गीता अध्याय 04
[ग]यज्ञ सम्बंधित सूत्र
सूत्र - 4.24, 4.25 + 9.16 , 4.28 , 4.31 , 4.32 , 4.33
गीता सूत्र4.24
प्रभु कहते हैं … ...
हे अर्जुन जिस यज्ञ में यज्ञ कर्ता को अर्पण में,घृत में,अग्नि में,एवं अन्य सभीं बस्तुओं मे ब्रह्म दिखता है वह यज्ञ करता ब्रह्म स्तर का होता है//
गीता सूत्र4.25
कुछ लोग देवताओं के लिए यज्ञ करते हैं और कुछ अग्नि को ब्रह्म समझ कर यज्ञ करते हैं /
पहली श्रेणी उनकी है जो कामना पूर्ति के लिए यज्ञ करते हैं और दूसरी श्रेणी उनकी है जो सर्व कल्याण के लिए यज्ञ करते हैं //
गीता सूत्र9.16
यहाँ प्रभु कहते हैं … ..
मैं यज्ञ हूँ , पितरों को दिए जानें वाला तर्पण हूँ , औषधि हूँ , मन्त्र हूँ , घृत हूँ , अग्नि हूँ ,
आहुति हूँ अर्थात यज्ञ में सब कुछ मैं ही हूँ //
गीता सूत्र4.28
संपत्ति , तप , योग , ज्ञान एवं स्वयं के अनुभव का भी यज्ञ होता है //
गीता सूत्र 4.31
यज्ञ के बिना मुक्ति पाना संभव नहीं //
गीता सूत्र 4.32
वेदों में नाना प्रकार की यज्ञों को बताया गया है जो कर्मों के फल प्राप्ति के लिए हैं //
गीता सूत्र4.33
यज्ञों का फल है गया प्राप्ति //
ज्ञान है …...
क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध
और क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ब्रह्म मय बनाता है//
यज्ञा का अर्थ है -----
बंधनों का त्याग
=====ओम=======
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