Wednesday, August 14, 2013

ज्ञान और विज्ञान

गीता श्लोक - 6.8
ज्ञानविज्ञानतृप्त आत्मा कूटस्थ : विजितेन्द्रिय :
युक्तः इति उच्यते योगिः सम्लोष्टाश्म्काज्चन :

" ज्ञान - विज्ञानसे तृप्त निर्विकार नियोजित इंद्रियों वाला समभावसे युक्त , योगी होता है "

ज्ञान - विज्ञान शब्द गीता में श्लोक  -6.8 ,  7.2, 9.1 ,13.2 ,14.1 में मिलता है / 

श्लोक - 13.2 में ज्ञान की परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी गयी है -----
" क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध , ज्ञान है " पर विज्ञान की परिभाषा गीता में नहीं है / 

भागवत - 11.19 में ज्ञान विज्ञान की परिभाषा कुछ इस प्रकार से है ----
ज्ञान : 
05 विषय , अहँकार , महत्तत्त्व , प्रकृति , पुरुष , 11 इन्द्रियाँ , 03 गुण और 05 महाभूतों का बोध ज्ञान है
विज्ञान :
ज्ञान में 28 तत्त्वों को जिनको उपर बताया  गया है , उनको ब्रह्मसे हुआ देखना , विज्ञान  है 

भागवत और गीता में ज्ञान से विज्ञान की यात्रा बतायी गयी है अर्थात बिना ज्ञान विज्ञान में कदम रखना संभव नहीं / ज्ञान अर्जित करनें के लिए हमारे पास पांच ज्ञान इन्द्रियाँ हैं लेकिन यह ज्ञान निर्विकार नहीं होता / 
इंद्रियों एवं बिषयों के संयोग से जो मिलता है वह भोग है , ऐसी बात गीता - 5.22 कहता है फिर हम ज्ञान से विज्ञान में कदम कैसे रख सकते हैं ? 
ज्ञान से विज्ञान में कदम रखनें के लिए -----
पहला कदम : ध्यान माध्यम से गुण तत्त्वोंके बंधन से इंद्रियों एवं मन को मुक्त कराना
दूसरा कदम : ध्यान की गहराई में पहुँच कर प्रकृति - पुरुष का द्रष्टा बनना जो किया नही जा सकता , यह एक स्थिति है जो ध्यान के पकनें पर  स्वतः मिलती है /
तीसरा कदम : वह जिसकी इन्द्रियाँ एवं मन निर्विकार रहनें लगता है वह समभाव में होता है / समभाव द्रष्टा की स्थिति पैदा करता है और द्रष्टा ज्ञान से परिपूर्ण विज्ञान में होता है /

ध्यान एक पाठशाला है जहाँ कर्म बंधनों को समझना और उनके कुप्रभावों  का अनुभव करना तो मनुष्य के बश में है लेकिन आगे की  यात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि यह प्रारंभिक ध्यान का चरण कितना मजबूत है /
वह जिसका पहला चरण अर्थात इंद्रिय - बिषय का बोध मजबूत हो जाता है उनकी ध्यान की यात्रा राज पथ की यात्रा हो जाती है और वे शीघ्र विज्ञान में पहुंचते हैं जहाँ से परम गति का द्वार दिखनें लगता है /
ज्ञान विज्ञान की यात्रा का नाम है ध्यान 
विषयों का बोध ....
इंद्रियों की बृत्तियों के प्रति होश ...
मन को अब्यक्त की खोज पर केंद्रित करता है 
और
 यह खोज अपनें आप विज्ञान से परम गति तक का मार्ग तय करती है लेकिन ....
विज्ञान में पहुंचा योगी सिद्धि प्राप्ति भी करता है , सिद्धि प्राप्ति के बाद अहँकार मजबूत हो उठाता है और   पुनः भोग में वापिस पहुंचा सकता है , पर होश मजबूत  हो तो सिद्धियों से आगे की यात्रा संभव है
 जो परम गति की यात्रा है /
=== ओम् =====



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