Wednesday, August 31, 2011

अध्याय पांच का सार


पिछले कुछ दिनों से हमारी यात्रा गीता अध्याय – 05 कि थी और अब हम इस अध्याय को समाप्त कर रहे हैं / गीता अध्याय – 05 का प्रारम्भ अर्जुन के सूत्र से है जिसमे अर्जुन कहते हैं ----


सूत्र –5.1
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनः योगं च शंससि/


यत् श्रेयः एतयो: एकं तत् मे ब्रूहि सु- निश्चितं//


आप कभीं संन्यास की तो कभीं कर्म – योग की प्रशंसा करते हैं , आप मुझे स्पष्ट करें कि इन दो में मेरे लिए कौन श्रेष्ठ है ? कर्म – संन्यास एवं कर्म – योग में मेरे लिए कौन उत्तम है ? यह जानना चाहते हैं अर्जुन //


अर्जुन का यह प्रश्न अध्याय – 05 तक सीमित नहीं है , जो अध्याय – 05 तक अपनें को सीमित रख लिया वह कभीं नहीं समझ सकता कि कर्म संन्यास एवं कर्म – योग दोनों क्या हैं ? और दोनों का आपसी क्या सम्बन्ध है ?


गीता में कभी प्रभु कहते हैं, कर्म – योग में बिना उतरे कर्म – संन्यास की बात सोचना ब्यर्थ है


क्योंकि बिना कर्म – योग कर्म संन्यास की स्थिति में पहुँचना संभव नहीं और कभीं कहते हैं दोनों मुक्ति पथ हैं लेकिन सम्पूर्ण गीता की यात्रा बताती है------


कर्म करो , कर्म में आसक्ति की साधना से गुजरो और आसक्ति रहित कर्म समत्व – योग में


पहुचाता है , जहां नैष्कर्म्य – सिद्धि मिलती है जो ज्ञान योग की परा निष्ठा है /


निष्कर्म – सिद्धि में--------


जिसे हम कर्म समझते हैं वह अकर्म दिखनें लगता है


और


जिसको हम अभीं तक अकर्म समझते रहे थे वह कर्म दिखनें लगता है//


कर्म में भोग – तत्त्वों के प्रभाव से संन्यास लेना कर्म – संन्यास है और यह संभव तब होता है जब


भोग कर्म योग कर्म बन जाता है //




===== ओम=========


Thursday, August 25, 2011

गीता अध्याय पांच भाग तेरह

गीता अध्याय –05का अगला सूत्र


सूत्र –5.23


काम और क्रोध के प्रति उठा होश मनुष्य को सुखी बनाता है//


सूत्र –5.26

काम – क्रोध के सम्मोहन से अप्रभावित रहता है उसका जीवन मुक्ति की ओर बढ़ता है//


सूत्र –16.21


काम,क्रोध और लोभ नर्क के द्वार हैं//


सूत्र –3.37

काम – क्रोध एक ऊर्जा के दो रूप है जो राजस गुण की ऊर्जा है//

सूत्र –5.24


अंतर्मुखी स्वकेंद्रित ज्ञानी ब्रह्म – योगी निर्वाण प्राप्त करता है//


काम,क्रोध एवं लोभ राजस गुण के तत्त्व हैं और मोह,भय तामस गुण के तत्त्व हैं/अहंकारअपरा प्रकृति का एक अहम तत्त्व है जो तामस गुण – तत्त्वों के साथ नकारात्मक रहता है और राजस् गुणों के तत्त्वों के साथ यह परिधि पर धनात्मक होता है और दूर से दिखा भी है/

गीता कहता है-----

गुणातीत का आखिरी द्वार निर्वाण है//


======ओम========


Thursday, August 11, 2011

अध्याय पांच भाग बारहवां

अध्याय के अगले सूत्र


सूत्र –5.21

वह जो इन्द्रिय – सुख से सुखी न् हो कर प्रभु के सुइरण से सुखी होता है , ज्ञानी होता है //

यहाँ देखिये इस सूत्र को भी-----

सूत्र –2.69

या निशा सर्व भूतानां तस्यां जागर्ति संयमी/

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनै: //

वह जो सब के लिए रात्री के सामान है वह योगी का दिन है

वह जो सब का दिन है वह योगी की रात्रि है //

अर्थात

भोग योगी के पीठ की तरफ होता है और उसकी आँखें प्रभु पर टिकी होती हैं //


सूत्र –5.22

इन्द्रिय – सुख दुःख का कारण है और क्षणिक होता है//

यहाँ गीता सूत्र – 2.14 को भी देखें जो सूत्र – 5.22 की बात को कह्ता है //

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीत – उष्ण सुख – दुःख दा: /

आगम अपायिन:अनित्या:तान् तितिक्षस्व भारत//

गीता- 2.14


यहाँ गीता का एक और सूत्र देखते हैं-------

सूत्र –18.38

इन्द्रिय – बिषय सहयोग से जो सुख मिलाता है उस सुख में दुःख का बीज होता है //





===== ओम =======


Saturday, August 6, 2011

गीता अध्याय पांच भाग इग्यारह

गीता अध्याय पांच भाग –11

गीता सूत्र –5.18

यहाँ प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं --------

अर्जुन ! समदर्शी ज्ञानी होते हैं //

Here Lord Krishna says , whose who are settled in evenness – yoga they are men of wisdom .


यहाँ निम्न सूत्र को भी देखें ------

सूत्र –5.19

समत्त्व – योगी ब्रह्म समान होता है //

Yogin of evenness – yoga is like the Supreme Brahman .


अब देखिये निम्न सूत्र को -----

सूत्र –5.17

यहाँ प्रभु कहते हैं … ....

ज्ञानी तन , मन एवं बुद्धि से निर्विकार होता है और प्रभु में निवास करता है //


अब अगला सूत्र ----

सूत्र –5.20

प्रभु कह रहे हैं -------

प्रिय – अप्रिय , उचित – अनुचित , अच्छा - बुरा जैसे सभीं द्वंदों से अछूता जो हो , वह

स्थिर प्रज्ञ – योगी ब्रह्म में ही होता है //


गीता के सूत्र आप को किधर से किधर की ओर ले जाना चाह रहे हैं ? ज़रा अपनीं आँखों को बंद

करके सोचें , आप उस ओर कभीं भी नहीं जाना चाहेंगे जिधर गीता आप को खीच रहा है //

You try to understand , what is choice less awareness ?

Choice less awareness is not a process , it is not an act it is the result of deep meditation .

Meditation does not give anything , it brings in a space where absolute truth is experienced .

Truth is a pathless journey and only very few people travel through it on meditation – vehicle .


Absolute Brahman or formless absolute is not an object it is a space of mind – intelligence where

absolute serenity becomes like a mirror on which something appears which is inexpressible.


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