Saturday, December 25, 2021
Sunday, December 19, 2021
प्रश्न उपनिषद् सार
🕉️ प्रश्न - उपनिषद् अथर्व वेद - उपनिषद् है 🕉️
अथर्ववेद में 20 काण्ड हैं और श्लोकों की संख्या 5987 बताई जाती है । 5987 श्लोकों में से 730 श्लोक ऋग्वेदीय श्लोक हैं अतः इस प्रकार अथर्ववेद के अपने मूल श्लोकों की संख्या 5,257 बनती है ।
अथर्वेदके 31 उपनिषद् बताये जाते हैं जिनमें से एक प्रश्नोपनिषद् भी है ।
💐 अथर्व वेद में ब्रह्मज्ञान, देवताओं की स्तुतियाँ , और विभिन्न प्रकारके रोगोंके उपचार हेतु विभिन्न प्रकार की जड़ी - बूटियोंके प्रयोग की विधियों को बताया गया है ।
💐 आयुर्विज्ञान , शल्य चिकित्सा , टोना - टोटका और जंत्र - तंत्र भी इस वेद् के प्रमुख बिषय हैं ।
💐 राजनीतिके गुह्य सूत्र भी यहाँ मिलते हैं ।
💐 अथर्ववेद की 09 शाखायें हैं जिनमें से 07 लुप्त हो चुकी हैं ।
⚛ प्रश्नोपनिषद् अथर्ववेदीय पिप्लाद शाखा के ब्राह्मण द्वारा 06 ऋषियों द्वारा पूछे गए 06 प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं ।
☸ यहाँ प्रवक्ता आचार्य पिप्पलाद हैं जो कदाचित् पीपल के गोदे खाकर जीते थे , और ..
💐 निम्न 06 विद्यार्थी हैं ⤵️
1 - कात्यायन कवंधी
2 - भार्गव वैदर्भि
3 - कौशल्य अश्वालयन
4 - सौरयनिन गर्ग्य
5 - सैब्य सत्यकाम
6 - सुकेसन भारद्वाज हैं
प्रश्न: 01
ऋषि कात्यायन कवन्धी का प्रश्न ⤵️
प्रजा ( सृष्टि ) - उत्पत्ति करता कौन है ?
उत्तर
प्रजा वृद्धि की इच्छा वाले प्रजापति ब्रह्मा मिथुन - कर्म माध्यम से रयि - प्राण नामक एक युगल द्वारा प्रजा की उत्पत्ति करायी ।
यहाँ प्राण गति प्रदान करनेवाला चेतन तत्त्व है । रयि , प्राण को धारण करके विविध रूप देने में समर्थ है जिसे प्रकृति कहते हैं ।
अर्थात
प्रकृति ( रयि ) और प्राण के संयोग से प्रजा की उत्पत्ति हुयी
👉 सांख्य योग और पतंजलि योग दर्शन में सृष्टि रचना का आधार प्रकृति - पुरुष संयोग को माना गया है ।
प्रश्न : 2
ऋषि भार्गव वैदर्भि का प्रश्न ⤵️
➡️ प्रजा धारण करनेवाली देवताओं की संख्या कितनी है ? और उनमें वरिष्ठ कौन है ?
उत्तर
🌷 पञ्च महाभूत , 11 इन्द्रियाँ और प्राण , प्रजा धारण करने वाले देवता हैं और इनमें वरिष्ठ प्राण है । प्राण इन सभीं देवताओं का आश्रय है ।
प्रश्न : 3
ऋषि कौसल्य आश्वलायन का प्रश्न ⤵️
☸ प्राण की उत्पत्ति कहाँ से होती है ?
☸ यह शरीर में कैसे प्रवेश करता है ?
☸ यह कैसे शरीर से निकल जाता है ?
☸ और दोनों के मध्य कैसे रहता है ?
उत्तर
👌 प्राण की उत्पत्ति आत्मा से है ।
जैसे शरीर की छाया शरीर से निकलती हैं और शरीर में समा जाती है वही स्थिति प्राण की आत्मा के संग है ; प्राण आत्मा से निकलता है और आत्मा में समा जाता है ।
👌 मन के संकल्प से यह शरीर में प्रवेश करता है ।
👌 अंत समय मे आत्मामें समाकर बाहर निकल जाता है और दूसरी योनि में चला जाता है ।
प्रश्न : 4
ऋषि सौरयनिन गर्ग्य👇
👆शरीर में कौन सी इन्द्रिय शयन करती है ?
👆 कौन सी जाग्रत रहती है ?
👆 कौन सी इन्द्रिय स्वप्न देखती है ?
👆 और कौन सी इन्द्रिय सुख अनुभव करती है ?
👆और ये सब ( इंद्रियाँ ) किस में स्थित हैं ?
उत्तर
👉 जैसे सूर्य रश्मियां सूर्य उदय के समय सूर्य से निकलती हैं और सूर्यास्त के समय उसी में समा जाती हैं वैसे ही इन्द्रियां मनसे निकलती हैं और मन में ही समा जाती हैं ।
👉 इन्द्रियाँ मन आश्रित हैं । जब तक वे फैली हुई है तब तक उनके माध्यम से हमें उनके बिषयों का पता चलता है । जब वे सिकुड़ कर परम् देव मन में केंद्रित हो जाती है तब हम बिषय मुक्त हो जाते हैं । ऐसे मनुष्य की स्थिति सोये हुए व्यक्ति जैसी हो जाती है ।
👉 सोये हुए में प्राण अग्नि जाग्रत रहता है ।
👉 प्राण से सोई हुयी इन्द्रियाँ बिषयों का केवल अनुभव मात्र करती हैं जबकि वे सोई रहती हैं ।
प्रश्न : 5
ऋषि सैब्य सत्यकाम
जीवन भर ॐ का ध्यान करनेवाला किस लोक को प्राप्त करता है ?
उत्तर
⚛️ ॐ का ध्यानी ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है । ⚛️ तेजोमय सूर्यलोक ही ब्रह्मलोक है ।
⚛️ ओंकार ही परब्रह्म है ।
प्रश्न : 6
ऋषि सुकेसन भारद्वाज
हे भगवान पिप्लाद ! कौशल देश के नरेश राज पुरुष हिरण्यनाभ जी मुझसे 16 कलाओं से युक्त पुरुष के सम्बन्ध में जानना चाहा था पर मैं उन्हें न बता पाया ।
क्या आप ऐसे पुरुष की जानकारी रखते हैं ?
🕉️ यहाँ आगे बढ़ने से पूर्व हिरण्यनाभ को समझते हैं ⤵️
🌷 भगवान श्री राम के पुत्र कुश बंश में कुश से आगे 13 वें बंशज हुए हिरण्यनाभ । ऋषि याज्ञवल्क्य हिरण्यनाभ के शिष्य थे । याज्ञवल्क्य सूर्य पर बहुत से वैज्ञानिक खोजे की थी । महाभारत युद्ध से थीक पूर्व में जब कुरुक्षेत्र में सर्वग्रास सूर्य ग्रहण के समय प्रभु श्री कृष्ण के पिता वसुदेव जी यज्ञ का आयोजन किये थे उस समय वहां उपस्थित 29 ऋषियों में से एक थे , याज्ञवल्क्य ऋषि ( भागवत : 10.84.3 - 5 ) ।
उत्तर
💐 जिस पुरुष से 16 कलाएं उत्पन्न होती हैं ,
वह 16 कलाओं से युक्त पुरुष इस शरीर में विद्यमान है ।
💐 उस पुरुषने सर्व प्रथम प्राण का सृजन किया । 💐 प्राणसे श्रद्धा , आकाश , वायु , ज्योति ,
पृथ्वी , इन्द्रियां , मन और अन्न का सृजन किया ।
💐 अन्नसे वीर्य , तप , मन्त्र , कर्म , लोक एवं नाम आदि 16 कलाओं का सृजन किया ।
🌷अब इस संदर्भ में श्रीमद्भगवत पुराण में 16 कलाओं के सम्बन्ध में निम्न सन्दर्भों को देखें ⤵️
1 - भागवत : 1.3.1
यहाँ 11 इन्द्रियाँ + 05 महाभूतों को प्रभु की 16 कलाओं के रूप में बताया गया है ।
2 - भागवत : 2.4.23
यहाँ 11 इंद्रियों और 05 प्राणों ( प्राण , अपान , उदान , व्यान और समान ) को 16 कलाओं के रूप में बताया गया है ।
🌷 05 प्राणों को निम्न प्रकार से बताया गया है ⤵️
1 - प्राण - हृदयमें रहने वाला वायु को कहते हैं।
2 - अपान - गुदा में रहने वाले वायु को कहते है ।
3 - उदान - कंठ में रहने वाले वायु को कहते हैं ।
4 - व्यान - संपूर्ण देह में स्थित वायु को व्यान कहते हैं। 5 - समान - वह वायु है जो नाभि में रहता है ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
Wednesday, December 15, 2021
Friday, December 10, 2021
गीता अध्याय - 11 एक झलक
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय : 11
◆ सम्पूर्ण गीता में अर्जुन के कुल 86 श्लोक हैं
जिनमें से 33 श्लोक इस एक अध्याय में हैं ।
● गीता के 700 श्लोकों में से अध्याय - 10 तक 414 श्लोक हैं , और ⤵️
◆ गीता में अर्जुन के 16 प्रश्न हैं जिनमे से 3 प्रश्न इसी अध्याय में हैं और अर्जुन कह रहे हैं कि आपके परम गोपनीय वचनों से मेरा मोह समाप्त हो गया है , अब मैं स्थिर चित्त हूँ और प्रश्न के बाद प्रश्न पूछ रहे हैं ।
◆ मनुष्य लोगों को धोखा देते - देते इतना आदी हो जाता है कि वह स्वयं को धोखा देने लगता है ।
☸ प्रश्न संदेह युक्त बुद्धि , अशांत मन और अहँकार से उपजता है फिर अर्जुन स्थिर चित्त कैसे हुए !
अर्जुन , प्रभु श्री कृष्ण को सखा और परमात्मा कहते तो हैं लेकिन दिल से नहीं , अन्यथा उनकी बुद्धि शांत और संदेहमुक्त होनी चाहिए थी पर अभीं तक ऐसा हुआ दिखता नहीं।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
Thursday, December 9, 2021
गीता अध्याय - 7 की एक झलक
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 7
1 -इस अध्याय में 30 श्लोक हैं ।
2 -इस अध्याय में प्रभु वक्ता हैं , अर्जुन श्रोता हैं ।
3 - इस अध्याय के 30 श्लोकों में 22 श्लोक प्रभु से सम्बंधित हैं जैसा ऊपर स्लाइड में दिखाया गया है।
गीता अध्याय : 7 के कुछ ज्ञान सूत्र ⤵️
🌷 ज्ञानी दुर्लभ हैं ।
●सभीं भूत अपरा प्रकृति के 08 तत्त्वों एवं चेतना के योगसे हैं।
🌷 हजारों लोगों में कोई एक सिद्धि हेतु यत्न करता है और इन यत्नशील योगियों में कोई एक मुझे तत्त्वसे जानता है ।
🌷 गुणोंके भाव मुझसे हैं पर उन भावों में मैं नहीं ।
◆ सभीं प्राणी तीन गुणों से सम्मोहित रहने के कारण मुझ गुणातीत को नहीं समझ पाते ।
🌷 अनेक जन्मों की तपस्यायों का फल ज्ञान है और ज्ञान से मुझे जाना जाता है ।
● त्रिगुणी दुस्तर माया मोहित असुर होता है ।
● अर्थार्थी , आर्त ( दुःख निवारण हेतु ) ,जिज्ञासु और ज्ञानी ये 04 प्रकार के उत्तम कर्म करने वाले भक्त मुझे भजते हैं ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
Thursday, December 2, 2021
प्रभु श्री कृष्ण और संख्या - 18
प्रभु श्री कृष्ण और संख्या - 18
● महाभारत में 18 पर्व हैं
★ श्रीमद्भागवत पुराण में 18,000 श्लोक हैं
◆ जरासंध मथुरा पर 18 बार आक्रमण किया
● गीतामें 18 अध्याय हैं
◆ महाभारत युद्ध 18 दिन चला
● युद्ध में 18 अक्षौहिणी सेनाएं भाग ली
और अब आगे ⬇️
● एक अक्षौहिणी में 21870 रथ और इतने ही हाँथी थे ।
● ऊपर की संख्या 21870 के अंकों के जोड़ को देखिये ( 2 + 1 + 8 +7 + 0 = 18 ) ; है , न मजेदार गणित !
● घुड़सवारों की संख्या 65,610 थी अब इस सांख्य के अंकों के योग को देखें ( 6 + 5 + 6 + 1 + 0 = 18 ) , यह गणित भी कैसी लगी , आपको !
● पैदल योद्धाओं की संख्यस 1, 09, 350 थी , अब इस संख्या के अंकों के जोड़ को देखिये ( 1 + 0 + 9 + 5 + 0 = 18 ) ; है , न मजेदार गणित !
🌷रथ , हांथी , घुड़सवार और पैदल सैनिकों की संख्यायों में 1:1:3:5 का अनुपात था ।
अब इसे भी देखें ⤵️
🌷 महाभारत युद्ध में 18 अंक के गहरे राज में 1 + 8 = 9 अर्थात 9 ग्रह की छाया को भी समझ लें 🌷
~~◆◆ ॐ ◆◆~~