उपनिषद्, दारा शिकोह और सरमद काशानी …..
पुरानी दिल्ली जामा मस्जिद के साथ एक कब्र है , क्या आप जानते हैं कि यह कब्र किसकी है ? यह कब्र सरमद काशानी से बने औलिया सरमद की है ….
पिछले लेख में शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह के उपनिषद् प्यार के संदर्भ में बताया गया । दारा शिकोह कुछ दिनों के लिए कश्मीर यात्रा पर थे । वहां उन्हें कश्मीरी पंडितों के माध्यम से उपनिषदों के रहस्य से परिचय हुआ । वहां से लौटने के लगभग 13 वर्ष बाद एवं अपनी मृत्यु के ठीक 05 साल पहले दारा शिकोह काशी ( वाराणसी ( से पंडितों को बुलवा कर लगभग 50 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया । दारा शिकोह के इस प्रयास के कारण उपनिषदों का दर्शन पश्चिमी दार्शनिकों को आकर्षित करने लगा ।
जब कश्मीर से उपनिषद् की ज्ञान ज्योति लेकर दारा शिकोह वापिस आए तब से 13 वर्षों तक उनके दिल में प्रकाशित यह उपनिषद् ज्योति को सरमद कभी बुझने नहीं दिया ।
अब आगे यह देखना होगा कि एक यहूदी जो सूफियों से आकर्षित हो कर इस्लाम धारण किया हो , वह कैसे दारा शिकोह के दिल में प्रज्वलित उपनिषद् की ज्योति को कभी बुझने नहीं दिया होगा ! यह एक प्रमुख संदर्भ है ।
सरमद एक यहूदी व्यापारी था जो ईरानसे कालीन एवं ड्राई फ्रूट दिल्ली ले आ कर बेचता और मुरादाबाद से पीतल - ताबा के बर्तन ले जा कर ईरान में बेचता था । समयांतर में वह सूफियों की संगति में आ कर सूफी दर्शन से आकर्षित होता चला गया और इस्लाम धारण कर यहूदी से मुसलमान बन गया ।
एक बार वह व्यापार के लिए चलते - चलते काशी के करीब स्थित गाजीपुर के एक गांव में आयोजित एक मेले में पहुंच गया । उस स्थान पर एक कब्र थी जहां लोग मत्था टेक रहे
थे । सरमद भी मत्था टेका और वहीं समाधि में उतर गया। वह रात भर वहीं कब्र पर झुका रहा । सुबह कोई गांव वाला उसे वहा देखा और आ कर उसे उठाया ।
उठते ही , सरमद बोल पड़ा - वाह ! मिट्टी की कब्र में जब इतना नूर है तो तेरा नूर कैसा होगा ! फिर क्या था , अब एक व्यापारी सरमद परम प्रकाश की तलाश में जिज्ञासु सरमद चल पड़ा और गाजीपुर में एक पीपल वृक्ष के नीचे पुनः समाधि में उतर गया । अगले दिन वहां भिक्खू नाम का एक ब्राह्मण किसान उसे उठाया और वहां सोए होने का कारण जानना चाहा । सरमद बोला , उसवकबर के नूर की बात बता दी और आगे बोला कि अब मैं उसी नीर की लताश में हूं। भिक्खू बोला , बावले ! संसार इतना बड़ा है , कहां - कहां उसे खोजेगा ? हां , एक सरल उपाय है , यदि कोशिश करे तो उस नूर को अपनें अंदर भी देख सकता है क्योंकि वह सबके अंदर भी है । फिर क्या था ! मानो अंधे को आँखें मिल गई हों । सरमद अपनें अंदर रब के नूर की तलाश की जिज्ञासा के साथ वह काशी आ गया । सरमद बहुत दिनों तक काशी में उपनिषद् ज्ञान प्राप्त करता रहा । पुनः ज्ञान अर्जित कर जब वह दिल्ली वापिस आया तब पुनः ईरान न जा कर दिल्ली में ही एक कंबल ओढ़े नग्न संन्यासी के रूप में भ्रमण करने लगा और अपना केंद्र जामा मस्जिद बना लिया।
दारा शिकोह प्रति दिन जामा मस्जिद नवाज पढ़ने आता और सूफी दर्शन का प्रेमी होने के कारण सरमद से उसकी मित्रता बढ़ने लगी । उपनिषद् दर्शन और सूफी दर्शन में काफी निकटता होने के कारण दारा शिकोह भी उपनिषद् प्रेमी होता चला गया और सरमद की सलाह से प्रभावित हो कर , वह काशी से पंडितों को आमंत्रित कर 50 उपनिषदों का भाषान्तर फारसी भाषा में करवाया ।
कुछ समय बाद दारा शिकोह को औरंगजेब मरवा दिया । कुछ दिन और बीते और एक दिन जामा मस्जिद की सिद्धियों पर सरमद का सिर भी कटवा दिया गया । सरमद का सिर ससीढ़ियों के लुढ़कता - लुढ़कता उस स्थान पर आ पहुंचा जहां आज भी उसकी कब्र स्थित है । कहते हैं , उस घड़ी गाजीपुर का वह भिक्खू ब्राह्मण सरमद के सिर के पास प्रकट हुआ और बोला , सरमद ! अब तुम औलिया सरमद हो गए हो , आओ , चलो , मेरे साथ , अब तेरा वक्त पूरा हो गया है ।
इस प्रकार दारा शिकोह और सरमद की जोड़ी के कारण आज उपनिषदों का प्रकाश सारे जगत में प्रकाशित हो रहा है।
।।। ॐ ॐ ।।।