भागवत : 12.1+ 12.2
> परीक्षित से सन 2013के मध्यका समय 3450 वर्ष बनता है ।परीक्षित का जन्म महाभारत युद्धके ठीक बाद का है। मेहर गढ़ सभ्यता 7000 साल ईशापूर्व की आंकी गयी है ।
भागवत 3.4.13
° जब प्रभुके परम धाम जानेंका समयआया…
° जब यदु -कुलका अंत होनेको आया …
° जब द्वारकाके समुद्रमें विलय होनेंका समय आया …
● तब प्रभास क्षेत्रमें सरस्वती नदीके किनारे एक पीपल-पेड़के नीचे चतुर्भुज रूपमें प्रभु श्री कृष्ण अपनें मित्र उद्धवको भागवतकी परिभाषा कुछ इस प्रकार बता रहे हैं :--
● कल्पके उदय होते समय मेरे नाभि कमल पर बैठे ब्रह्माको जो मैं ज्ञान दिया था , विवेकी लोग उसे श्रीमद्भागवत पुराण
कहते हैं ,।
* भागवत में 18000 श्लोकों हैं जो 12 स्कंधों में बिभक्त हैं ।
* श्री शुकदेव जी परीक्षितसे भागवत में निम्न 10 बातों की चर्चा करते हैं :---
सन्दर्भ <> भागवत - 2.10 <>
1- सर्ग :
<> 05 महाभूत + 05 तन्मात्र + महत्तत्त्व + अहंकार + इन्द्रियों की उत्पत्ति गुणों में प्रभु द्वारा लाये गए परिवर्तन से हुयी और इनको सर्ग की संज्ञा विचारकोंनें दी ।तीन गुणोंका माध्यम प्रभु की माया है और प्रभु माया से अप्रभावित हैं । माया में कालके माध्यम से गतिका पैदा होना सर्गों के उत्पत्ति का कारण है । सर्ग मूल तत्त्व हैं जिनसे विसर्गों की रचना ब्रह्मा द्वारा बाद में की गयी ।
2- विसर्ग :
<> ब्रह्माकी रचना विसर्ग कहलाती है ।
3- स्थान :
<> स्थान प्रभुकी उस उर्जा - क्षेत्रका नाम है जो विनाशकी ओर कदम उठाती सृष्टिको एक मर्यादा में रखती है ।
4- पोषण :
<> प्रभुका भक्तों पर जो स्नेह बरसता रहता
है , उसे पोषण कहते हैं ।
5- ऊति :
<> कर्म - बंधन उक्ति है ।कर्मके सम्बन्ध में गीता कहता है -----
* कर्म मुक्त एक पल केलिए भी होना संभव
नहीं - गीता - 18.11, 3.5
* कर्म विभाग - गुण विभाग वेदका प्रमुख विषय है - गीता 3.28
* कर्म कर्ता तीन गुण हैं और कर्ता भावका आना अहंकार की छाया है - गीता -3.27
* कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोषमुक्त हो -
गीता -18.40
* आसक्ति रहित कर्म ज्ञानयोग की परानिष्ठा
है - गीता 18.49-18.50
¢ - कर्म सवको मिला हुआ वह सहज माध्यम है जो राग से वैराज्ञ में पहुँचाता है और वैराज्ञ परम गतिका द्वार है ।।
6- मन्वन्तर :
<> शुद्ध भक्ति और शुद्ध धर्मका अनुष्ठान कर्ता , मन्वन्तर कहलाता है ।
7- ईशानुकथा : प्रभु की विभिन्न अवतारों की <> कथाएं ईशानुकथा कहलाती हैं ।
8- निरोध :
<> जीवोंका प्रभु में लीन होना , निरोध है ।
9- मुक्ति :
<> परमात्मा नें स्थिर होना , मुक्ति है ।
10- आश्रय :
<> परम ब्रह्म ( जिससे और जिसमें यह सृष्टि है ) आश्रय कहलाता है ।
>> ध्यान से समझें <<
* ऊपर बतायी गयी 10 वातों को ....
° प्रभु सृष्टि रचना से पूर्व ब्रह्माको बताया ।
° वेदव्यास अपनें पुत्र शुकदेव जीको भागवत रचना करनेंके बाद सुनाया , उस समय शुकदेव जी 16साल से कम उम्र के थे ।
° सनकादि ऋषियों द्वारा भगवत कथा आनंद गंगा घाट हरिद्वार क्षेत्र में भक्ति एवं उसके पुत्रों ज्ञान , वैराज्ञ के कल्याण केलिए नारद द्वारा ब्यवस्थित यज्ञ में सुनाया गया ।
° प्रभु कृष्ण अपनें मित्र उद्धवको प्रभास क्षेत्र में अपनें परमधाम यात्रा के समय सुनाया ।
° 16 वर्षीय शुकदेव जी सम्राट परीक्षित को उनके अंत समय में सुनाया ( उस समय परीक्षित की उम्र लगभग 60 साल की रही होगी ) ।
° नैमिष आरण्य में सूत जी सौनक आदि ऋषियों को कलि युगके आगमनके समय सुनाया ।
# भागवत की मूल बातों को अपनें ध्यानका बिषय बनायें ।
~~ ॐ ~~
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