गीता श्लोक - 2.67, 2.60 , 3.7
श्लोक -2.67" प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं : बिषय सम्मोहित इंद्रिय मन - माध्यम से बुद्धि को गुलाम बना लेती है "
" Object influenced sense influences the intelligence through mind "
श्लोक - 2.60
" यहाँ प्रभु कह रहे हाँ : मन बिषय आसक्त इंद्रिय का गुलाम होता है "
" Mind follows the object influenced sense "
श्लोक - 3.7
" यहाँ प्रभु कह रहे हैं : इंद्रिय नियोजन मन से होना चाहिए "
" Sense - control should be through mind "
गीता की गंभीरता को समझिए .....
- श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में मन से इंद्रियों को नियोजित करने के लिए कह रहे हैं
- अर्जुन का मन संदेह युक्त है ...
- अर्जुन का मन प्रश्नों की नर्सरी बना हुआ है .....
- अर्जुन प्रभु की बातों को सुनते नहीं , उन बातों में प्रश्न की खोज में अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं ...
- जिस मन में प्रश्न हैं , उस मन में संदेह होगा ...
- जिस मन में संदेह होगा , वह मन इंद्रियों को उचित आदेश दे नहीं सकता ...
- संदेह की ऊर्जा वाला आदेश इंद्रियों कि कुशलता को कमजोर करेगा ....
- कमजोर कार्य कुशलता का परिणाम है असफलता ....
- युद्ध की असफलता का अर्थ है मौत
प्रभु के तीन सूत्र जो ऊपर दिए गए हैं , उनको आप अपनें अभ्यास - योग की बुनियाद बना सकते हैं /
=== ओम् ======
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