प्राणायाम भाग - 02
प्राणायाम भाग - 01 में स्थूल शरीर में स्थित 10 प्रकार के प्राण ( वायु ) , शरीर में उनके केंद्र तथा कार्यों को बताया गया और अब इस अंक में पतंजलि योग दर्शन में प्राणायाम को समझने के लिए साधनपाद सूत्र : 46 - 53 ( 08 सूत्र) को देखते हैं ।
पहले ऊपर व्यक्त 08 सूत्रों की रचना के संबंध में देखते हैं और इसके बाद इन सूत्रों के आधार पर योग साधना की प्रारंभिक बातों भी देखा जाएगा ।
अब ऊपर के तीन सूत्रों का हिंदी भाषान्तर देखते हैं
शरीर की वह मुद्रा जिसमें स्थिर सुख मिले , उसे आसन कहते हैं (साधनपाद सूत्र : 46 )।
जब आसन अभ्यास में स्थिर सुख मिलने लगे तब आसन अभ्यास के साथ चित्त को अनंत पर एकाग्र करने का का भी अभ्यास प्रारंभ कर देना चाहिए (साधनपाद सूत्र: 47 )।
आसान सिद्धि प्राप्त योगी सभीं प्रकार के द्वंद्वों से मुक्त रहने लगता है ( साधन पाद सूत्र : 48 ) ।
अब साधन पाद के अगले सूत्र : 49 - सूत्र : 53 तक को देखते हैं ….
तस्मिन् सति श्वास प्रश्वास गति विच्छेद: प्राणायाम:
आसन सिद्धि से स्वत प्राप्त श्वास - प्रश्वास गति विच्छेद को प्राणायाम कहते है । इस सूत्र को और स्पष्ट रूप से आगे समझा जा सकता है जब चार प्रकार के प्रणयामों की चर्चा होगी , तब ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 50
स तु बाह्य आभ्यंतर स्तंभ वृत्ति ।
देश काल संख्या परिदृष्टो दीर्घ सूक्ष्म : ।।
सूत्र के शब्दों को समझते हैं …
बाह्य > बाहर अर्थात श्वास अर्थात रेचक प्राणायाम , आभ्यंतर > अंदर अर्थात पूरक प्राणायाम
और स्तम्भ वृत्ति > दोनों की अनुपस्थिति अर्थात कुंभक प्राणायाम
सूत्र भावार्थ
➡तीन प्रकार के प्रणायामों की बात महर्षि यहां कर रहे हैं जो रेचक प्राणायाम ,पूरक प्राणायाम और कुम्भक प्राणायाम नाम से जाने जाते हैं । रेचक और पूरक प्रणायमों में श्वास क्रिया देश , काल एवं संख्या की दृष्टि से दीर्घ एवं सूक्ष्म होनी चाहिए , इस बात को आगे समझा जाएगा ।
अंदर की वायु को बाहर निकालने को रेचक प्राणायाम , देह के बाहर की वायु को नासिका से अंदर लेने को पूरक प्राणायाम कहते हैं । रेचक और पूरक के संगम को बाह्य कुंभक तथा पूरक एवं रेचक के संगम को अंतः कुंभक प्राणायाम कहते हैं ।
अब देश , काल और संख्या को समझते हैं …
रेचक , पूरक और कुंभक की अवधि लंबी होनी चाहिए , संख्याएँ प्रति मिनट कम होती जानी चाहिए और वे सूक्ष्म होनी चाहिए । सूक्ष्म का अर्थ है गति धीमी होनी चाहिए ।
एक सामान्य ब्यक्ति 02 सेकेण्ड में एक श्वास लेता है । इस समय को धीरे - धीरे बढ़ाते जाना चाहिए । श्वास और प्रश्वास एवं कुंभक की अवधि लंबी होनी चाहिए । रेचक और पूरक की क्रियाएं सूक्ष्म होनी चाहिए और इनकी संख्या समय इकाई के आधार पर धीरे - धीरे कम होती जानी चाहिए।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 51
" बाह्य आभ्यंतर बिषय आक्षेपी चतुर्थः "
पिछले सूत्र - 50 में तीन प्रकार के प्राणायान बताए गए - रेचक , पूरक और कुंभक और अब बाह्य कुंभक नाम के चौथे प्राणायाम की बात महर्षि पतंजलि कर रहे हैं अर्थात कुंभक प्राणायाम दो प्रकार का है ; अंतः कुंभक और बाह्य कुंभक । श्वास लेते समय जब श्वास का अंत होता है और कुछ समय बात प्रश्वास क्रिया प्रारंभ होती है अर्थात श्वास - प्रश्वास के संगम को जहां दोनों अनुपस्थित रहते हैं , अंतः कुंभक और प्रश्वास और श्वास के संगम को जहां दोनों अनुपस्थित रहते हैं उसे बाह्य कुंभक कहते हैं।
साधन पाद सूत्र : 52 + 53
" तत : क्षीयते प्रकाश आवरणम् "
प्राणायाम सिद्धि से प्रकाश को ढकने वाले आवरण (अविद्या ) क्षीण हो जाता है और चित्त में धारणाकी योग्यता आती है । अब धारणा को देखते हैं ⤵️
किसी सात्त्विक आलंबन से चित्त का बध जाना , धारणा है । धारणा सिद्धि से ध्यान में प्रवेश मिलता है और ध्यान सिद्धि से संप्रज्ञात समाधि साधना का द्वार खुल जाता है । आगे चल कर धारणा , ध्यान और संप्रज्ञात समाधि को अलग से समझा जाएगा अभीं आसन सिद्धि संबंधित कुछ विशेष बातों को भी देख लेते हैं ⤵️
योगाभ्यास किसी जल श्रोत के तट पर करने से परिणाम अच्छे और शीघ्र मिलते हैं । जहां आसन अभ्यास करना हो वह स्थान शुद्ध , समतल और शांत होना चाहिए । आसन अभ्यास से समाधि की यात्रा प्रारंभ होती है अतः आसन अभ्यास जी जगह का चुनाव उचित होना चाहिए । 24 घंटे में दो अमृत बेला आती हैं ; सूर्योदय के ठीक पहले और सूर्यास्त के ठीक पहले । अमृत बेला आसन अभ्यास की उत्तम बेला होती है। शरीर स्वास्थ्य और पेट साफ होना चाहिए। आसन सिद्धि का अभ्यास योग में उतरने का पहला चरण है अतः कुछ सावधानियां को ठीक से समझ लेना चाहिए । योगाभ्यास कर रहे योगी के लिए सम्यक निद्रा एवं सम्यक जागरण का अभ्यासी होना चाहिए । साधक को सम्यक और शुद्ध साकाहारी भोजन करना चाहिए ।
आसन अभ्यास करते समय सिर , गर्दन तथा स्पाइनल कॉर्ड एक रेखा में भूमि पर लंबवत एवं तनाव मुक्त स्थिति में होने चाहिए । किसी एक सात्त्विक आलंबन पर चित्त एकाग्र करने का अभ्यास भी आसन अभ्यास के साथ करते रहना चाहिए।
~~< ॐ <~~