एक प्रार्थना
मैं आम तौर पर लिखता हूँ - गीता कहता है / गीता के साथ कहता है लिखना कुछ लोगों को ठीक नहीं लगता / गीता कहता है या गीता कहती है , इनमें क्या फर्क है ?
आप किसी के यहाँ जाएँ उससे मिलनें और दरवाजे पर ही अपनें को लटका लें तो जिससे मिलना था , फिर मिलना कैसे संभव होगा ? गीता कहता है शीर्षक के माध्यम से गीता की जो बात आप को दिखायी गयी , उसे तो आप देखनें में चूक गए /
गीता मूलतः संबाद है ; और संबाद मेरी सोच में पुलिंग है अतः गीता कहता है , मैं लिखता हूँ / मैं हिंदी , संस्कृत , अंग्रेजी सभीं भाषाओं में बहुत कमजोर ब्यक्ति हूँ , कहीं किसी समय कोई गलती हो जाए तो आप सब मुझे क्षमा करें , मैं तो वह बात आप सबको देना चाहता हूँ जिसे मुझे कोई दे रहा है /
लेकिन ---
भाषा के अभाव में मैं पूर्ण रूप से उसे नहीं दे पाता जो मुझे गीता से मिलता है ....
तभी तो रोज लिख रहा हूँ ...
जिस दिन मैं जो कहना चाहता हूँ , वह कह लूंगा , लिखना स्वतः बंद हो जाएगा //
सप्रेम आप सबके लिए ---
==== ओम् ======
मैं आम तौर पर लिखता हूँ - गीता कहता है / गीता के साथ कहता है लिखना कुछ लोगों को ठीक नहीं लगता / गीता कहता है या गीता कहती है , इनमें क्या फर्क है ?
आप किसी के यहाँ जाएँ उससे मिलनें और दरवाजे पर ही अपनें को लटका लें तो जिससे मिलना था , फिर मिलना कैसे संभव होगा ? गीता कहता है शीर्षक के माध्यम से गीता की जो बात आप को दिखायी गयी , उसे तो आप देखनें में चूक गए /
गीता मूलतः संबाद है ; और संबाद मेरी सोच में पुलिंग है अतः गीता कहता है , मैं लिखता हूँ / मैं हिंदी , संस्कृत , अंग्रेजी सभीं भाषाओं में बहुत कमजोर ब्यक्ति हूँ , कहीं किसी समय कोई गलती हो जाए तो आप सब मुझे क्षमा करें , मैं तो वह बात आप सबको देना चाहता हूँ जिसे मुझे कोई दे रहा है /
- न मेरे पास भाषा है ....
- न मेरे पास ब्याकरण है ....
- न मेरे पास लोग हैं ....
- न मेरे पास समाज है ....
- न मेरे पास मेरा अपना परिवार है ....
- पिछले लगभग 14-15 सालों से मेरे साथ जो है वह गीता है
- गीता से बातें होती हैं ----
- गीता के साथ हसना होता है ----
- गीता के साथ रोना होता है ----
- और गीता के साथ घूमना होता है ---
- अभीं तक पिछले 15 सालों में मुझे कहीं यह न दिखा कि गीता क्या है ---
- गीता का हर पल रंग बदलता , मैं देखता हूँ ....
- गीता मुझे जो देता है उसे मैं आप सबको देना चाहता हूँ ....
लेकिन ---
भाषा के अभाव में मैं पूर्ण रूप से उसे नहीं दे पाता जो मुझे गीता से मिलता है ....
तभी तो रोज लिख रहा हूँ ...
जिस दिन मैं जो कहना चाहता हूँ , वह कह लूंगा , लिखना स्वतः बंद हो जाएगा //
सप्रेम आप सबके लिए ---
==== ओम् ======