सांख्य दर्शन में ….
महत् ( बुद्धि ) तत्त्व की निष्पत्ति किससे और कैसे हुई ? भाग - 02
सांख्य दर्शन में प्रकृति - पुरुष संयोग से उत्पन्न पहला तत्त्व महत् ( बुद्धि ) है , देखें निम्न स्लाइड को ⬇️
संदर्भ कारिका : 3 + 22 + 24 - 28 ⬇️
स्लाइड में बुद्धि , मूल प्रकृति का कार्य और अहंकार का कारण है । अहंकार गुणों के आधार पर तीन प्रकार का हैं > सात्त्विक , राजस और तामस । सात्त्विक अहंकार के कार्य रूप में 11 इंद्रियां है । राजस अहंकार से किसी तत्त्व की निष्पत्ति नहीं है , यह सात्त्विक और तामस अहंकार की मदद करता है । तामस अहंकार से 05 तन्मात्रो की निष्पत्ति है तथा तन्मात्रो से पांच महाभूतो की निष्पत्ति है ।
यहां ध्यान में रखना होगा , प्रकृति त्रिगुणी है अतः कार्य - कारण सिद्धान्त के अनुसार इसके 23 तत्त्व भी त्रिगुणी ही होंगे। अब आगे चलते हैं ⤵️
सांख्य दर्शन में निम्न करिकाओं के आधार पर महत् (बुद्धि )तत्त्व , उसकी उत्पत्ति , गुण और स्वभाव
विकृत हुई त्रिगुणी जड़ अचेतन मूल प्रकृति का कार्य , बुद्धि है । सांख्य के कार्य - कारण सिद्धान्त के अनुसार कार्य में कारण उपस्थित रहता है अतः बुद्धि भी त्रिगुणी है। प्रकृति के 23 तत्त्व पुरुष के tools हैं जिनके माध्यम से अनुभव प्राप्त कर पुरुष कैवल्य प्राप्त करता है ।
अब बुद्धि से संबंधित ऊपर टेबल में दी गयी 18 सांख्य कारिकाओं के सार को देखते हैं ⬇️
कारिका - 3
पुरुष - प्रकृति संयोग के साथ अविकृति मूल प्रकृति विकृत हो जाती है और उससे 07 कार्य - कारण (बुद्धि , अहंकार , 05 तन्मात्र ) और 16 कारण ( 11 इन्द्रियाँ + 05 महाभूत ) के रुप में 23 तत्त्व उत्पन्न होते हैं "
कारिका - 22
प्रकृति - पुरुष संयोग से महत् की उत्पत्ति है । महत् से अहँकार की उत्पत्ति है , अहँकार से 11 इंद्रियों की उत्पत्ति है एवं 05 तन्मात्रों की उत्पत्ति है और तन्मात्रों से 05 महाभूतों की उत्पत्ति है ।
कारिका - 23
◆ बुद्धि के 04 सात्त्विक रूप
धर्म - ज्ञान - वैराग्य - ऐश्वर्य
◆ बुद्धि के 04 तामस रूप
अधर्म - अज्ञान - अवैराग्य - अनैश्वर
【 कारिका : 67 - 68 में धर्म , अधर्म , ज्ञान , अज्ञान , वैराग्य , राग , ऐश्वर्य और अनैश्वर्य को 08 भावों के रूप में बताया गया है । इन 08 भावों में से ज्ञान को छोड़ शेष 07 प्रकृति के बंधन हैं लेकिन ज्ञान होते ही प्रकृति इन 07 बंधनों से मुक्त हो जाती है । ऐसा तब होता है जब पुरुष को स्व बोध हो जाता है । पुरुष स्व बोध के बाद कैवल्य प्राप्त करता है और प्रकृति आवागमन से मुक्त हो कर अपने मूल स्वरूप में लौट जाती है ]
कारिका - 29
बुद्धि , अहँकार और मन के लक्षण ही इनकी असामान्य वृत्ति हैं जैसे बुद्धि का लक्षण ज्ञान है , अहँकार का लक्षण अभिमान है और मन का लक्षण संकल्प हैं और ये लक्षसन ही उनकी असामान्य वृत्तियाँ हैं । 10 इंद्रियों की वृत्तियाँ भी असामान्य ही हैं , इस संबंध में कारिका - 28 को देखें जो निम्न प्रकार है ⬇️
कारिका : 28
👌 रूप आदि पञ्च तन्मात्र पञ्च ज्ञान इंद्रियों की वृत्तियां हैं जैसे चक्षु का रूप - रंग देखना , श्रोत का शब्द सुनना , रसना का रसानुभूति , घ्राणका गंध लेना और त्वचा का स्पर्श की अनुभूति करना । इसी तरह कर्म इंद्रियों में वाक् का वचन बोलना ,पाणि का आदान ( लेना ) ,पाद का विहरण करना , पायु का उत्सर्जन करना और उपस्थ का आनंद लेना ही वृत्ति है ।
प्राण , अपान , व्यान , उदान और समान रूपी वृत्तियां , सामान्य वृत्तियां हैं क्योंकि इनके होने का केवल एक कारण नहीं , अनेक कारण हैं अतः ये सामान्य वृत्ति हैं । सामान्य वृत्ति में कारण एक होता है और असामान्य वृत्ति के एक से अधिक कारण होते हैं ।
कारिका - 30
जब बुद्धि , अहँकार और मनके साथ कोई एक इंद्रिय संयुक्त होती है तो वह चतुष्टय कहलाती है ।
💐 दृष्ट बिषयों में इन चारों (चतुष्ठय , बुद्धि , अहंकार और मन )की वृत्ति कभीं एक साथ तो कभीं क्रमशः (संशय से निश्चय होनें पर ) भी होती है ।
👌 अदृष्ट बिषय में मन , बुद्धि और अहंकार की वृत्ति इंद्रिय आधारित होती है जैसे अदृष्ट रूप के चिंतन में चक्षु आधारित ही वृत्ति होगी और अदृष्ट गंध की अनुभूति घ्राण आधारित होगी।
कारिका - 31
👉मन , बुद्धि और अहंकार परस्पर एक दूसरे के अभिप्राय से अपनीं - अपनीं वृत्तियों को जानते हैं ।
कारिका - 32
💐 यहां 13 प्रकार के करण बताए गए हैं ( 11 इन्द्रियाँ , बुद्धि और अहंकार ) ।
👌 करण के तीन कार्य होते हैं 👇
1 - आहरण या लेना या ग्रहण करना
2 - धारण करना
3 - प्रकाशित करना ( ज्ञान देना )
💮 05 कर्म इन्द्रियाँ ग्रहण एवं धारण दोनों करती हैं ।
💮 05 ज्ञान इंद्रियाँ केवल प्रकाशित करती हैं ।
💐 इन 05 कर्म इन्द्रियों एवं ज्ञान इन्द्रियों के अपनें - अपनें कार्य हैं और ये कार्य ऊपर व्यक्त 03 भागों
(आहरण , धारण और प्रकाशित करना ) में विभक्त हैं।
कारिका - 33
कारिका : 32 में 13 प्रकार के करण बताए गए। इनमें 10 इंद्रियाँ बाह्य करण हैं और मन , बुद्धि एवं अहंकर को अंतःकरण कहते हैं ।
अंतःकरण के बिषयभूत 10 बाह्य करण हैं ।
💐 बाह्य करण केवल वर्तमान काल के बिषयों को ग्रहण करते हैं जबकि अंतःकरण तीनों कालों के बिषयों को ग्रहण करते हैं ।
कारिका : 35
💐 13 करणों ( बुद्धि + अहँकार + मन + 10 इंद्रियाँ ) में अंतःकरण ( मन , बुद्धि और अहंकार ) द्वारि (स्वामी ) हैं और अन्य 10 ( 10 इन्द्रियाँ ) द्वार हैं क्योंकि मन - अहंकार से युक्त बुद्धि तीनों कालों के बिषयों का अवगाहन (गहरा चिंतन ) करती है ।
💐 तीनों अंतःकरण स्वेच्छा से अगल - अलग द्वारों ( 10 इन्द्रियों ) से अलग - अलग बिषय ग्रहण करते हैं
कारिका : 36 + 37
💐 सभीं इंद्रियाँ ( मन + 10 इंद्रियाँ )तथा अहंकार दीपक की भांति हैं और एक दूसरे से भिन्न गुण वाले हैं । जैसे दीपक अपनी परिधि में स्थित सभीं बिषयों को प्रकाशित करता है वैसे 12 करण ( 11 इंद्रियां + अहंकार ) सम्पूर्ण पुरुषार्थ
(धर्म + अर्थ + काम + मोक्ष ) को प्रकाशित करके बुद्धि को समर्पित करते हैं ।
💐 पुरुषके सभीं उपभोग की व्यवस्था बुद्धि करती है और वही बुद्धि प्रधान ( प्रकृति ) और पुरुष के सूक्ष्म भेद को विशेष रूप से जानती है ।
कारिका - 40
1.बुद्धि , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ और 5 तन्मात्रों का समूह सूक्ष्म या लिंग शरीर है ।
2.लिङ्ग शरीर आवागमन करता है ।
3.लिंग शरीर 08 भावों से युक्त रहता है (8 भाव : धर्म , ज्ञान , वैराग्य , ऐश्वर्य , अधर्म , अज्ञान , अवैराग्य , अनैश्वर , देखें कारिका : 44 - 45 और कारिका : 23 जहां बुद्धि के 4 सत्त्विक रूपों में धर्म , ज्ञान , वैराग्य और ऐश्वर्य बताया गया है और तामस रूपो में शेष 4 भावों को बताया गया है )।
कारिका - 43
💐 धर्म , ज्ञान , वैराग्य और ऐश्वर्य ये 04 प्रकार के भाव निम्न 03 प्रकारसे प्राप्त होते हैं ⤵️
1- सांसिद्धिक (जन्मजात मिले होते हैं )
2 - प्राकृतिक (स्वयं प्रकृति से मिलते हैं )
3 - वैकृतिक (गुरु द्वारा मिलते हैं )
⚛️ ^ इन 03 प्रकारके धर्मों पर सूक्ष्म शरीर आश्रित होता है और कलल (अस्थि - मांस ) आदि , स्थूल देह पर आश्रित होते हैं ।
कारिका : 44 - 45
💐 धर्म से ऊर्ध्वगति तथा अधर्म से अधोगति होती है , ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति तथा अज्ञान से बंधन प्राप्त होता है ।
वैराग्य से प्रकृति में लय तथा राग ( अवैराग्य ) से संसार मिलता है । ऐश्वर्य से अविघात ( बाधा मुक्ति ) और अनैश्वर से नाश होता है ।
कारिका - 41
# बिना पंचभूत आश्रय , लिङ्ग शरीर स्थिर नहीं हो सकता , उसे स्थिर होने के लिए पांच महाभुतों का आश्रय चाहिए होता है ।
कारिका - 42
लिङ्ग शरीर प्रकृति को प्रकाशित करता है । यह मोक्ष प्राप्ति हेतु अलग - अलग शरीर धारण करता रहता है ।
~~ ॐ ~~
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