Wednesday, October 23, 2013

कर्म से कर्म योगमें प्रवेश

● गीता मोती - 6 ●
सन्दर्भ : गीता श्लोक :
* 2.67+2.60+2.62+2.63 *
** गीता - मनोविज्ञान **
पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ हैं और प्रत्येक इन्द्रियका अपना विषय प्रकृति में है । इन्द्रियोंका स्वभाव है
अपनें - अपनें विषयोंको खोजते रहना । जब कोई इन्द्रिय अपना विषय पा लेती है तब अपनी कामयाबी की सूचना मन तक पहुँचती है । उस समय , मन जिस गुणके प्रभाव में होता है , उस गुण के अनुकूल उस विषय के सम्बन्ध में मनके मनन से वैसे भाव उठते है । मननसे आसक्ति बनती है , आसक्ति से कामना उठती है । कामना जब खंडित होनें का भय आनें लगता है तब कामनाकी उर्जा क्रोध में बदल जाती है । क्रोध में स्मृति खंडित हो जाती है फलस्वरुप वह ब्यक्ति गलत काम कर बैठता है और बादमें पछताता रहता है ।
°° गीता -मनोविज्ञानका यह सूत्र कर्मसे
कर्मयोग - सिद्धि तक की यात्रा का प्रमुख अंश है °°
~~~ ॐ ~~~

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