Monday, June 14, 2010

गीता गुण रहस्य भाग - 16


गुण साधना द्रष्टा बनाती है

मेरे एक मित्र हैं , परम से जुड़े से दिखते हैं , हमारे साथ रहे भी हैं , एक दिन बोल पड़े - तुमनें किया ही क्या , अपनें जीवन में ? उनकी बात मुझे बहुत कडुई लगी , मैं उदास सा हो गया , लेकीन बाद में उनकी बात समझ में आयी ।
मैं गीता प्रेमी हूँ - ऐसा मैं समझता हूँ , लेकीन अभी मैं गीता से कोशों दूर हूँ - ऐसा मुझे उनकी बातों को सुननें के बाद लगा । गीता अध्याय दो जो ब्यवहारिक रूप में गीता ज्ञान का सारांश है , वहाँ प्रभु कहते हैं - हे अर्जुन समभाव के बिना जीवन रहस्य में सत की आहट पाना संभव नहीं क्योंकि यह मनुष्य का जीवन गुण सागर में डूबा हुआ है ।

संसार है क्या ? संसार गुणों का सागर है जो मनुष्य को प्रभु से दूर भोगों में ब्यस्त रखता है । संसार का बोध गुण तत्वों का बोध है जो सीधे प्रभु की ओर रुख को करता है । प्रभु श्री कृष्ण युद्ध को अर्जुन को रूपांतरित करनें का माध्यम बना रहे हैं क्योंकि अर्जुन सघन तामस गुण तत्व - मोह में डूबे हैं - यह अवसर बार - बार नहीं आनेवाला लेकीन कृष्ण की चाह को अर्जुन समझ नहीं पा
रहे । कहते हैं गीता का जन्म अर्जुन को स्थिर मन वाला बना कर प्रभु से परिपूर्ण करना है लेकीन गीतान्त तक अर्जुन मोह मुक्त तो होते नहीं , अर्जुन चूक जाते हैं - बार - बार ।
जैसे अर्जुन परम श्री कृष्ण जैसे मित्र को पानें के बाद भी अज्ञान में डूबे रहते हैं वैसे मैं भी अपनें ग्यानी मित्र की बातों को न समझ कर अहंकार एवं अज्ञान में बना रहा । संसार में रहनें का केवल एक उद्देश्य है - भोग तत्वों को समझना और इनकी समझ बैरागी बना कर द्रष्टा भाव में पहुंचा कर प्रभु से भर देती है ।
संसार में अवसर तो हर पल मिलते रहते हैं लेकीन इन अवसरों को जो पकड़ कर आगे निकाल जाते है , वे अज्ञान से ज्ञान में पहुँच कर परम आनंद में होते हैं ।

आप देखना मेरे जैसे अवसर को हाँथ से निकलनें न देना , क्या पता दुबारा ऐसा प्यारा अवसर मिले या न मिले ।
जब किसी की अनुकूल या प्रतिकूल बातों का अन्तः कारन पर कोई असर न पड़े तब वह स्थिति होती है -
द्रष्टा या साक्षी की ।

==== ॐ =====

No comments:

Post a Comment

Followers