●●मैत्रेयका सृष्टि सांख्यदर्शन
●● सन्दर्भ : भागवत : 3.5+3.6
°° मैत्रेयका आश्रम गंगाके तट पर हरिद्वारके निकट था जिसका नाम कुशावर्त था ।महाभारत युद्ध समाप्त हो गया था , यह सनाचार विदुर को प्रभास क्षेत्र में मिला और विदुर अपनी तीएथ यात्रा समाप्त कर वापिस चल पड़े । विदुर पहले बृंदावनमें उद्धवसे ज्ञान प्राप्ति की फिर हस्तिनापुर बी जा कर सीधे मैत्रेय के पास पहुंचे । मैत्रेयजी जब द्वारकाके अंत और यदुकुलके अन्तके समय प्रभु के पास प्रभास क्षेत्रमें
थे । ओरभु को परमधाम जाते हुए मैत्रेयजी देखे थे । >> मैत्रेयका सृष्टि सांख्य दर्शन ब्रह्माके सांख्य दर्शनसे कुछ भिन्न है ,आइये , पहले इस सांख्य -गणित को देखते हैं :------
[ माया ]
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माया + काल
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महत्तत्त्व ^
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महत्तत्त्व + काल
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तीन अहंकार ^
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तीन अहंकार + काल
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[1] सात्त्विक अहंकार + काल
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[इन्द्रियोंके देवता + मन ]^
[2] राजस अहंकार + काल
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[10 इन्द्रियाँ + बुद्धि + प्राण]^
[3] तामस अहंकार + काल
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[ शब्द ] ^
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शब्द + काल
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आकाश ^
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आकाश + काल
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स्पर्श ^
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°° स्पर्श + काल °°
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[ वायु ] ^
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वायु + काल
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[ रूप ]^
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रूप + काल
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( तेज )^
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तेज + काल
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(रस )^
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रस+ काल
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[ जल ] ^
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जल + काल
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[ गंध ]^
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गंध + काल
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°° पृथ्वी °° ^
● मैत्रेय की सांख्य गणितमें महाभूतोकी उत्पत्ति उनके विषयों( तन्मात्रों ) से हो रही है जैसे शब्द से आकाश ,स्पर्श से वायु ,रूप से तेज ( अग्नि ) , रस से जल और गंध से पृथ्वी ।
● प्रकृत प्रलयमें क्या होता है ? वायु पृथ्वी की गंध खीच लेती है और पृथ्वी जल बन जाती है । जल जा रस जब वायु ले लेती है तब जल अग्नि बन जाता है । अग्नि से उसका रूप अन्धकार द्वारा ले लिया जाता है और अग्नि वायु में बदल जाती है । अब सर्वत्र वायु ही वायु है और वातु से काल स्पर्श छीन लेता है , फलस्वरूप वायु आकाशमें विलीन हो जाता है और आकाशसे काल शब्द ले लेता है और आकाश तामस अहंकार में लीं हो जाता है ।
● इसी प्रकार राजस एवं सात्त्विक अहंकारों से उसके तत्त्वों को छीन किया जाता है और तब तीन अहंकार रह जाते हैं ।
● तीन अहंकार कालके प्रभावसे महत्तत्त्वमें विलीन हो जाते हैं और महत्तत्त्व मायामें और माया ब्रह्म का फैलाव है अतः वह सिकुड़ कर ब्रह्ममें समाजाती है । °°° ॐ °°
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