Sunday, August 10, 2014

गीता के मोती - 30

● दर्शन ● <> भागवत : 10.23 <> 
* वृन्दावन में यमुना तट पर गौएँ चराते हुए प्रभु - बलराम और अन्य उनके साथी काफी दूर निकल गए थे । वहाँ उनको भूख लगी । वहाँ से कुछ दूरी पर मथुरा के ब्राह्मण स्वर्ग प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे ।जब प्रभु के निर्देशन पर ग्वाले वहाँ भोजन माँगने पहुँचे तब उन ऋषियों का कोई सकारात्मक ब्यवहार नहीं दिखा । ग्वाल - बाल पुनः प्रभु के निर्देशन पर ब्राह्मण पत्नियों के पास गए ,फिर क्या था ? पत्नियाँ चार प्रकार के भोजन लेकर स्वयं ग्वाल - बालों के संग चल पड़ी । ब्राह्मण पत्नियाँ प्रभु को भोजन कराया और जब प्रभु उनको वापिस जानें को कहा तब वे कहती हैं :--
" हे प्रभु ! श्रुतियाँ कहती हैं , जो प्रभु का दर्शन पा लेता है ,वह पुनः लौट कर संसार में कदम नहीं रखता । आप अपनें इस वेद - वाणी को यथार्थ करें । " 
 ● यज्ञ -पत्नियाँ वह कह रही हैं जो हर सिद्ध पुरुष जिसका प्रभु में बसेरा पा लेता है ,वह यही कहता है। 
● मनुष्य योनि प्राप्त करना एक सुअवसर है ,उसे खोजनें का जो प्रकृतिका संचालक है ,जो अप्रमेय है , जो सनातन है और जो निर्गुण है । 
● साकार कृष्ण में निराकार कृष्ण को जिसनें देख लिया वह और कहाँ जाना चाहेगा ? श्रुतियाँ कहती हैं :---
 * परा भक्त मोक्ष भी नहीं चाहता ,वह जहाँ और जिसमें होता है ,वह उसके लिए पर्याप्त होता है ।
 ● भागवत : 10.87 : भागवत यहाँ एक और ध्यान सूत्र देता है :-- 
* " श्रुतियाँ सगुन का निरूपण करती हैं लेकिन सगुण में जो यात्रा करता रहा ,वह एक दिन निर्गुण में सरक जाता है और तब उसके लिए यह संसार एक के फैलाव स्वरुप स्पष्ट रूप से दिखनें लगता है।" 
●● आज भागवत के दो ध्यान सूत्रों की चमक को हम - आप देखे । प्रभु हमें उस सत्मार्ग पर रखे जिससे इन दो सूत्रों की चमक में प्रभु की स्मृति बनी रहे ।
 ~~ ॐ ~~

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