गीता सूत्र - 5.26
काम - क्रोध विमुक्त ब्रह्म निर्वाण प्राप्त करता है
गीता सूत्र - 3.37
काम - क्रोध राजस गुण के तत्त्व हैं
गीता सूत्र - 2.62
ध्यायतः बिशायान् पुंसः संग तेषु उपजायते
संगात् संजायते कामः कामात् क्रोधः अभिजायते
बिषय का चिंतन आसक्ति की जननी है
आसक्ति से काम [ कामः उपजायते ] उपजता है
काम से [ कामात् ] क्रोध उत्पन्न होता है
इस सूत्र में काम शब्द का अर्थ कामना लगभग सभीं टीकाकार लगाते हैं लेकिन काम , कामना , क्रोध एवं लोभ एक ऊर्जा से हैं जिसको राजस गुण कि ऊर्जा कहते हैं /
विमुक्त का अर्थ यह नहीं कि काम - क्रोध को त्यागा जाए , जहाँ त्याग कृया के रूप में प्रयोग किया जाता है वहाँ अहँकार सघन होनें का मार्ग मिलता है और जब होश में काम - क्रोध स्वतः विसर्जित होते हैं वहाँ ब्रह्म निर्वाण की ओर रुख हो जाता है /
अब आप गीता के इन तीन सूत्रों को मिला कर एक सोच पैदा करे जो आप को ब्रह्म निर्वाण की ओर ले जाए जो मनुष्य योनि का परम लक्ष्य है /
==== ओम् =====
काम - क्रोध विमुक्त ब्रह्म निर्वाण प्राप्त करता है
गीता सूत्र - 3.37
काम - क्रोध राजस गुण के तत्त्व हैं
गीता सूत्र - 2.62
ध्यायतः बिशायान् पुंसः संग तेषु उपजायते
संगात् संजायते कामः कामात् क्रोधः अभिजायते
बिषय का चिंतन आसक्ति की जननी है
आसक्ति से काम [ कामः उपजायते ] उपजता है
काम से [ कामात् ] क्रोध उत्पन्न होता है
इस सूत्र में काम शब्द का अर्थ कामना लगभग सभीं टीकाकार लगाते हैं लेकिन काम , कामना , क्रोध एवं लोभ एक ऊर्जा से हैं जिसको राजस गुण कि ऊर्जा कहते हैं /
विमुक्त का अर्थ यह नहीं कि काम - क्रोध को त्यागा जाए , जहाँ त्याग कृया के रूप में प्रयोग किया जाता है वहाँ अहँकार सघन होनें का मार्ग मिलता है और जब होश में काम - क्रोध स्वतः विसर्जित होते हैं वहाँ ब्रह्म निर्वाण की ओर रुख हो जाता है /
अब आप गीता के इन तीन सूत्रों को मिला कर एक सोच पैदा करे जो आप को ब्रह्म निर्वाण की ओर ले जाए जो मनुष्य योनि का परम लक्ष्य है /
==== ओम् =====