Monday, June 3, 2024

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 का सार



श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 07 सार 

इस अध्याय में 30 श्लोक हैं और सभीं  श्लोक प्रभु श्री कृष्ण के हैं । यहां प्रभु श्री कृष्ण वक्ता हैं और अर्जुन श्रोता हैं…..

# हजारों मनुष्यों में कोई एक मनुष्य मुझे प्राप्त करने की साधना को सिद्ध कर पाता है और जो सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं उनमें कोई एक मुझे तत्त्व से जान पाता है ( श्लोक - 3 )) । 

# 05 महाभूत , बुद्धि , अहंकार एवं मन इन 08 तत्त्वों वाली अपरा प्रकृति एवं इसके अलावा जीवरूपा जगत को धारण करने वाली परा प्रकृति से सभी भूतों की उत्पत्ति होती है (श्लोक : 4 - 6 ) ।

# यह संसार एक माले जैसा है जिसकी मणियां सभी सूचनाएं हैं और सभी मणियों को जोड़ने वाला सूत्र मैं हूं ( सूत्र - 7 ) ।

# जल में रस , चंद्रमा - सूर्य में प्रकाश , वेदों में प्रणव ( ॐ) , महाभूतों के पांच तन्मात्र , पुरुषों का पुरुषत्व , तप , सभी ब्रह्मांड की सूचनाओं का सनातन बीज , बुद्धि , तेजस्विवों में तेज , शक्तिशालियों में कामना रहित शक्ति और धर्मानुकूल काम , मैं हूं।

# तीन गुणों के भाव मुझसे उत्पान हुआ जानो लेकिन उन भावो में मैं नहीं रहता ( श्लोक - 12 ) । तीन गुणों के भावों से भावित गुणातीत मुझ अव्यय को नहीं समझ पाते ( श्लोक - 13 ) ।

मेरे भक्त मेरी त्रिगुणी माया से मुक्त हो कर मुक्त हो जाए हैं (श्लोक - 14 ) । # प्रभु के भक्त चार प्रकार के हैं - अर्थार्थी , आर्त, जिज्ञासु एवं ज्ञानी अर्थात क्रमशः सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति की चाह वालें, दुखों से मुक्ति चाहने वाले , मुझे यथार्थ रूप में जानने वाले और ज्ञानी लोग 

( श्लोक - 16 ) । ज्ञानी मेरे जैसा होता है ( श्लोक - 17 ) ।

# अनेक जन्मों की तपस्यायों का फल ज्ञान प्राप्ति है 

( श्लोक - 19) और ज्ञानी दुर्लभ होते हैं । 

# देवताओं की पूजा देवताओं तक पहुंचाती है और मुझ निराकार की पूजा मुझसे मिला देती है ( श्लोक : 23 , 24 ) ।

# अज्ञानी मुझे नहीं देख सकते ( श्लोक : 25)। 

गीता को आधार बना कर साधना करने वाले साधकों  के लिए  ऊपर व्यक्त गीता अध्याय - 07 का सार पर्याप्त है । 

।।। ॐ।।।



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