Wednesday, January 8, 2014

गीता मोती - 14

● कामना , क्रोध और दुःख ●
गीतामें प्रभु कृष्ण कहते हैं :---
* इन्द्रिय - बिषय संयोग से मन उस बिषयके सम्बन्ध में मनन करनें लगता है और मनन का स्वरुप गुण आधारित होता है अर्थात मनन के समय जिस गुण के प्रभाव में मन होता है , मनन जा केंद्र उसी गुण तत्त्व पर होता है । बिषय एक होता है और उस बिषय पर मन तीन प्रकार से मनन कर सकता है ।
* मनन से आसक्ति उठती है : आसक्ति अर्थात उस बिषय के भोग की उर्जा ।
* आसक्ति से संकल्प - कामना का उदय होता है । * कामना टूटने का भय क्रोध पैदा करता है ।
* क्रोध काम - कामना का रूपांतरण है * क्रोध मनुष्य के पतन का करण है ।
* जितनी गहरी कामना होगी , उसके खंडित होनें पर उतना गहरा दुःख होगा ।
* कामना की पूर्ति होना अहंकार को और सघन बनाता है ।
* कामना रहित सन्यासी होता है ।
* सन्यास , वैराग्य और भक्ति एक साथ रहते हैं ।
* परा भक्त प्रभु तुल्य होता है ।
~~ ॐ ~~

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