1 - आसक्ति बंधनसे मुक्ति सत्संगसे मिलती है ।
2 - हृदय - ग्रंथियोंको खोलना ,ध्यान है ।
3 - इन्द्रियोंके केंद्र उनके अपनें - अपनें बिषय हैं ।
4 - कोई ऐसा बिषय नहीं जिसमें राग - द्वेषकी ऊर्जा न हो ।
5 - राग -द्वेषसे जो मुक्त है , वह योगी - सन्यासी है ।
6 - दुःख संयोगवियोगः योगः ।
7 - आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य और अहंकार , ये भोगकी रस्सियाँ हैं ।
8 - भोगकी रस्सियाँ तीन गुणोंकी बृत्तियाँ हैं ।
9 - इन्द्रिय - बिषय संयोगकी निष्पत्ति , भोग है ।
10 - भोगको योगका माध्यम समझना , ध्यान है ।
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