" प्रकृते: क्रियमाणानि
गुणै: कर्माणि सर्वशः ।
अहंकारविमूढात्मा
कर्ताहमिति मन्यते ।।"
< शब्दार्थ <
" प्रकृतिके गुण कर्म करते हैं ,अहंकार प्रभावित स्वयं को कर्ता मानता है "
<> इस श्कोल पर खूब मनन कीजिए ,मननके बाद आप भी यही कहेंगे ----
" गुण कर्म - कर्ता हैं ,
कर्ताभाव अहंकारकी छाया है ।।"
# हम तो गुण उर्जाकी एक मशीन जैसे हैं ,जो गुण ज्यादा प्रभावी रहता है ,वैसा हमसे कर्म होता है , यह स्थिति है उनकी जो भोग में तैर रहे हैं पर योगी इन गुणोंका द्रष्टा होता है ।
# गीता -2 .28 और गीता- 14.10 को एक साथ देखिये जहाँ आपको गुण समीकरण का रहस्य मिलेगा ।
~~ ॐ ~~