🌄 वेदांत दर्शन में तत्त्वों की प्रलय
श्रीमद्भागवत पुराण :11.2 , 11. 3 आधारित
स्वायंभुव मनु के कुल में चौथे बंशज ऋषभ देव जी हुए जो जैन परम्परा के पहले तीर्थंकर माने जाते हैं । इनके 100 पुत्रों में से 09 योगीश्वर हो गए थे । सातवें मनु श्राद्धदेव जी के बड़े पुत्र इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमी हुए जो पहले विदेह राजा जनक कहलाए । ऋषभ देव जी के 100 पुत्रों में से 09 योगिश्वर हो है थे । श्रीमद्भागवत पुराण में कुल 54 विदेह राजाओं को बताया गया है जिनमें निमी पहले थे और मां सीता जी के पिता 21 विदेह राजा जनक थे।
पहले विदेह राजा जनक ( निमी ) और 09 योगीश्वरों के संवाद के अंतर्गत तत्त्वों की प्रलय निम्न प्रकार से बताई गई है।
1 - वायु पृथ्वी की गंध को खीच लेता है और पृथ्वी जल में बदल जाती है ⤵️
2 - वायु जल का रस खीच लेती है , और जल अग्नि में बदल जाता है ⤵️
3 - अंधकार अग्नि के रूप को ले लेता है और अग्नि वायु में बदल जाता है ⤵️
4 - आकाश वायु की स्पर्श शक्ति को ले कर उसे उसे अपने में लीन कर लेता है ⤵️
5 - काल आकाश से शब्द ले लेता है और आकाश तामस अहंकार में लीन हो जाता है ⤵️
यहां तक 05 तन्मात्रों और 05 महाभूतों का लय तामस अहंकार में हो चुका है , अब आगे देखते हैं ⬇️
# 10 इंद्रियां + बुद्धि राजस अहंकार में लीन हो जाते हैं।
# मन और 10 इंद्रियों के अधिष्ठातृ देवताओं का समूह
सात्त्विक अहंकार में लीन हो जाते हैं ⤵️
अब तामस , राजस और सात्त्विक अहंकार बचे हुए हैं जिनके लय को आगे देखते हैं ,⬇️
➡️तीन अहंकार महत् तत्त्व में लीन हो जाते है।
➡️ महत् तत्त्व प्रकृति में लीन हो जाता है ।
➡️ त्रिगुणी प्रकृति ब्रह्म में लीन हो जाती है ।
इसके बाद क्या होता है ⬇️
प्रलय के फलस्वरूप न दृष्टा होता है , न दृश्य , जो बच रहता है वही वेदांत दर्शन का नित्य - सनातन ब्रह्म है ।
▶️ ब्रह्म से ब्रह्म में यह जगत है और प्रलय में यह जगत ब्रह्म में समा जाता है ।
~~ ॐ ~~
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