Tuesday, October 28, 2014

गीता के मोती - 35

# गीता - 3.27 #
 " प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वशः । 
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ।।" 
< शब्दार्थ < 
" प्रकृतिके गुण कर्म करते हैं ,अहंकार प्रभावित स्वयं को कर्ता मानता है " 
 <> इस श्कोल पर खूब मनन कीजिए ,मननके बाद आप भी यही कहेंगे ---- 
" गुण कर्म - कर्ता हैं , कर्ताभाव अहंकारकी छाया है ।।" 
# हम तो गुण उर्जाकी एक मशीन जैसे हैं ,जो गुण ज्यादा प्रभावी रहता है ,वैसा हमसे कर्म होता है , यह स्थिति है उनकी जो भोग में तैर रहे हैं पर योगी इन गुणोंका द्रष्टा होता है । 
# गीता -2 .28 और गीता- 14.10 को एक साथ देखिये जहाँ आपको गुण समीकरण का रहस्य मिलेगा । 
~~ ॐ ~~

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