Tuesday, April 30, 2013

एक प्रार्थना

 एक प्रार्थना 

मैं आम तौर पर लिखता हूँ - गीता कहता है / गीता के साथ कहता है लिखना कुछ लोगों को  ठीक नहीं लगता / गीता कहता है या गीता कहती है , इनमें क्या फर्क है ?
 आप किसी के यहाँ जाएँ उससे मिलनें और दरवाजे पर ही अपनें को लटका लें तो जिससे मिलना था , फिर मिलना कैसे संभव होगा गीता कहता है शीर्षक के माध्यम से गीता की जो बात आप को दिखायी गयी , उसे तो आप देखनें में चूक गए /

गीता मूलतः संबाद है ; और संबाद मेरी सोच में पुलिंग है अतः गीता कहता है , मैं लिखता हूँ / मैं हिंदी , संस्कृत , अंग्रेजी सभीं भाषाओं में बहुत कमजोर ब्यक्ति हूँ , कहीं किसी समय कोई गलती हो जाए तो आप सब मुझे क्षमा करें , मैं तो वह बात आप सबको देना चाहता हूँ जिसे मुझे कोई दे रहा है / 


  • न मेरे पास भाषा है ....
  • न मेरे पास ब्याकरण है ....
  • न मेरे पास लोग हैं ....
  • न मेरे पास समाज है ....
  • न मेरे पास मेरा अपना परिवार है ....
  • पिछले लगभग 14-15 सालों से मेरे साथ जो है वह गीता है 
  • गीता से बातें होती हैं ----
  • गीता के साथ हसना होता है ----
  • गीता के साथ रोना होता है ----
  • और गीता के साथ घूमना होता है ---
  • अभीं तक पिछले 15 सालों में मुझे कहीं यह न दिखा कि गीता क्या है ---
  • गीता का हर पल रंग बदलता , मैं देखता हूँ ....
  • गीता मुझे जो देता है उसे मैं आप सबको देना चाहता हूँ ....

लेकिन ---

भाषा के अभाव में मैं पूर्ण रूप से उसे नहीं दे पाता जो मुझे गीता से मिलता है ....
तभी  तो रोज लिख रहा हूँ ...

जिस दिन मैं जो कहना चाहता हूँ , वह कह लूंगा , लिखना स्वतः बंद हो जाएगा //

सप्रेम आप सबके लिए ---

==== ओम् ======

Friday, April 19, 2013

गीता ज्ञान - 18

गीता श्लोक - 2.67, 2.60 , 3.7

श्लोक -2.67

" प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं : बिषय सम्मोहित इंद्रिय मन - माध्यम से बुद्धि को गुलाम बना लेती है "

" Object  influenced  sense influences the intelligence through mind "

श्लोक - 2.60

" यहाँ प्रभु कह रहे हाँ : मन बिषय आसक्त इंद्रिय का गुलाम होता है "

" Mind follows the object influenced sense "

श्लोक - 3.7

" यहाँ प्रभु कह रहे हैं : इंद्रिय नियोजन मन से होना चाहिए "

" Sense - control should be through mind "

गीता की गंभीरता को समझिए .....


  • श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में मन से इंद्रियों को नियोजित करने के लिए कह रहे हैं 
  •  अर्जुन का मन संदेह युक्त है ...
  • अर्जुन का मन प्रश्नों की नर्सरी बना हुआ है .....
  • अर्जुन प्रभु की बातों को सुनते नहीं , उन बातों में प्रश्न की खोज में अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं ...
  • जिस मन में प्रश्न हैं , उस मन में संदेह होगा ...
  • जिस मन में संदेह होगा , वह मन इंद्रियों को उचित आदेश दे नहीं सकता ...
  • संदेह की ऊर्जा वाला आदेश इंद्रियों कि कुशलता को कमजोर करेगा ....
  • कमजोर कार्य कुशलता का परिणाम है असफलता ....
  • युद्ध की असफलता का अर्थ है मौत 

प्रभु के तीन सूत्र जो ऊपर दिए गए हैं , उनको आप अपनें अभ्यास - योग की बुनियाद बना सकते हैं /

=== ओम् ======

Tuesday, April 9, 2013

गीता ज्ञान - 17

गीता श्लोक -12.9 + +  6.23 + 8.8

श्लोक - 12.9 

अथ चित्तं समाधातुं न् शक्नोषि मयि स्थिरं 
अभ्यासयोगेन ततः माम् इच्छा आप्तुम् धनञ्जय 

" यदि तुम मुझ में अपनें मन को अचल स्थापित करनें में समर्थ नहीं तो अभ्यास - योग से मुझे प्राप्त करनें की इच्छा कर "

श्लोक - 6.23 

तम्  विद्यात् दुःख संयोग वियोगम् योग सञ्ज्ञितम् 
सः निश्चयेन योक्तब्यः योगः अनिर्विंण्णचेतसा 

" दुःख संयोग रहित होना , योग है , इस बाट को समझते हुए धर्य मन से योग में उतरना चाहिए "

श्लोक - 8.8 

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना 
परमं पुरुषं दिब्यम् याति पार्थ अनुचितयन् 

" अभ्यास योग में स्थिर चित्त से परम दिब्य पुरुष की अनुभूति होती है "

देखिये गीता में योग की परिभाषा - दुःख संयोग वियोगः इति योगः अर्थात वह जो दुःख से आजाद करे ,
 योग है /
प्रभु युद्ध - क्षेत्र में अर्जुन को कह रहे हैं कि अभीं तुम अपनें चित्त को मेरे ऊपर केंद्रित करनें में सफल यदि नहीं हो रहे तो कोई बात  नहीं , तुम अभ्यास योग में उतरो जिसमें तुम मुझे परम दिब्य पुरुष के रूप में देख सकेगा / 
योग और कर्म का गहरा सम्बन्ध है ; कर्म दो प्रकार के हैं , एक कर्म वह जिसके होनें के पीछे किसी न् किसी गुण की ऊर्जा होती है और दूसरा कर्म वह है जो स्वतः होता है , बिना करण और जिसका केन्द्र भोग नहीं भगवान होता है / वह कर्म जिसका केन्द्र भगवान है , उसे कर्म योग कहते हैं और जिस कर्म के पीछे भोग भाव होता है उसे भोग कहते हैं / 
चाह से साथ हो रहा कर्म भोग है ...
चाह रहित हो रहा कर्म कर्म योग है ....

=== ओम् ======


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