान और ज्ञान द्वारा त्रिपुरा के साक्षात्कार का मार्ग बताया गया है। सभी अनुभवों के पीछे जो स्थायी सत्ता है, उसका बोध करना तथा उसी को जानना ही मोक्ष है। |
8 | सैन्धव | इसमें बताया गया है… #आत्मा सर्वत्र व्याप्त है # अद्वैत की अनुभूति यथार्थ सत्य बोध है। |
9 | निर्वाण | त्याग , संन्यास , ज्ञान और आत्म बोध , उस उपनिषद् के मूल विषय हैं । |
10 | बह्वृच | इस उपनिषद् में आदिशक्ति ( देवी ) की ब्रह्म स्वरूप उपासना बताई गई है और यह बताया गया है कि देवी ही ब्रह्म हैं जो सबकुछ संचालित करती हैं । |
अगले अंक में ऋग्वेद के प्रमुख उपनिषद् ऐतरेय एवं कौषीतक के संबंध में बताया जायेगा ।
~~ ॐ ~~
Saturday, April 19, 2025
चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषद्
उपनिषद रहस्य भाग - 04 चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषद्
1- चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषदों की संख्या
वेद | उपनिषद् | योग |
ऋग्वेद | 10 | 10 |
यजुर्वेद | शुक्ल - 19 कृष्ण - 32 योग > 51 | 51 |
सामवेद | 16 | 16 |
अथर्ववेद | 31 | 31 |
योग >> | >>>>>>>> | 108 |
2 - चार वेद और उनके प्रमुख उपनिषद्
वेद | इनके प्रमुख उपनिषद् |
ऋग्वेद 10 | ऋग्वेद की 10 उपनिषद् > ऐतरेय,कौषीतक , नादबिंदू ,अत्मबोध ,ब्रह्मविद्या, सूर्य , ,त्रिपुरा , सैन्धव ,निर्वाण बह्वृच , |
यजुर्वेद 06 | यजुर्वेद की 51 उपनिषदों में से 06 प्रमुख उपनिषद हैं > ईशावास्य, बृहदारण्यक , माण्डूक्य , तैत्तिरीय , श्वेताश्वतर और महा नारायण |
सामवेद 10 | सामवेद की 16 उपनिषदों के से 10 प्रमुख उपनिषद > छांदोग्य , केन उपनिषद ,अरुणेय , जाबाल कुंडिक , सावित्र्य , महानारायण ,पंचब्रह्म ,भिक्षुक और सर्वोपनिषद |
अथर्ववेद 07
| अथर्ववेद की 31 उपनिषदों में 07 प्रमुख उपनिषद हैं > प्रश्न ,मुण्डक , माण्डूक्य , अथर्वशिरस् , गर्भ और नादबिन्दु |
अगले अंक में ऋग्वेद के 10 उपनिषदों के सार को देखा जायेगा …