Saturday, February 21, 2015

गीत के मोती -- 40

गीता श्लोक : 13.17 
# कृष्ण कह रहे हैं :---- 
" वह अर्थात ब्रह्म परम ज्योति है , माया से परे है , तत्त्व ज्ञान से इसका बोध संभव है और जो सबके हृदय में बसा हुआ 
है ।" 
<>इस बात को समझो <> 
वह ब्रह्म मायातीत है अर्थात वह जो उसे समझना चाहता है , उसे ----
 * मायातीत होना पडेगा --- 
** उसे तत्त्व ज्ञानी बनना पडेगा ---- 
*** और उसे अपनें हृदयके सभीं ग्रंथियोंको खोलना पडेगा , तब कहीं उस निर्भाव, निर्मल , निर्गुण परम ज्योतिकी अनुभूति उसे अपनें हृदय में हो सकती है । 
* हैं आप तैयार ? 
 ~~ॐ ~~

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