Thursday, August 28, 2014

गीता के मोती - 31 ( तीर्थ क्या हैं ? )

● तीर्थ क्या है ? प्रभु श्री कृष्ण अपनें चाचा अक्रूर जी के संबध में और भगवान शिव मार्कंडेय ऋषि के सम्बन्ध में जो कहते हैं , उन बातों को आप यहाँ देखें और उनमें डूबें । इन बातों का सम्बन्ध तीर्थ से है । 1 - ● भागवत : 10.48 > कंश - बधके बाद एक दिन प्रभु ,बलराम और उद्धव मथुरा में स्थित अपनें चाचा अक्रूर जीके घर गए । प्रभु वहाँ कहते हैं ," चाचाजी ! आप हमारे गुरु -हितोपदेशक हैं । चाचाजी ! केवल जलके तीर्थ तीर्थ नहीं , केवल जड़ मूर्तियाँ ही देवता नहीं , उनकी तो श्रद्धा से बहुत दिनों तक जब सेवा की जाय तब वे पवित्र करते हैं । परन्तु आप जैसे संत पुरुष तो दर्शन मात्र से पवित्र कर देते हैं " । 2- ● भागवत : 12. 8-12.10 : हिमालय के उत्तर में भृगु बंशी मृकंद ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ऋषिका आश्रम पुष्प भद्रा नदी के तट पर , चित्रा शिला के पास था ।एक दिन मार्कंडेय ऋषि अपनें आश्रम में ध्यान में उतरे हुए थे । उधर से शिव जी - माँ पारबती गुजर रही थी । माँ मार्कंडेय के ध्यान से आकर्षित हुयी और शिव जी को वहाँ चलनें के लिए आग्रह किया । शिव जी मार्कंडेय ऋषि के सम्बन्ध में कहते हैं , " मार्कंडेय जी ! केवल जल मय तीर्थ ,तीर्थ नहीं ,केवल जड़ मूर्तियाँ ही देवता नहीं , सबसे बड़े तीर्थ और देवता तो तुम्हारे जैसे संत हैं ; क्योंकि वे तीर्थ -मूर्तियाँ बहुत दिनों में पवित्र करते हैं और आप जैसे संत दर्शन मात्र से पवित्र कर देते हैं । 3- ● भागवत : 1.4.8 > शौनक ऋषि सूत जी से कह रहे हैं ," शुकदेव जी जिस घडी जहाँ रुक जाते थे उस घडी वह स्थान तीर्थ बन जाता था लेकिन जितनी देर में एक गाय दुही जाती है उतनी ही देर से अधिक समय तक शुक देव जी कहीं नहीं रुकते थे फिर वे 18000 श्लोकों की भागवत कथा परीक्षित जी को कैसे सुनाई होगी ? " ● तीर्थ क्या हैं ? ऊपर की बातों से स्पष्ट है :-- * तीर्थ कुछ देते नहीं , अन्तः करणको निर्विकार कर देते हैं।निर्विकार अन्तः करण क्या है ? मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार को अन्तः करण कहते हैं । निर्मल अन्तः करण में निर्मल उर्जा बहती है और निर्मल उर्जा में परमानन्द की अनुभूति होती है । * निर्मल अन्तः करण वाला संत प्रभु मय होता है और यहाँ तक कि वह मोक्ष भी नहीं चाहता । * ऐसा संत जहाँ होता है , वह स्थान उस समय तीर्थ बन जाता है ।

No comments:

Post a Comment

Followers