श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 6का सार ..
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 6 का केंद्र मन है । मन ही बंधन एवं मोक्ष का माध्यम है । श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 6 में 47 श्लोक हैं, जिनमें अर्जुन के 5 श्लोक तथा प्रभु श्री कृष्ण के 42 श्लोक है । अर्जुन प्रभु की बातों कोसुनने के बाद कहते हैं ,
“ मन की चंचलता के कारण मैं आपकी बातों को समझ नहीं पा रहा अतः आप कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरा मन शांत हो सके । अर्जुन या जानना चाह रहे है कि जब एक असंयमी पर श्रद्धावान योगी की योग साधना खंडित हो जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है तब उसकी गति किस प्रकार की होती है ? “ प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन की बातों को सुनने के बाद कह रहे हैं , “ निरंतर बिना किसी रुकावट योगाभ्यास करते रहने से वैराग्य मिलता है और वैराग्य से मन शांत रहता है , पतंजलि योग दर्शन का प्रारंभिक सूत्र कहता है , चित्त वृत्ति निरोध ही योग है । यहां बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते हैं ।
ऐसा योगी जिसकी मृत्यु वैराग्यवस्था से पहले होती है , वह किसी उत्तम कुल में जन्म ले कर अपनी अधूरी योग यात्रा को आगे बढ़ाता है । वैराग्यावस्था की सिद्धि प्रात योगी , योग खंडित होने पर यदि उसकी मृत्यु हो जाती है तब वह सीधे जन्म न लेकर पहले स्वर्ग में पहुंचता है , वहां स्वर्ग के भोगों को भोगने के बाद पुनः अच्छे कुल में जन्म ले कर नए साधक की भांति योग साधन शुरू करता हैं ।
अब गीता अध्याय - 6 के ध्यानोपयोगी सूत्रों को देखते हैं ..
# संन्यासी,योगी , वैरागी एवं त्यागी एक दूसरे के संबोधन है जो संकल्प रहित , समभाव और कर्म बंधनों से मुक्त रहते हुए निष्काम कर्म करते रहते हैं । जो अपनें मन का गुलाम है , वह स्वयं का दुश्मन है । श्लोक : 11 - 23 में ध्ध्यान का अभ्यास करने वालों के लिए कुछ सावधानियां बताई गई हैं जिससे अवरोध मुक्त ध्यान किया जा सके। ज्ञान - विज्ञान का बोधी ईश्वर दर्शन का अधिकारी होता है। दुःख संयोग वियोगम् योग: । ध्यान अभ्यास में जब भी मन ध्यान के सात्त्विक आलंबन से हट कर किसी अन्य विषय पर केंद्रित होने लगे तब उसे वहां से हटा कर पुनः सात्त्विक आलंबन कर केंद्रित बनाए रखने का अभ्यास ही अभ्यास योग है । अभ्यास योग की सिद्धि से वैराग्य मिलता है । वैरागी ज्ञान एवं विज्ञान का बोधी होता है । बुद्धि स्तर पर वस्तुओं को समझना ज्ञान है और ब्रह्मांड सहित उसकी सभी सूचनाओं को ब्रह्म से उत्पन्न समझना , विज्ञान है ।
।। ॐ।।
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