Wednesday, June 15, 2011

गीता अध्याय 04

[]यज्ञ सम्बंधित सूत्र

सूत्र - 4.24, 4.25 + 9.16 , 4.28 , 4.31 , 4.32 , 4.33

गीता सूत्र4.24

प्रभु कहते हैं … ...

हे अर्जुन जिस यज्ञ में यज्ञ कर्ता को अर्पण में,घृत में,अग्नि में,एवं अन्य सभीं बस्तुओं मे ब्रह्म दिखता है वह यज्ञ करता ब्रह्म स्तर का होता है//

गीता सूत्र4.25

कुछ लोग देवताओं के लिए यज्ञ करते हैं और कुछ अग्नि को ब्रह्म समझ कर यज्ञ करते हैं /

पहली श्रेणी उनकी है जो कामना पूर्ति के लिए यज्ञ करते हैं और दूसरी श्रेणी उनकी है जो सर्व कल्याण के लिए यज्ञ करते हैं //

गीता सूत्र9.16

यहाँ प्रभु कहते हैं … ..

मैं यज्ञ हूँ , पितरों को दिए जानें वाला तर्पण हूँ , औषधि हूँ , मन्त्र हूँ , घृत हूँ , अग्नि हूँ ,

आहुति हूँ अर्थात यज्ञ में सब कुछ मैं ही हूँ //

गीता सूत्र4.28

संपत्ति , तप , योग , ज्ञान एवं स्वयं के अनुभव का भी यज्ञ होता है //

गीता सूत्र 4.31

यज्ञ के बिना मुक्ति पाना संभव नहीं //

गीता सूत्र 4.32

वेदों में नाना प्रकार की यज्ञों को बताया गया है जो कर्मों के फल प्राप्ति के लिए हैं //

गीता सूत्र4.33

यज्ञों का फल है गया प्राप्ति //

ज्ञान है …...

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध

और क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ब्रह्म मय बनाता है//

यज्ञा का अर्थ है -----

बंधनों का त्याग


=====ओम=======


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