गीता श्लोक - 4.19
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताःज्ञान अग्निदग्धकर्माणम् तम् आहु : पण्डितम् बुधाः
अर्थ
जिसके कर्म में काम - संकल्प की ऊर्जा न हो ....
उनके सभी कर्म ज्ञान अग्नि में भस्म हो गए होते हैं ....
और उनको ज्ञानी जन पंडित कहते हैं
" Action without desire and determination is a way leading to awareness and wisdom ."
बिना कामना
बिना संकल्प
जो कर्म होता होगा वह किस ऊर्जा से होता होगा ?
गीता कहता है :
मनुष्य कर्म कर्ता नहीं है , मनुष्य तो उस कर्म का द्रष्टा है जो उसके द्वारा तीन गुण समय - समय पर करवाते रहते हैं और जो यह समझता है कि मैं अमुक कर्म को कर रहा हूँ , वह उस समय अहँकार के सम्मोहन में होता है /
गीता के एक श्लोक को ठीक से समझनें के लिए एक बार नहीं अनेक बार आप को सम्पूर्ण गीता में प्रश्नों के आधार पर अध्यान करना होगा /
गीता के सभीं श्लोकों का अर्थ गीता में खोजना , गीता ध्यान है
और
गीता के श्लोक का तर्क - वितर्क के आधार पर अर्थ प्रस्तुत करना अज्ञान है /
गीता आगे कहता है :
आसक्ति रहित कर्म से निष्कर्मता की सिद्धि मिलती है .....
जो
ज्ञान - योग की परा निष्ठा है ....
अर्थात --
कर्म जब कर्म - योग बन जाता है तब ज्ञान की प्राप्ति होती है ...
और ज्ञान की ऊर्जा जब मन - बुद्धि में प्रबाहित होती है तब अन - बुद्धि संदेह रहित होते हैं //
==== ओम् ====
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