★देखिये गीता के 39 श्लोक कर्म के सम्बन्ध में क्या कह रहे हैं।
वेद गुण विभाग और कर्म विभाग की बात करते हैं ।
जीव माया और आत्मा के योग का नाम है । शरीर में आत्मा को छोड़ शेष जो है , वह माया है । तीन गुणों की साम्यावस्था को मूल प्रकृति या माया की साम्यावस्था कहते हैं ।
माया ब्रह्म की ऊर्जा में विकृत हो उठती है और उसकी साम्यावस्था बदल जाती है । तीन गुण क्रियशील हो उठते हैं , फलस्वरूप संर्गों की उत्पत्ति होती है , संर्गों से विसर्गों की रचना ब्रह्मा करते हैं । अब देखिये गीता में कर्म क्या है ⬇️
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