Friday, May 23, 2025

आदि सतयुग में एक वेद और एक धर्म था


आदि सतयुग के प्रारंभ में एक वेद था , त्रेतायुग में तीन वेद हो गए और द्वापर में चार वेद , इस रहस्य को समझते हैं…..

आदि सतयुगमें एक वेद प्रसव  और एक धर्म हंस था (श्रीमद्भागवत, स्कंध 11, अध्याय 17, श्लोक 10 - 14 )।

 ‘प्रसवशब्द का अर्थ उत्पत्ति ,प्रकाश , या स्वाभाविक प्रकट तत्त्व है । समयांतर में  प्रसव वेद से समस्त शास्त्रों, धर्मों एवं अन्य तत्त्वों की उत्पत्ति  हुई। प्रसव , प्रणव (ॐ) को भी अन्तर्भूत करता है क्योंकि प्रणव ही सबका सार है।

#;मुण्डक उपनिषद् (1.1.1) में 'प्रसव ' वेद की बात कही गई है। 

# माण्डूक्य उपनिषद् (मूल) के निम्न सूत्र में प्रणव ( ॐ ) को सम्पूर्ण वेदों का सार कहा गया है …
“  ॐ इत्येतदक्षरं इदं सर्वम् “
# श्रीधर स्वामी, वल्लभाचार्य, तथा कुछ वैष्णव भाष्यकार ‘प्रसव ’ को ‘प्रणव ’ से जोड़ते हैं। 

 # श्रीमद्भागवत (11.17) तथा महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार ⤵️

  • आदि सतयुग के प्रारंभ में एक ही वेद था — जिसे प्रसव वेद  कहा गया।

  • यह वेद श्रुति के रूप में स्वयं ऋषियों के हृदय में स्फूर्त होता था। यह वचन - उपासना की बुनियाद था। 

  • यह वेद संपूर्ण ज्ञान का समावेशी स्रोत था अर्थात ब्रह्म, ब्रह्म , आत्मा , कर्म, ध्यान, उपासना, सब कुछ इसमें था। 

ऊपर व्यक्त संदर्भों  में समय की गणित को भी देखते हैं क्योंकि सतयुग के प्रारंभ से द्वापर के अंत तक का समय 3.888 million years बनता है । सतयुग से त्रेतायुग तक एक वेद से 03 वेद बन गए और द्वापर में एक और वेद बन गया , इस प्रकट कलियुग में 04 वेद उपलब्ध हैं। तनिक सोचिए !  सतयुग से कलियुग तक की मानव सभ्यता के विकास की स्थिति कैसी रही? 

समय की गणित 

युग

अवधि ब्रह्मा वर्ष

अवधि 

मानव वर्ष 

सतयुग

4,800

17,28,000

त्रेतायुग

3,600

12,96,000

द्वापरयुग

2,400

08,64,000

कलियुग

1,200

04,32,000

योग >

12,000

4,320,000

➡ चार युगों का समय = 4.32 million  मानव वर्ष 

▶️ 01 ब्रह्मा वर्ष = 360 मानव वर्ष 


अब नीचे दी गई स्लाइड को देखें , जिसमें एक वेद समयांतर में कैसे विकसित होता रहा और चार वेद बन गए , उनके ब्रह्म ग्रन्थ , आरण्य ग्रन्थ और उपनिषद् कैसे विकसित होते चले गए । 

 

अब इस विषय पर कुछ और संदर्भों को भी देखते हैं ….

श्रीमद्भागवत (1.4.19 - 21) महाभारत शान्तिपर्व के अनुसार ….

  • युग परिवर्तन के साथ मानव की स्मरण शक्ति और सात्विकता कम होने लगी। इस कारण महर्षि वेदव्यास उस एक वेद को तीन भागों विभाजित किया।

  • गीता 9.20 में तीन वेदों को त्रैविद्या संबोधन से संबोधित किया गया हैं ।

  • कुछ शास्त्रों में वर्णित है कि अथर्ववेद स्वयं ब्रह्मा या ऋषि अथर्वा द्वारा प्रकट किया गया (ऋग्वेद 10.7; अथर्ववेद 10.7.20) जबकि यह वेद चौथा वेद है । जब एक वेद से वेदव्यास तीन वेद बन दिए फिर उसके बाद ब्रह्मा द्वारा अथर्ववेद की रचना क्यों करनी पड़ी होगी !

भागवत 1.4.19 –21 में कहा गया है , "द्वापरे तु युगे भूत्वा... एकं वेदं चतुर्धा चकार।" अर्थात  व्यास ने एक वेद को चार भागों में विभाजित किया । अब अगले अंक में कुछ और , अभी इतना ही ।

~~ ॐ ~~

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