सांख्य दर्शन और पतंजलि योग दर्शन के आधार पर पुरुष - प्रकृति के आपसी संबंध किस प्रकार से है ?
इस विषय के संबंध में निम्न संदर्भों को समझें हैं ⬇️
1- पतंजलि योग साधन पाद सूत्र : 20 , 21
2 - सांख्य कारिका : 56 से 60 तक
अब आगे ⤵️
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 20
" द्रष्टा दृश्यमात्र : शुद्ध : अपि प्रत्यय अनुपश्य : "
अनुपश्य का अर्थ है , पीछे से देखना
द्रष्टा ( पुरुष ) शुद्ध है और दृश्य ( प्रकृति ) मात्र है ।
अर्थात पुरुष शुद्ध चेतन है और प्रकृति केवल है । केवल हुई का अर्थ है पुरुष के लिए हैं जैसा आगे चल कर स्पष्ट होता है।
जो चित्त पर प्रतिविम्बित होता है , द्रष्टा ( पुरुष ) उसी को देखता है ।
बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को सांख्य चित्त की संज्ञा देता है । इस प्रकार पुरुष का जब संयोग प्रकृति से होता है तब पुरुष चित्ताकार हो जाता है अर्थात निर्गुण पुरुष त्रिगुणी चित्त के गुलाम जैसा व्यवहार करने लगता है। अब अगले सूत्र में देखें ….
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 21
" तदर्थ एव दृश्यस्यात्मा "
तत् अर्थ एव दृश्यस्य आत्मा
<> दृश्य ( प्रकृति ) , तत् (पुरुष ) के लिए है ।
पतंजलि साधन पाद सूत्र : 20 +21के साथ
अब साधन पाद सूत्र : 20 और 21 का एक साथ सार देखें ..
" पुरुष शुद्ध चेतन निर्गुण ऊर्जा है और त्रिगुणी जड़ है । प्रकृति पुरुष के किए एक माध्यम है जिसकी मदद से वह संसार का अनुभव प्राप्त करता है "
सांख्य कारिका - 56
सृष्टि के निमित्त 23 तत्त्व (महत् , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत )पुरुष के लिए मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं ।
सांख्य कारिका : 57 - 58
👌 यह प्रकृति का स्वार्थ नहीं अपितु स्वार्थ की तरह परार्थ कार्य भी करती है । पुरुष मोक्ष का कारण , प्रकृति है । जैसे अचेतन दूध चेतन बछड़े का निमित्त होता है वैसे अचेतन प्रकृति , चेतन पुरुष के मोक्ष का माध्यम है। जैसे लोग अपनी अपनी उत्सुकताओं को पूरा करने के लिए अलग - अलग क्रियायों में प्रवृत्त होते हैं वैसे ही पुरुष मोक्ष हेतु प्रकृति भी प्रवृत्त रहती
सांख्य कारिका : 59 - 60
प्रकृति , पुरुष हेतु उपकारिणी है । जैसे एक नर्तिकी नाना प्रकार के भावों - रसो से युक्त नृत्य को प्रस्तुत करके निवृत्त हो जाती है वैसे ही प्रकृति भी पुरुष को अपना प्रकाश दिखा कर मुक्त हो जाती है । जैसे उपकारी व्यक्ति दूसरों पर उपकार करते हैं तथा अपने प्रत्युपकार की आशा नहीं रखते उसी तरह गुणवती प्रकृति भी निर्गुणी पुरुष के लिए उपकारिणी है और स्वयं के प्रत्युपकार की आशा नहीं रखती ।
सांख्य कारिका : 56 - 60 का सार⬇️
प्रकृति और उसके 23 कारण ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत ) पुरुष को कैवल्य प्राप्ति के साधन हैं । त्रिगुणी जड़ प्रकृति शुद्ध निर्गुणी पुरुष जो प्रकृति से जुड़ कर चित्ताकार हो जाता है , उसके लिए निःस्वर्थ उपकारिणी है ।
~~ ॐ ~~
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