गीता अध्याय –04
[ घ ] ध्यान विधियां
प्रयोग में लाये गए गीता - सूत्र
4.26 – 4.27 , 4.29 – 4.30 , 5.27 , 5.28 , 6.15 ,8.8 , 8.10 , 8.12
गीता-सूत्र4.26 – 4.27
कुछ योगी श्रवण – क्रिया को संयम – अग्नि में हवन करते हैं ….
कुछ योगी ध्वनि आदि विषयों को श्रवन – इन्द्रिय में हवन करते हैं …..
कुछ इन्द्रिय कर्मों को …..
कुछ प्राण वायु-कर्मों को ….
आत्म – संयम में हवन करके ज्ञान की ज्योति को प्राप्त करते हैं//
यहाँ यज्ञ के माध्यम से मन – योग की बात बता रहा है , गीता /
योग में मन के दो तत्त्व हैं ; विषय और इन्द्रियाँ , इन्द्रियों में पांच ज्ञान इन्द्रियाँ प्रमुख हैं /
विषय – इन्द्रिय वे माध्यम हैं जिनसे आत्मा प्रत्यगात्मा से परागात्मा में रूपांतरित हो जाता है /
परागात्मा को प्रत्यगात्मा बनाना ही पतांजलि - योग का लक्ष्य है /
आत्मा को विकारों से मुक्त करना योग है और यह संभव तब है जब … .
विषय एवं ज्ञान इन्द्रियों के प्रति पूर्ण होश बना हो //
मन से इन्द्रियों के गुणों को समझना … ...
इन्द्रियों के माध्यम से विषयों के स्वभाव के प्रति होश बनाना … .
मन को निर्मल करना है---
मन को निर्विकार करना है---
और
निर्विकार मन
निर्वाण दिलाता है//
====ओम=====