Tuesday, April 29, 2014
एक फ़क़ीर की सोच
Thursday, April 24, 2014
भागवतकी कुछ मूल बातें
Wednesday, April 23, 2014
भागवतके कुछ मोती - 1
Monday, April 21, 2014
गुरु प्रसाद
Tuesday, April 8, 2014
गीता दृष्टि
●गीताके मोती - 19●
* गीता एक पाठशाला है जहाँ उनको परखनें और समझनें का मौका मिलता है जिनको गुण तत्त्व या भोग तत्त्व कहते हैं जैसे आसक्ति ,कामना ,काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,भय , आलस्य और अहंकार ।
* गीता कहता है , गुण तत्वों से परिचय अभ्यास योग से होता है और यह परिचय सभीं तत्वों के स्वभावों से अवगत कराता है ।
* गुण तत्वों की परख बुद्धि योग की अहम कड़ी है जो अनिश्चयात्मिका बुद्धि को निश्चयात्मिका बुद्धि में बदल कर समभाव में बसा देती है । समभाव में स्थित मन -बुद्धि एक ऐसा माध्यम बन जाते हैं जहाँ जो भी होता है वह परम सत्य ही होता है ।
* गीता की छाया में बैठना ध्यान है और ध्यानसे मनुष्य ज्ञान -विज्ञान की उर्जा से क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ के रहस्य को देखता है और यह रहस्य ही सांख्य योग का केंद्र है ।
* गीता कर्म योग की गणित देता है जहाँ कर्म कर्म तत्वों की पकड़ के बिना होता है और ऐसे कर्म का केंद्र निराकार प्रभु होता है । कर्म तत्वों की पकड़ के बिना होनें वाला कर्म ध्यान है जहाँ इन्द्रियाँ अपनें -अपनें बिषयों के सम्मोहन से दूर अन्तः मुखी हो जाती है ,मन प्रभु पर केन्द्रित होता है और बुद्धि तर्क -वितर्क से परे निर्मल आइना जैसी हो उठती है जिस पर बननें वाली तस्बीर निराकार ब्रह्म की होती है जिसे इन्द्रियाँ ब्यक्त नहीं कर सकती पर उसे नक्कार भी नहीं सकती ।
* क्रोध को प्यार में ...
* अहंकार को श्रद्धा में ...
*आसक्ति -कामना को भक्ति में ...
बदलनें की उर्जा गीता में हैं ।।
~~~ हरे कृष्ण ~~~