<> कुछ ध्यान सूत्र <>
1- भागवत : 1.5 > जिस चीज के खानें से जो मर्ज़ होता है उस मर्जके लिए वह वस्तु दवाका काम भी कर सकती है यदि उसका प्रयोग औषधि विधि से किया जाय ।
2- भागवत : 9.6 > ऋगवेदी सौभरि ऋषि अपनीं 50 स्त्रियों के साथ भोग में रहे और अंत में अपनें अनुभव को कुछ इस प्रकार ब्यक्त किया :---
" मोक्ष की चाह रखनें वाले को भोगी की संगति से दूर रहना चाहिए ।"
3- भागवत : 8.1> नैष्कर्म्य की सिद्धि ब्रह्ममय होनें की स्थिति है ।
4- भागवत : 11.13 > तीन गुणों की पकड़ बुद्धि तक सीमित है ।
5- यहाँ गीता : 14.5 + 3.37 + 3.40 को भी देखें जो कहते हैं ----
5.1> तीन गुण आत्मा जो देह में रोक कर रखते हैं।
5.2> क्रोध काम का रूपांतरण है और काम राजस गुण का प्रमुख तत्त्व है ।
5.3>काम का सम्मोहन बुद्धि तक सीमित है ,आत्मा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
6- भागवत : 3.10> ब्रह्मा प्रभुके राजस गुणी अवतार हैं।
7- भागवत : 1.3> 11 इन्द्रियाँ +05 महाभूत ये प्रभु की 16 कलाये हैं ।
8- भागवत : 1.5> नारद व्यास से कहते हैं : वह शास्त्र - ज्ञान अज्ञान है जो प्रभुमय न कर सकें।
9- भागवत : 2.2> ज्ञान से चित्त की वासना नष्ट होती है ।
10- भागवत : 1.2> आसक्ति का अंत सत्संग से संभव है ।
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~
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