# कृष्ण कह रहे हैं :----
" वह अर्थात ब्रह्म परम ज्योति है , माया से परे है , तत्त्व ज्ञान से इसका बोध संभव है और जो सबके हृदय में बसा हुआ
है ।"
<>इस बात को समझो <>
वह ब्रह्म मायातीत है अर्थात वह जो उसे समझना चाहता है , उसे ----
* मायातीत होना पडेगा ---
** उसे तत्त्व ज्ञानी बनना पडेगा ----
*** और उसे अपनें हृदयके सभीं ग्रंथियोंको खोलना पडेगा , तब कहीं उस निर्भाव, निर्मल , निर्गुण परम ज्योतिकी अनुभूति उसे अपनें हृदय में हो सकती है ।
* हैं आप तैयार ?
~~ॐ ~~
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