Tuesday, June 11, 2013

गीता ज्ञान - 20

गीता बता रहा है :----
● क्यों इधर - उधर देख रहे हो , क्यों नहीं उसे देखते जहां तेरा अगला कदम पढनें वाला है ?
● जितना समय औरों को परखनें में गवा रहे हो , उसका एक अंश भी अगर स्वयं को समझनें में लगानें का अभ्यास कर लो , तो तेरी भटकन रुक सकती है ?
● तुम्हारी नज़र तुमको झोखा देती है , क्या तुम समझते हो ?
● तुम कहाँ - कहाँ नहीं भटके लेकिन पाए क्या ?
● यहाँ कुछ पाना नहीं है , खोना ही खोना है पर खोनें को तैयार कौन है ?
● हम प्रभु को पकड़ना चाह रहे और भाग रहे हैं द्वारका से पूरी तक , काशी से मानसरोवर तक लेकिन यह भूल चुके हैं की बाहर का प्रभु अनेक रूपों में है पर अपनें ह्रदय में जो प्रभु है , वह तो एक ही है ।
● प्रभु को तुम गुलाम बनाना चाह रहे हो , पर स्वयं को उसका गुलाम बनाना स्वीकारते नहीं ।
● भागो जितना भागना है , कर लो सारी धरती अपने कव्जे में लेकिन याद रखो , अंत समय में जब जाएगा तो तेरे पास वह न होगा जिसे तुम पकड़ रखे हो , जिसे तुम सीनें से चिपका रखे हो , अपितु वह होगा जिसके प्रति तुम बेहोश हो ।
~~~ ॐ ~~~

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