● संसार , प्रभु से प्रभुमें प्रभुकी मायासे निर्मित है। माया तीन गुण और अपरा - परा दो प्रकृतियों से निर्मित है ।माया वह माध्यम है जहाँ हर पल हो रहे परिवर्तन से काल ( time )के रूप में परम,अब्यय , निर्विकार और निराकार प्रभुके होनें का आभाष होता है ।
● काल प्रभु की चाल है और संसारमें हो रहा परिवर्तन ही माया का संकेत है ।
● संसार मनुष्यके लिए एक उत्तम प्रयोगशाला है और अन्य जीवोंके लिए भोजन- प्रजननकी एक नर्सरी है ।
● संसारमें मनुष्यको छोड़ कर अन्य सभीं जीवोंका जीवन काम और भोजन आश्रित है लेकिन मनुष्यके लिए इस संसारमेंभोजन और काम सरल माध्यम हैं जिनके सहयोगसे वह अपनी नीचे बहनें की कोशिश कर रही उर्जा को ऊपर उठाता है और ऊर्जा जब उर्ध्वगामी हो जाती है तब रामकी अनुभूति होती है। मनुष्यकी भोजन और कामकी समझ उसे ध्यानमें प्रवेश कराती है और ध्यान रामका निवास स्थान है । ● काल प्रकृति के परिवर्तन से मायाकी सूचना देता है। ।
● माया ऊर्जा शरीर में बहा रही उर्जा को उर्ध्व गामी होनें नहीं देती और माया की यह रुकावट उर्जा को निर्विकार बना दक्ती है और निर्विकार उर्जा ही होश
है ।
● होशमें बसा हुआ मनुष्य बुद्ध होता है : जब तक होश बना है तबतक वह बुद्ध रूप में माया का द्रष्टा होता है ।
** गीतामें प्रभु श्री कृष्ण अर्जुनको यही सीख देते हैं । ~~ ॐ ~~
Friday, December 13, 2013
गीता मोती - 13
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment