Saturday, March 30, 2024

गीता श्लोक : 8.3 में अध्यात्म एवं स्वभाव


श्रीमद्भगवद्गीता में अध्यात्म क्या है ?

यहां श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक : 8.3 को देखना होगा जो निम्न प्रकार है ⬇️ 

अक्षरम् ब्रह्म परमं स्वभाव: अध्यात्मम् उच्यते।

भूत भावः उद्भव करः विसर्गः कर्म सज्ज्ञित: ।।

गीता श्लोक : 8.3 में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं, “ स्वभाव को अध्यात्म कहते हैं “ । अब स्वभाव को समझने के लिए निम्न संदर्भों को देखते हैं ⤵️

# गीता श्लोक : 3.27 , 3.28 , 3.33

# श्रीमद्भागवत पुराण > 3.26 : कपिल एवं मां देवहूति वार्ता 

# श्रीमद्भागवत पुराण > 11.25.1 : श्री कृष्ण - उद्धव वार्ता

ऊपर दिए गए गीता के 03 श्लोकों एवं भागवत पुराण के 02 श्लोकों के आधार पर स्वभाव और अध्यात्म का संबंध  कुछ निम्न प्रकार है ⤵️ 

मनुष्य के अंदर हर पल बदल रहे सात्त्विक , राजस एवं तामस गुण उपस्थित रहते हैं । इन तीन गुणों में से एक गुण शेष दो गुणों को दबा कर प्रभावी होता है । जो गुण जिस काल में प्रभावी होता है वह मनुष्य वैसा उस काल में कर्म करता है और कर्म के फल स्वरूप में उसे सुख / दुख को भोगना पड़ता है । 

सात्त्विक गुण के प्रभाव में सत्  कर्म , राजस गुण के प्रभाव में भोग कर्म और तामस गुण के प्रभाव में मोह ,भय एवं आलस्य से संबंधित कर्म होते हैं । इस प्रकार गुण समीकरण के आधार पर मनुष्य का स्वभाव बनता है । जैसे - जैसे गुण बदलते हैं , वैसे - वैसे स्वभाव भी बदलता रहता हैं । स्वभाव से मनुष्य कर्म करता है । वस्तुतः मनुष्य के अंदर तीन गुण कर्म करता हैं और कर्म करता का भाव अहंकार की उपज है ( गीता : 3.27 ) । गुण विभाग और कर्म विभाग का विस्तार से वर्णन वेदों में भी मिलता है जैसा गीता 

श्लोक : 3.28 में व्यक्त किया गया है ।

## ॐ ##

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