Friday, March 28, 2025

उपनिषद् रहस्य भाग 03


उपनिषद्, दारा शिकोह और सरमद काशानी  …..

पुरानी दिल्ली जामा मस्जिद के साथ एक कब्र है , क्या आप जानते हैं कि यह कब्र किसकी है ? यह कब्र सरमद काशानी से बने औलिया सरमद की है ….

पिछले लेख में शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह के उपनिषद् प्यार के संदर्भ में बताया गया । दारा शिकोह कुछ दिनों के लिए कश्मीर यात्रा पर थे । वहां उन्हें कश्मीरी पंडितों के माध्यम से उपनिषदों के रहस्य से परिचय हुआ ।  वहां से लौटने के लगभग 13 वर्ष बाद एवं अपनी मृत्यु के ठीक 05 साल पहले दारा शिकोह काशी ( वाराणसी ( से पंडितों को बुलवा कर लगभग 50 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया । दारा शिकोह के इस प्रयास के कारण उपनिषदों का दर्शन पश्चिमी दार्शनिकों को आकर्षित करने लगा । 

जब कश्मीर से उपनिषद् की ज्ञान ज्योति लेकर दारा शिकोह वापिस आए तब से 13 वर्षों तक उनके दिल में प्रकाशित यह उपनिषद् ज्योति को सरमद कभी बुझने नहीं दिया ।

  अब आगे यह देखना होगा कि एक यहूदी जो सूफियों से आकर्षित हो कर इस्लाम धारण किया हो , वह कैसे दारा शिकोह के दिल में प्रज्वलित उपनिषद् की ज्योति को कभी बुझने नहीं दिया होगा  ! यह एक प्रमुख संदर्भ है ।

सरमद एक यहूदी व्यापारी था जो ईरानसे कालीन एवं ड्राई फ्रूट दिल्ली ले आ कर बेचता और मुरादाबाद से पीतल - ताबा के बर्तन ले जा कर ईरान में बेचता था । समयांतर में वह सूफियों की संगति में आ कर सूफी दर्शन से आकर्षित होता चला गया और इस्लाम धारण कर यहूदी से मुसलमान  बन गया । 

एक बार वह व्यापार के लिए चलते - चलते काशी के करीब स्थित गाजीपुर के एक गांव में आयोजित एक मेले में पहुंच गया । उस स्थान पर एक कब्र थी जहां लोग मत्था टेक रहे

थे । सरमद भी मत्था टेका और वहीं समाधि में उतर गया। वह रात भर वहीं कब्र पर झुका रहा । सुबह कोई गांव वाला उसे वहा  देखा और आ कर उसे उठाया । 

उठते ही , सरमद बोल पड़ा - वाह ! मिट्टी की कब्र में जब इतना नूर है तो तेरा नूर कैसा होगा ! फिर क्या था , अब एक व्यापारी सरमद परम प्रकाश की तलाश में जिज्ञासु सरमद चल पड़ा और गाजीपुर में एक पीपल वृक्ष के नीचे पुनः समाधि में उतर गया । अगले दिन वहां भिक्खू नाम का एक ब्राह्मण किसान उसे उठाया और वहां सोए होने का कारण जानना चाहा । सरमद बोला , उसवकबर के नूर की बात बता दी और आगे बोला कि अब मैं उसी नीर की लताश में हूं। भिक्खू बोला  , बावले ! संसार इतना बड़ा है , कहां - कहां उसे खोजेगा ? हां , एक सरल उपाय है , यदि कोशिश करे तो उस नूर को अपनें अंदर भी देख सकता है क्योंकि वह सबके अंदर भी है । फिर क्या था ! मानो अंधे को आँखें मिल गई हों । सरमद अपनें अंदर रब के नूर की तलाश की जिज्ञासा के साथ वह काशी आ  गया । सरमद बहुत दिनों तक काशी में उपनिषद् ज्ञान प्राप्त करता रहा । पुनः ज्ञान अर्जित  कर जब वह दिल्ली वापिस आया तब पुनः ईरान न जा कर दिल्ली में ही एक कंबल ओढ़े नग्न संन्यासी के रूप में भ्रमण करने लगा और अपना केंद्र जामा मस्जिद बना लिया।

दारा शिकोह प्रति दिन  जामा मस्जिद नवाज पढ़ने आता और सूफी दर्शन का प्रेमी होने के कारण सरमद से उसकी मित्रता बढ़ने लगी । उपनिषद् दर्शन और सूफी दर्शन में काफी निकटता होने के कारण दारा शिकोह भी उपनिषद् प्रेमी होता चला गया और सरमद की सलाह से प्रभावित हो कर , वह काशी से पंडितों को आमंत्रित कर 50 उपनिषदों का भाषान्तर फारसी भाषा में करवाया ।

कुछ समय बाद दारा शिकोह को औरंगजेब मरवा दिया । कुछ दिन और बीते और एक दिन जामा मस्जिद की सिद्धियों पर सरमद का सिर भी कटवा दिया गया । सरमद का सिर ससीढ़ियों के लुढ़कता - लुढ़कता उस स्थान पर आ पहुंचा जहां आज भी उसकी कब्र स्थित है । कहते हैं , उस घड़ी गाजीपुर का वह भिक्खू ब्राह्मण सरमद के सिर के पास प्रकट हुआ और बोला , सरमद ! अब तुम औलिया सरमद हो गए हो , आओ , चलो , मेरे साथ , अब तेरा वक्त पूरा हो गया है ।

इस प्रकार दारा शिकोह और सरमद की जोड़ी के कारण आज उपनिषदों का प्रकाश सारे जगत में प्रकाशित हो रहा है।

।।। ॐ ॐ ।।।

Tuesday, February 25, 2025

उपनिषद् रहस्य भाग 02


मुगल युवराज दारा शिकोह का उपनिषद् प्यार …….


पिछले अंक में बताया गया कि  200 से भी कुछ अधिक उपनिषद् हुआ करते थे जिनमें से 13 उपनिषद् आज उपलब्ध हैं । इन 13 उपनिषदों में से 10 पर आदि शंकराचार्य जी अपना भाष्य भी लिखे हैं जिन्हें दशोपनिषद् कहते हैं ।

दाराशिकोेह ( 1615 - 1659 ) सन् 1640 में कश्मीर गए हुए थे । कश्मीर प्रवास के दौरान उनको उपनिषदों के गूढ़  ज्ञान का पता चला । कश्मीर से लौटने के 13 वर्ष बाद सन् 1654 में  अपनी मृत्यु के ठीक 5 साल पहले काशी के पंडितों को बुलवा कर  50 उपनिषदों का फारसी जुबान में भाषान्तर करवाया था। 

दारा शिकोह के इस प्रयास के कारण उपनिषदों का प्रकाश पश्चिमी दार्शनिकों को आकर्षित किया और उपनिषदों का दर्शन विश्व स्तर पर जाने जाने लगा। 

दारा शिकोह के 50 उपनिषदों में से आज मात्र 13 उपनिषद उपलब्ध हैं शेष समयांतर के अंधेरे में लुप्त हो गए और कोई उपनिषद मनीषी उन उपनिषदों को लैटिन भाषा से किसी भी भारतीय भाषाओं में पुनः जागृत करने का प्रयाय भी नहीं किया, ऐसा जान पड़ता है ।

सीर-ए-अकबर ( महान रहस्य ) , दारा शिकोह द्वारा लिखी किताब  में उपनिषद् के वेदांत दर्शन एवं सूफी दर्शन की समरूपताओं पर प्रकाश डाला गया है । इस किताब में दारा शिकोह ने उपनिषदों एवं इस्लाम की सूफी परंपराओं की समानताओं पर  तर्क देते हुए कहा है कि उपनिषदों का ज्ञान कुरान में वर्णित "किताब-ए-मकिन" (गुप्त ग्रंथ) के समान है । उन्होंने आत्मा (रूह) और ब्रह्म (परमसत्ता) की अवधारणाओं को इस्लामी एकेश्वरवाद (तौहीद) के करीब माना हैं। 

दारा शिकोह  "वहदत-उल-वजूद" (सत्ता की एकता) और अद्वैत वेदांत को समान दृष्टिकोण वाला बताया है। यह ग्रंथ बाद में अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में अनुवादित हुआ , जिससे भारतीय धर्म और दर्शन को पश्चिम में पहचान मिली। दारा शिकोह की यह विचारधारा कट्टरपंथियों को स्वीकार नहीं थी, जिसके कारण उन्हें औरंगज़ेब द्वारा राजगद्दी से हटाया गया और मरवाया गया । दारा शिकोह की लिखी पुस्तक "सिरे अकबर" का हिन्दी में अनुवाद  श्री हर्ष नारायण द्वारा किया गया है । यह पुस्तक ई-पुस्तकालय पर मुफ्त पीडीएफ़ डाउनलोड के लिए भी सुलभ है। अब्राहम हयासिंथे एंक्वेटिल-डुपेरॉन ने 1796 में "सिर्र-ए-अकबर" का लैटिन और फ्रेंच मिश्रित भाषा में अनुवाद किया, जिसे "Oupnek'hat" नाम से जाना जाता है। यह अनुवाद उपनिषदों का पश्चिमी भाषाओं में पहला परिचय था । 

35 साल के अपने जीवन काल के 26 साल की उम्र में कश्मीर पंडितों से  संपर्क हंस और सरमद काशीनी जैसे सिद्ध सूफी संत की संगति के कारण मुग़ल युवराज दारा शिकोह का उपनिषद् प्यार , राज गद्दी पर बैठा तो नहीं सका पर अमर अवश्य बना दिया । 

सरमद दारा शिकोह से 06 साल बड़े थे और दारा शिकोह की मृत्यु के कुछ महीनों बाद औरंगजेब इन्हें की मौत की सजा दे दी थी । इस प्रकार ये दोनों उपनिषद् प्यार में अमर हो गए। अब अगले अंक में सरमद काशानी को समझने के बाद उपनिषद् परिचय की यात्रा आगे बढ़ेगी।

।।।। ॐ।।।।


Wednesday, February 12, 2025

वेदांत दर्शन में उपनिषद् रहस्य भाग - 01


उपनिषद्  परिचय

भाग - 01

अधिकांश आचार्य उपनिषदों की संख्या 200  बताते हैं पर इनका विस्तार उपलब्ध नहीं है , लेकिन सर्वाधिक स्वीकृति संख्या 108 है । सर्व स्वीकृत 108 उपनिषदों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से उपलब्ध है …

वेद

उपनिषद् 

योग

ऋग्वेद

10

10

यजुर्वेद

शुक्ल - 19

कृष्ण - 32

                 योग > 51

51

सामवेद

16

16

अथर्ववेद

31

31

योग >>

>>>>>>>>

108

उपनिषदों का वर्गीकरण उनके विषयों के आधार पर भी किया जाता जो निम्न हैं …

ब्रह्म - आत्मा , योग और यौगिक विधियां और 

वैराग्य - संन्यास ।

17वीं शताब्दी में दारा शिकोह  वाराणसी के प्रमुख वेदान्तियों को आमंत्रित किया और 50 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवाया, जिन्हें बाद में यूरोपीय विद्वानों ने लैटिन और अंग्रेजी में प्रकाशित किया । 

यदि ऐसा न हुआ होता तो उपनिषदों का ज्ञान भारत से बाहर न पहुंचा होता ।

ऊपर बताए गए 108 उपनिषदों में निम्न 13 उपनिषद प्रमुख बताए गए हैं…..

ऐतरेय

ईशावास्य

कठोपनिषद

तैत्तिरीय

बृहदारण्यक

केनोपनिषद

छान्दोग्य

प्रश्नोपनिषद

मुण्डक

मांडूक्य

श्वेताश्वतरोपनिषद्

कौषीतकि

मैत्रायणी

इन प्रमुख 13 उपनिषदों में निम्न 10 के ऊपर आदि शंकराचार्य जी के भाष्य उपलब्ध हैं….

ऋग्वेद

यजुर्वेद

सामवेद

अथर्ववेद

1

4

2

3

ऐतरेय 

ईशावास्य

(शुक्ल) 

कठोपनिषद 

(कृष्ण )

तैत्तिरीय

(कृष्ण )

बृहदारण्यक 

(शुक्ल)

केनोपनिषद

छान्दोग्य 

प्रश्नोपनिषद

मुण्डक 

मांडूक्य 

ऊपर व्यक्त उपनिषदों को दशोपनिषद्  कहा जाता है।

।।।। ॐ।।।।


Wednesday, October 23, 2024

सांख्य कारिका 1 और 2


सांख्य दर्शन की कारिका : 1 - 2

दुःख त्रय अभिघात् जिज्ञासा तद् अपघातक हेतौ

दृष्टे स अपार्था च — एकान्त अत्यंत अभावत् 

   तीन प्रकारके दुःख हैं , इन दुःखों से अछूता रहने की जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है । उपलब्ध उपायों से इन दुःखों से पूर्ण रूप से मुक्त होना संभव नहीं क्योंकि  उपलब्ध साधनों से अस्थाई रूप में दुःखों से मुक्ति मिल पाती है ।

कारिका - 2

 द्रष्टवत् अनुश्रविक स ह्य विशुद्धि क्षय अतिशय युक्त

तत् विपरित श्रेयां व्यक्त अव्यक्तज्ञ विज्ञानात् 

अनुश्रविक उपाय ( दुःख निवारण हेतु वैदिक उपाय जैसे यज्ञ आदि करना ) भी दृश्य उपायों (अन्य उपलब्ध उपायों ) की ही भाँति हैं । वैदिक उपाय अविशुद्धि क्षय - अतिशय दोष से युक्त हैं अतः तीन प्रकार के दुखों से मुक्त बने रहने का केवल एक उपाय है और वह अव्यक्त ( प्रकृति ) और ज्ञ ( पुरुष ) का बोध होना । तीन गुणों की साम्यावस्था को अव्यक्त या मूल प्रकृति कहते हैं ।

अब ऊपर दी गई कारिका 1 और 2 को विस्तार से समझते हैं 🔽

निम्न 03 प्रकार के दुःख हैं ⤵️

# आध्यात्मिक # आधिभौतिक # आधिदैविक 

1 - आध्यात्मिक दुःख (दैहिक ताप )

जिस दुःख का कारण हम स्वयं  होते हैं , वह आध्यात्मिक दुःख है ।बकर्म तत्त्वों एवं त्रिदोषों से मिलने वाले दुःख आध्यात्मिक दुःख होते हैं । यह दुःख मानसिक एवं शारीरिक दो प्रकार का है । इस दुःख से मनुष्य एवं देवता सभीं त्रस्त हैं । इस श्रेणी के दुःख के हेतु कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , भ्रम , संदेह , आलस्य एवं अहंकार हैं , जिन्हें कर्म तत्त्व भी कहते हैं । त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ के असंतुलन से उत्पन्न शारीरिक रोगों से जो दुःख मिलता है , वह भी आध्यात्मिक दुःख ही होता है । 

बहुत कठिन है ,स्वयं के दुःख का , स्वयं को कारण समझना क्योंकि स्वयं को कारण समझते ही अहं की मृत्यु हो जाती हैं और मनुष्य या तो मानसिक डिप्रेशन में आ जाता है या फिर इंद्रियातीत आनंद में रहता है । पहली अवस्था अविद्या के कारण उत्पन्न होती है और दूसरी अवस्था तब आती है जब योगी योगाभ्यास में प्रकृतिलय एवं अस्मितालय की सिद्धि प्राप्त कर लिया होता है । प्रकृतिलय और अस्मितालय के किए पतंजलि समाधिपाद सूत्र : 17 - 19 को समझना होगा ।

2 - आधिदैविक दुःख (दैविक ताप )

जिस दुःखका कारण प्रकृति ( दैव )होती है , उस दुःख को आधि दैविक दुःख कहते हैं जैसे भूकंप , अति वृष्टि आदि जैसी घटनाओं से मिलने वाले दुःख , उस श्रेणी के दुःख हैं।

3 - आधिभौतिक दुःख (भौतिक ताप )

◆ वह दुःख जो अन्य जीवोंसे मिलता है , आधिभौतिक कहलाता है

श्रीमद्भागवत पुराण 1.5 में कहा गया है …

प्रभु समर्पित कर्म संसार में व्याप्त तीन प्रकार के तापों की औषधि होते हैं “

सांख्य दर्शन में ऊपर व्यक्त कारिका 1 और 2 कह रहे हैं  , पुरुष - प्रकृति का बोध अर्थात तत्त्व जिन से तीन प्रकार के दुखों के मुक्त रहा जा सकता है ।

पतंजलि योग दर्शन कहता है , जबतक कैवल्य नहीं मिलता , चित्त केंद्रित पुरुष सुख - दुःख को भोगता रहता है और पुरुष को कैवल्य दिलाने हेतु लिंग शरीर आवागमन करता रहता है । मन , बुद्धि , अहंकार , 10 इंद्रियां और 05 तन्मात्रो के समूह को सूक्ष्म शरीर या लिंग शरीर कहते हैं जो त्रिगुणी प्रकृति के त्रिगुणी तत्त्व हैं ।

~~ ॐ ~~

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