गीता महाभारत में भीष्म पर्वके अंतर्गत 6.25 - 6.42 में दिया गया है ।महाभारतका 18 पुराणों में कोई स्थान नहीं जबकि महाभारत की रचना भागवत से पहले हुयी है और भागवत 18000 श्लोकोंवाला एक प्रमुख पुराण है । महाभारत एवं भागवतकी भाषा गीता की भाषा से भिन्न है और इन तीनों ग्रंथों को पढ़नें के बाद ऐसा लगनें लगता है जैसे गीता इनसे एक दम भिन्न है । मैं समझता हूँ , गीता एक ऐसी सिद्ध योगी की देन हो सकता है जो मूलतः सांख्य योगी रहा हो ।आइन्स्टाइन और मैक्स प्लैंकसे ले कर एक आम आदमी तकको गीता अपनी ओर आकर्षित करता है ,लोग इसे इतना क्यों चाहते हैं ? यह एक शोधका बिषय है ।
आइये देखते हैं गीताकी भाषाको , इसके कुछ श्लोकोंके माध्यम
से :--
(1) गीता श्लोक : 2.55 + 2.70
" कमाना रहित बुद्धिको स्थिर प्रज्ञता कहते हैं।"
(2) गीता श्लोक : 5.20
" स्थिर प्रज्ञ ब्रह्म में बसता है ।"
(3)गीता श्लोक : 2.57 + 5.19
" स्थिर प्रज्ञ समभाव योगी ब्रह्म जैसा होता है ।
"
देखा ! गीताकी भाषाको , गीताकी भाषा गणितकी भाषा है जहाँ गागर में सागर उनको दिखता है जो खोजी हैं । गीताके शब्द हों और उन शब्दोंका आप का अर्थ हो तो वे गीता - शब्द प्राण रहित हो जाते हैं और गीताके शब्द हों और उनकी ब्याख्या गीतामें खोजी जाय तब वही शब्द आप को वह उर्जा दे सकते हैं जो कई जन्मोंके लिए पर्याप्त हो सकती है लेकिन दुःख होता है इस बात को देख कर कि गीताकी भाषा में कोई दार्शनिक अपनेंको नहीं बहाया अपितु गीता की भाषाको अपनी भाषामें बहाकर गीतामें छिपे अब्यक्त भावको समाप्त जरुर कर दिया ।गीतासे ही कुछ और उदाहरण देखते हैं।
* गीतामें अर्जुन प्रश्नके बाद प्रश्न करते हैं,प्रभुकी हर बात में अर्जुन प्रश्न ढूढ़ लेते हैं और अर्जुनको गीता में प्रभु सीधी बात कहते
हैं --
* तामस गुण से अज्ञान है , अज्ञानसे संदेह है ; संदेह अज्ञानकी उर्जाका संकेत है और अज्ञान , संदेह , भ्रम एवं अहंकारसे प्रश्न उठते हैं , जितना गहरा संदेह होगा उतना गहरा प्रश्न उठेगा लेकिन यह बात प्रभु एक जगह नहीं कहते , यह प्रभुकी बात
गीताके कई अध्यायोंके कई श्लोकों का भाव है ।
* गीतामें अपनें प्रश्नोंके समाधान के लिए तैरना ,बुद्धि -योग है और गीता बुद्धि योगका सागर है ।
* गीता , भोगसे योग , कर्मसे ज्ञान , ज्ञानसे
भोग - वैराग्य और वैराग्यावस्था में परम धामकी यात्रा करवाता है । गीताको लोग जितना जल्दी पकड़ते हैं उतना ही जल्दी इसे छोड़ भी देते हैं और ऐसा करनें से वे गीता की उर्जा प्राप्त करनें से चूक जाते हैं ।
गीता किसी और को सुनानेंका बिषय नहीं है ,यह तो कर्मसे कर्म -योग में ,कर्म - योगमें भोग तत्त्वों से वैराज्ञ ,वैराज्ञमें ज्ञान और ज्ञान -योगमें परम धामकी यात्रा की उर्जा देता है ।
गीता साधनाका एक सीधा मार्ग है जीसकी यात्रा एक - एक सीढ़ी चल कर करनी होती है और इस यात्रामें हर सीढ़ी की यात्रा पूर्ण होशसे भरी होनी चाहिए ।
*** ॐ ***
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