Monday, September 28, 2009

ध्यान से नहीं ध्यान में----भाग-२

यहाँ आप देखिये गीता के निम्न श्लोकों को ----------------

4.38 10.20 13.2 13.17 13.22 13.24 13.33 15.7 15.11 15.15 18.61

यहाँ गीता कहता है ................

मनुष्य के ह्रदय में स्थित आत्मा ही परमात्मा है जिस की अनुभूति योग सिद्धि पर मिले ज्ञान से होती हैज्ञान वह है जिस से क्षेत्र-क्षेत्रग्य का बोध होउठाइये गीता और रमजाइए इन श्लोकों में यदि आप अपनें ह्रदय-कपाट को खोलना चाहते हैं

गीता गणित को समझनें के लिए बुद्धि चाहिए की मात्र पढनें की औपचारिताआज हम जिसको भक्ति की संज्ञा देते हैं ऐसी भक्ति से गीता के श्लोकों में छिपे परम श्री कृष्ण के स्वरों को पकड़ना असंभव होगा

ध्यान विधियों से गुजरनें से सत की झलक मिलती hai - ऐसी बात सत्य नहीं हैं , ध्यान में दूबनें से सत्य की झलक अवश्य मिलती है , यह सत्य हैध्यान में जब कोई पुरी गहराई में पहुंचता है तब उसके अंदर ऐसा क्या घटित होता है की वह जो देखता है उसको कोई अन्य सामान्य ब्यक्ति नहीं देख सकता

अर्जुन को परम कृष्ण और संजय को वेद ब्यास जी दिब्य नेत्र दिए थे जिसके कारण अर्जुन उन्के ऐश्वर्य रूपों को देख पाए और संजय धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में जन्में गीता को देख एवं सुन पाए थे [gita 11।8, 18।75 ] .

गीता कहता है -ब्रह्म की अनुभूति मन-बुद्धि से परे की है [ गीता-12.3,12.4 ] तो क्या ध्यान में ध्यानी मन-बुद्धि से परे की स्थिति में होता है ?

विज्ञानं कहता है --मनुष्य की आँखें दो पिक्साल वाले डिजीटल बायो कैमरे की तरह हैं जिनमें देखनें का काम रोड तथा कों करते हैंको दिन में देखते हैं जो रंगों को पहचानते हैं और राड्स [rods] रात में देखनें का काम करते हैराड्स सफ़ेद एवं काले रंगों में किसी को प्रतिबिम्ब की तरह से देख पाते हैऐसा कहा जाता है की जानवरों को भुत-प्रेत एवं आत्माएं दिखाती हैं और अधिकाँश मंशाहारी जानवर रात में शिकार करते हैं अर्थात इनमें राड्स अधिक शक्तिशाली होते हैंराड्स के देखनें की क्षमता को से हजारगुना अधिक होती है और ये फोटान को भी देख सकते हैं --ऐसी बात वैज्ञानिक बताते हैं

ध्यान में आँखें बंद रहती है और अधिकांश लोग गुफाओं आदि में ध्यान करते हैं जहा अँधेरा होता हैलंबे समय तक ध्यान में रहनें वालों की आँखों के राड्स ज्यादा सक्रीय हो जाते है और वे वह सब कुछ देख पाते हैं जो एक आम आदमी के लिए निराकार हैंआत्मा-परमात्मा क्या हैं ? राम कृष्ण परम हंस के लिए परमात्मा साकार है और हम सब के लिए निराकारआत्मा से आत्मा में केंद्रित ब्यक्ति के लिए कुछ भी निराकार नहीं होता और आम आदमी के लिए वह सब निराकार है जो उनके मन-बुद्धि से परे है

कहते हैं--ध्यान में इन्द्रीओं से बुद्धि तक बहनें वाली उर्जा निर्विकार हो जाती है जिस से उस ब्यक्ति को निराकार ब्रह्म साकार रूप में दिखानें लगता है और वह जो कुछ भी बोलता है उसकी बातों कोई यकीं नहीं करता

क्या आप ध्यान के माध्यम से अपनी आंखों के राड्स को सक्रीय करके निराकार में पहुँचना चाहते हैं ?यदि हाँ तो देर किस बात की उठाइए गीता अभी और इसी वक्त


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