Monday, September 21, 2015
गीता के मोती - 50
Saturday, September 5, 2015
गीता के मोती -49(मूल गीता क्या है ? )
श्रीमद्भगवद्गीता महाभारतका एक अंश और भारतके हर घर में मिलता है जबकि महाभारतकी गणना न तो पुराणों है न उपनिषदों में पर आदि शंकराचार्य जी गीताको महाभारतसे अलग गीतोपनिषद नाम जरूर दिया है। आदि शंकराचार्य जी भागवत पर नहीं पर गीताके श्लोकों पर अपनीं सोच ब्यक्त की है ।महाभारत पूर्ण रूपसे कहानियोंकी खान है और इस खानमें 700 श्लोकोंका गीता , हीरेकी तरह अपनीं चमकसे सबको आकर्षित करता ही है ।
महान वैज्ञानिक Prof. ALBERT EINSTEIN SAYS : "When I read Bhagavadgita and reflect about how god created this universe , everything else seems so superfluous . "
गीताके 700 श्लोकोंमें से कुछ ऐसे श्लोकों को एकत्रित करके मूल गीता नाम दिया जा रहा है जिनका सीधा सम्बन्ध है - कर्म , कर्मयोग , ज्ञानयोग और गुण - तत्वों से । मूल गीताका उद्देश्य है :--- इन्द्रिय ,विषय , मन , बुद्धि , अहंकार और गुण - तत्त्व जैसे आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं आलस्यके प्रति होश उठाना तथा इस होशके माध्यमसे अव्यक्तका द्रष्टा बनाना।
मूल गीता अभ्यास - योगसे उस सत्यका द्रष्टा बनाना चाहता है जिसके लिए मनुष्यकी योनि मिली हुयी है । ऐसा अवसर कई जन्मोंके बाद किसी को मिलता है । मूल - गीता वह अवसर है जो आपको योगी राज कृष्णसे एकत्व स्थापित करानें की ऊर्जा रखता है ।
~~ ॐ ~~