जीव रचना
[ अगला चरण ]गीता श्लोक - 14.3 , 14.4
मम योनिः महत् ब्रह्म तस्मिन् गर्भम् दधामि अहम् /संभवः सर्वभूतानां ततः भवति भारत //
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः /
तासां ब्रह्म महत् योनिः अहम् बीजप्रदः पिता //
भावार्थ :-----
सभी योनियों से जो जीव उत्पन्न हो रहे हैं उनके पिता स्वरुप बीज प्रदाता मैं हूँ और महत् ब्रह्म उनके गर्भ धारण करनें की योनियाँ हैं /भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं : -----
जीवों के बीजों का प्रदाता मैं हूँ .....जीवों को जो धारण करता है , वह ब्रह्म है ....
अभीं तक जीव के होनें के सिद्धांत के सम्बन्ध में गीता के निम्न सूत्रों को हम देख चुके हैं -----
7.4 - 7.6
9.20 - 9.22
13.4 - 13.5 , 13.20
14.3 - 14.4
और इन श्लोकों में हमें निम्न शब्द मिले :-----
- पञ्च महाभूत [ पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु , आकाश ]
- पञ्च बिषय
- दश कार्य + तेरह करण
- प्रकृति - पुरुष [ दो प्रकृतियाँ ; अपरा + परा ]
- ब्रह्म
- आत्मा [ जीवात्मा ]
- श्री कृष्ण
और ....
गीता में हमनें यह भी देखा , प्रकृति - उरुष दोनों अज हैं
अब आप के सामनें जीवों की रचना का तत्त्व - विज्ञान है , आप इसके सम्बन्ध में स्वयं कुछ सोचें
==== ओम् =======
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